नयी दिल्ली 02 फरवरी (वार्ता) भारत को वर्ष 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने के लिए प्रवासी भारतीय समुदाय के उद्योगपतियों ने देश में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) बढ़ाने की आवश्यकता जतायी है और सरकार से कहा है कि वह विदेशी निवेशकों को उनकी वैश्विक आय को कर के दायरे से बाहर रखने की इजाजत के साथ भारत में दीर्घकालिक प्रवास की अनुमति दे तो एफडीआई में बहुत अधिक वृद्धि हो सकती है।
सिंगापुर स्थित फॉरेन इन्वेस्टर्स इंडिया फोरम (एफआईआईएफ) ने भारत को आम बजट 2023-24 में वर्णित अमृतकाल के दर्शन के अनुरूप विकसित बनाने के वास्ते सरकार की सहायता के लिए एक रोडमैप तैयार किया है। फोरम के संस्थापक एवं जाने माने उद्योगपति भूपेन्द्र कुमार मोदी ने यहां संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि भारत एट 100 के विज़न के अनुरूप देश के विकास के लिए एफआईआईएफ प्रवासी भारतीयों की ताकत, विशेषज्ञता एवं लगाव का लाभ उठाने का प्रयास कर रहा है।
उन्होंने कहा कि भारत एट 100 अभियान बीते तीन वर्षों से प्रवासी भारतीय नागरिकों के विभिन्न समूहों से चर्चा, परामर्श एवं गहन शोध के बाद अस्तित्व में आया है। इसे प्रवासी भारतीय उद्योगपतियों को भारत की प्रगति से जोड़ने के उद्देश्य से विकसित किया गया है।
उन्होंने कहा कि बुधवार को संसद में पेश आम बजट 2023-24 में सरकार ने देश में विकास की गति बढ़ाने के लिए पूंजीगत निवेश में दस लाख करोड़ रुपए की वृद्धि की है। इतनी बड़ी राशि का अधिकांश भाग ऋण से ही आएगा। सरकार को इसके लिए देश में एफडीआई बढ़ाने के बारे में ध्यान देना चाहिए ताकि ऋण का भार कम हो सके। वर्ष 2025-26 तक बजट घाटा कम करने के सरकार के मकसद को पूरा करने के लिए वित्तीय अनुशासन महत्वपूर्ण होगा।
श्री मोदी ने कहा कि प्रवासी भारतीय उद्योगपतियों को देश में निवेश के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ईज ऑफ बिज़नेस और ईज़ ऑफ लिविंग का वातावरण बनाया जाना चाहिए। ईज़ ऑफ लिविंग का एक महत्वपूर्ण भाग प्रवासी भारतीय उद्योगपतियों एवं विदेशी निवेशकों को भारत में अधिक समय तक प्रवास करने और उनकी वैश्विक आय पर कर नहीं लगाने का प्रावधान करना होगा। उन्होंने कहा कि वर्तमान में नियम है कि यदि प्रवासी भारतीय भारत में 182 दिनों से अधिक रहते हैं तो उनकी वैश्विक आय पर कर लगाया जा सकता है।
उन्होंने कहा कि विभिन्न देशों में रहने वाले करीब दो करोड़ प्रवासी भारतीयों के पास 135 करोड़ भारतीयों की सामूहिक संपत्ति से कहीं अधिक दौलत है। विदेशों में भारतीय पेशेवरों का बहुत सम्मान है। पर भारत के विकास की गाथा में उन्हें जोड़ने के लिए सरकार को और भी कुछ करने की जरूरत है।
उन्होंने कहा कि चीन एवं सिंगापुर ने भी विदेशी निवेशकों के लिए अनुकूल नीतियां बनायीं हैं। उनकी वैश्विक आय पर कोई कर नहीं लगता है जबकि घरेलू आमदनी पर स्थानीय कानून के मुताबिक कर लिया जाता है। उन्होंने कहा कि इसी कारण से वर्ष 1980 के बाद चीन में 273 लाख करोड़ की एफडीआई आयी जबकि भारत में केवल 44 लाख करोड़ की एफडीआई आ सकी। सिंगापुर में भी एफडीआई में जबरदस्त वृद्धि देखी गयी है। उन्होंने कहा कि इसी नीति के परिणामस्वरूप हांगकांग, बीजिंग, दुबई, शंघाई आदि अनेकों अंतरराष्ट्रीय कारोबारी संगठनों के क्षेत्रीय मुख्यालय बन गये हैं।
सचिन
वार्ता