नयी दिल्ली, 12 नवंबर (वार्ता) कोविड लॉकडाउन के दौरान देश में 38 प्रतिशत लोग ही इंटरनेट के जरिए स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच पाये और लगभग 36 बच्चे प्रतिशत शिक्षा से वंचित रहे।
डिजीटल के प्रयोग पर राष्ट्रीय स्तर पर जारी एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि लॉकडाउन में स्वास्थ्य सेवा के लिए 38 प्रतिशत लोग ही ऑनलाइन चिकित्सा परामर्श कर पाये। इस अवधि में मात्र 10 प्रतिशत भारतीयों ने घर से काम किया।
शुक्रवार को यहां जारी एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि पिछले चार वर्षों में इंटरनेट का उपयोग दोगुना से अधिक बढ़ा है और कोविड लॉकडाउन ने इंटरनेट कनेक्टिविटी की मांग बहुत वृद्धि की है। इस अवधि में 15-65 आयु वर्ग के 49 प्रतिशत लोगों ने इंटरनेट उपयोग किया जबकि वर्ष 2017 ये केवल 19 प्रतिशत थे। वर्ष 2021 में 61 प्रतिशत परिवार इंटरनेट का उपयोग कर रहे है जबकि वर्ष 2017 में यह आंकड़ा केवल 21 प्रतिशत था। यह सर्वेक्षण डिजीटल नीति के मुद्दों पर अध्ययन करने वाली संस्था एलआईआरएनई एशिया और आईसीआरआईईआर ने किया है।
सर्वेक्षण के अनुसार वर्ष 2020 में इंटरनेट से जुड़े लगभग आठ करोड़ में से 43 प्रतिशत लोगों ने कोविड लॉकडाउन के कारण इंटरनेट का इस्तेमाल किया। हालांकि डिजीटल कनेक्टिविटी से शिक्षा, कार्य, स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सरल हुई।
चौंसठ प्रतिशत परिवारों के स्कूल जाने वाले बच्चों को उनके घरों में इंटरनेट की सुविधा थी जबकि शेष 36 प्रतिशत इससे वंचित रहे। महामारी के कठिन दौर में स्वास्थ्य सेवाओं के जरूरतमंद लोगों में 65 प्रतिशत इंटरनेट से जुड़ने में सक्षम थे। इंटरनेट युक्त परिवार के बच्चों को इंटरनेट के माध्यम से सीखने की अधिक सुविधा थी। ये अधिक सम्पन्न, शहरी परिवार थे जिनके घर के मुखिया अधिक शिक्षित थे और उनके पास बड़े स्क्रीन वाले उपकरण जैसे कंप्यूटर, टैबलेट थे। दूसरी तरफ शिक्षा से वंचित रह गए अधिकतर परिवार साधन हीन थे जिनके पास बड़े स्क्रीन वाले उपकरण नहीं थे और वे मोबाइल फोन पर निर्भर थे। लॉकडाउन के दौरान केवल 10 प्रतिशत लोग ही इंटरनेट के माध्यम से काम कर पायें। इनमें उच्च प्रतिशत वित्त, बीमा, सूचना प्रौद्योगिकी, लोक प्रशासन और अन्य प्रोफेशनल सेवाओं में काम करने वाले लोग थे।
सर्वेक्षण में देश के 350 गांवों और वार्डों समेत सात हजार परिवार शामिल किए गए। इसमें 15-65 वर्ष के लोग शामिल किये गये।
सत्या जितेन्द्र
वार्ता