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चुनाव कराने की जल्दी में लोगों की जिंदगी खतरे में मत डालिए नीतीश जी : प्रशांत

 चुनाव कराने की जल्दी में लोगों की जिंदगी खतरे में मत डालिए नीतीश जी : प्रशांत

पटना 11 जुलाई (वार्ता) राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के बाद अब चुनावी रणनीतिकार एवं बिहार में सत्तारूढ़ जनता दल यूनाइटेड (जदयू) से निष्कासित नेता प्रशांत किशोर ने भी कोरोना संक्रमण में विधानसभा चुनाव कराने की सरकार की तैयारियों को लेकर मुख्यमंत्री पर कटाक्ष करते हुए कहा, “लोगों की जिंदगी को चुनाव कराने की जल्दी में खतरे में मत डालिए।”

श्री किशोर ने माइक्रो ब्लॉगिंग साइट ट्विटर पर ट्वीट कर कहा, “देश के कई राज्यों की तरह बिहार में भी कोरोना की स्थिति बिगड़ती जा रही है लेकिन सरकारी तंत्र और संसाधनों का एक बड़ा हिस्सा चुनाव की तैयारियों में लगा है। नीतीश कुमार जी ये चुनाव नहीं कोरोना से लड़ने का वक़्त है। लोगों की जिंदगी को चुनाव कराने की जल्दी में खतरे में मत डालिए।”

चुनावी रणनीतिकार ने इससे पूर्व किए एक ट्वीट में कहा था, “कोरोना की वजह से चुनाव और उसके तैयारियों में कोई बाधा ना आए इसलिए नीतीश कुमार ने तय कर लिया है कि बिहार में कोरोना की जांच की रफ़्तार को नहीं बढ़ायेंगे। बिहार में देश में सबसे कम जांच हो रही है।कोरोना से संक्रमित लोगों के पता न चलने या उसमें देरी के भयावह परिणाम हो सकते हैं।”

इससे पूर्व मंगलवार को विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी प्रसाद यादव ने मंगलवार को यहां संवाददाता सम्मेलन में कहा कि बिहार में विधानसभा चुनाव कराने का अभी उचित समय नहीं है। उन्होंने सवालिया लहजे में कहा कि आखिर सरकार को चुनाव कराने की इतनी जल्दी क्यों है। क्या उसे राष्ट्रपति शासन का डर है।

श्री यादव ने आरोप लगाया कि बिहार में कोरोना संक्रमण के तेजी से बढ़ रहे मामले के बीच सरकार ने जनता को भगवान भरोसे छोड़ दिया है। केन्द्र की रिपोर्ट से ही राज्य की स्वास्थ्य व्यवस्था की पोल खुल गई है। उन्होंने अगले एक दो महीनों में कोरोना संक्रमण के और भयावह रूप धारण कर लेने की आशंका जताते हुए कहा कि लोग परेशान हैं, ऐसे में चुनाव कराना सही नहीं होगा।

वहीं बिहार में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के घटक लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं जमुई से सांसद चिराग पासवान ने शुक्रवार को कहा कि चुनाव आयोग को भी इस विषय पर सोच कर निर्णय लेना चाहिए। कहीं ऐसा न हो कि चुनाव के कारण एक बड़ी आबादी को खतरे में झोंक दिया जाए। इस महामारी के बीच चुनाव होने पर मतदान प्रतिशत भी काफी नीचे रह सकता है, जो लोकतंत्र के लिए ठीक नहीं है।

सूरज शिवा

वार्ता

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