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बच्चों को नया जीवन देता है ‘बचपन बचाओ आंदाेलन’

बच्चों को नया जीवन देता है ‘बचपन बचाओ आंदाेलन’

नयी दिल्ली, 15 सितंबर (वार्ता) नोबेल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के ‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के जरिए अब तक 88,000 से अधिक बच्चों को बाल मजदूरी और शोषण से मुक्त कराया जा चुका है और अब यह कभी न रूकने वाला एक आंदोलन बन गया है।

‘बचपन बचाओ आंदोलन’ की सह-संस्थापक सुमेधा कैलाश ने दिल्ली के बुराड़ी स्थित मुक्ति आश्रम में पत्रकारों से बातचीत में कहा, “हमारा मकसद बच्चों के अधिकारों और हितों की रक्षा करना और उन्हें बाल मजदूरी और शोषण से मुक्त कराना है। हमारे इस आंदोलन ने अब तक 88,000 से अधिक बच्चों का बचपन बचाकर उन्हें उज्जवल भविष्य की ओर अग्रसर किया है।”

‘बचपन बचाओ आंदोलन’ बच्चों के अधिकारों और हितों के लिए कार्यरत है जिसकी शुरुआत 1980 में कैलाश सत्यार्थी ने की थी।‘बचपन बचाओ आंदोलन’ के तहत बच्चों के लिए दो केंद्र चलाये जाये जाते हैं। एक दिल्ली के बुराड़ी इलाके में स्थित मुक्ति आश्रम है और दूसरा राजस्थान के जयपुर में स्थित बाल आश्रम। इन दोनों आश्रमों के कार्य करने का तरीका अलग लेकिन उद्देश्य एक है।

बाल मजदूरी और अन्य तरह के शोषण के शिकार बच्चों को दिल्ली के मुक्ति आश्रम में लाया जाता है। ऐसे बच्चों के माता-पिता का पता नहीं चल जाने तक उन्हें यहां रखा जाता है और सारी बुनियादी सुविधाएं दी जाती हैं। इन बच्चों को सहज महसूस कराया जाता है और उनके भीतर डर काे दूर करने का काम भी किया जाता है।

जयपुर स्थित बाल आश्रम में मुक्त कराये गये बच्चों को उनके माता-पिता की सहमति से कम से कम एक वर्ष की अवधि के लिए यहां रखा जाता है और गैर-प्राथमिक शिक्षा दी जाती है। वैसे बच्चों जिनमें पढ़ने की लगन होती है और आर्थिक तौर पर आगे पढाई नहीं कर पाने में ऐसा कर पाने असमर्थ होते हैं, उन्हें यहां रखकर आगे उनकी पढ़ाई भी कराई भी जाती है।

श्रीमती कैलाश ने कहा, “बाल आश्रम में बच्चों को मानसिक रूप से सशक्त बनाया जाता हे और उन्हें उनके अधिकारों के प्रति जागरूक किया जाता है। उन्हें कई तरह के कौशल भी सिखाए जाते हैं ताकि आगे जाकर वे आत्मनिर्भर बन सकें। ऐसे कई बच्चें हैं जो बाल आश्रम की मदद से शिक्षा प्राप्त करने के बाद आज सम्मानजनक और आत्मनिर्भर जीवन जी रहे हैं।”

दिल्ली में रहकर बीएससी की पढ़ाई कर रहे राजेश कुमार जाटव (20 ) को 2007 में बाल आश्रम लाया गया था। इससे पहले वह ईंट-भट्ठे पर अपने परिवार के साथ काम करते थे। उन्होंने बाल आश्रम में रहकर अपनी पढ़ाई पूरी की और 10वीं कक्षा में 82 प्रतिशत और 12वीं कक्षा में 84 प्रतिशत अंक प्राप्त कर यह दिखा दिया कि अगर मन में लगन हो तो कुछ भी असंभव नहीं है। राजेश अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद वैज्ञानिक बनकर समाज और देश की सेवा करना चाहता है।

राजेश ने कहा, “मैं बचपन में अपने परिवार के साथ ईंट-भट्ठे पर काम करता था। मुझे वहां से बाल आश्रम लाया गया और फिर मेरा एक नया जीवन शुरू हुआ। बाल आश्रम ने हर तरह से पढ़ाई में मेरी सहायता की।”

इसी तरह के प्रेरणा के दूसरे उदाहरण कुंवर वीरेंद्र सिंह (21) हैं। वह उत्तर प्रदेश के रहने वाले हैं । उन्हें 2006 में नौ वर्ष की उम्र में बाल आश्रम लाया गया। इसके पहले वह गैराज में काम करते थे और अब वह बाल आश्रम की मदद से इंजीनियरिंग की पढ़ाई कर रहे हैं

कुंवर वीरेंद्र सिंह ने कहा, “बाल आश्रम ने पढ़ाई में मेरी हरसभव मदद की। मैंने बहुत लगन से पढ़ाई की है और इच्छा शक्ति हो तो दुनिया में कुछ भी असंभव नहीं है।”

श्रीमती कैलाश का कहना है, “कोई आंदोलन कितना भी कुछ कर ले यह कम ही होगा जब तक समाज अपनी पूरी जिम्मेदारी नहीं निभाएगा। समाज काे चाहिए कि वह अपने आसपास की गतिविधियों पर नजर रखे और कहीं भी किसी तरह से बच्चों के शोषण को बल्कुल भी बर्दाश्त न करे। सरकार पर भी दबाव बनाने का काम समाज ही करता है।”

‘बचपन बचाओ आंदोलन’ ‘बाल मित्र ग्राम’ का एक कार्यक्रम भी चला रहा है जिसके तहत बाल पंचायत का गठन किया जाता है और इसके माध्यम से भी बच्चों की समस्याओं को उठाने और उनका निवारण करने का काम किया जाता है। बाल पंचायत के सदस्य बच्चे ही होते हैं जो अपनी समस्याओं को मुख्य पंचायत के समक्ष रखते हैं। इसके बाद मुख्य पंचायत उनकी समस्याओं का समाधान करने के लिए मजबूर हो जाता है।

बाल पंचायत के बच्चे अपने अधिकारों के प्रति अपने परिवारों और लोगों को जागरूक करने का भी काम करते हैं। वर्तमान में भारत के छह राज्यों-झारखंड, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, बिहार और मध्य प्रदेश कुल 241 ‘बाल मित्र ग्राम’हैं।

प्रियंका जितेन्द्र

वार्ता

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