नयी दिल्ली, 26 सितम्बर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति (एससी/एसटी) के सरकारी कर्मचारियों के पदोन्नति में आरक्षण से संबंधित 2006 के ‘नागराज’ फैसले को बुधवार को बरकरार रखा।
न्यायालय ने इस फैसले में सीधे तौर पर पदोन्नति में आरक्षण को खारिज नहीं किया है, बल्कि इस मामले को राज्य सरकारों पर छोड़ दिया है।
मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति रोहिंगटन एफ नरीमन, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति इंदु मल्होत्रा की संविधान पीठ ने ‘एम नागराज बनाम भारत सरकार’ मामले में 12 साल पुराने फैसले की समीक्षा के लिए उसे सात-सदस्यीय संविधान पीठ को सौंपने से इन्कार कर दिया। संविधान पीठ ने गत 30 अगस्त को फैसला सुरक्षित रख लिया था।
न्यायालय ने नागराज मामले से संबंधित फैसले की उस शर्त को अनुचित ठहराया, जिसके तहत एससी/एसटी समुदाय को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए पिछड़ेपन का आंकड़ा देना अनिवार्य किया गया था। न्यायालय ने कहा कि ये शर्त इंद्र साहनी मामले में नौ सदस्यीय संविधान पीठ के फैसले के विपरीत है।
संविधान पीठ ने कहा कि पदोन्नति में आरक्षण के लिए प्रतिनिधित्व वाला विषय राज्य सरकारों पर छोड़ देना सही था, अर्थात् अब इस बारे में राज्य सरकारें तय करेंगी। पदोन्नति में आरक्षण किसे मिले, किसे नहीं, यह सरकार ही तय करे। न्यायालय ने कहा कि एससी / एसटी कर्मचारियों को तरक्की में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारों को एससी / एसटी के पिछड़ेपन पर उनकी संख्या बताने वाला आंकड़ा इकट्ठा करने की कोई जरूरत नहीं। न्यायालय ने नागराज के फैसले में क्रीमी लेयर को सही ठहराते हुए कहा कि वह इसमें दखल नहीं देगा।
उल्लेखनीय है कि क्रीमी लेयर पर नागराज के फैसले में कहा गया था कि पदोन्नति में आरक्षण देते समय समानता के सिद्धांत को लागू करते हुए क्रीमी लेयर, अपर्याप्त प्रतिनिधित्व, 50 फीसदी आरक्षण की सीमा, प्रशासनिक क्षमता का ध्यान रखना होगा।
साल 2006 में न्यायालय ने इस मामले में दिये अपने फैसले में एससी/एसटी कर्मियों को पदोन्नति में आरक्षण देने के लिए राज्य सरकारों के सामने कुछ शर्ते रखी थीं, जिसके बाद इस मुद्दे को सात-न्यायाधीशों की संविधान पीठ के पास भेजने की मांग को लेकर एक याचिका दाखिल की गई थी, जिस पर सर्वोच्च न्यायालय ने आज फैसला दिया है।
सुरेश.श्रवण
वार्ता