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लोकरुचि


देशी विदेशी सैलानियों को खूब भाता है बरसाना का एक मंदिर

देशी विदेशी सैलानियों को खूब भाता है बरसाना का एक मंदिर

मथुरा 24 फरवरी (वार्ता) तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी में बने नये पुराने मंदिरों की श्रंखला में राधारानी की क्रीड़ास्थली बरसाना में एक ऐसा अनूठा मंदिर बनाया गया है जो अपने शैशवकाल से ही देशी और विदेशी पर्यटकों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गया है।

     मथुरा नगरी केा तीन लोक से न्यारी इसलिए भी कहा जाता है कि यहां पर श्यामसुन्दर और राधारानी ने ऐसी ऐसी लीलाएं की जो आज भी भक्तों के लिए अनबूझ पहेली बन गयी है जिन राधा ने अपने कंगन से खोदकर राधाकुंड बना दिया तथा जो श्यामसुन्दर की आ़द्या शक्ति हैं तथा जिनके महत्व को गोवर्धनधारी ने उस समय स्वयं बताया जब मां यशोदा उनसे पूंछती हैं कि ’’लाला तैने इतना बड़ा मंदिर उठायो कैसे’’ , तो वे स्वंय राधा की महिमा बताते हुए कहते हैंः-

कछु माखन को बल भयो, कछु गोपिन करी सहाय।

राधे जू की कृपा से, मैने गिरवर लियो उठाय।

   ऐसी करूणामयी राधारानी का वैसे तो एक प्राचीन विशाल मंदिर लाड़ली जी मंदिर के नाम से ब्रह्माचल पर्वत पर बना हुआ है पर पूरे ब्रज में राधारानी को जन्म देनेवाली कीर्ति महारानी का कोई मंदिर नही है जबकि नन्द बाबा और यशोदा मां के मंदिर गोकुल के साथ ब्रज के अन्य स्थलों पर भी हैं। ब्रज के महान संत ब्रह्मलीन जगदगुरू कृपालु महराज ने इस कमी को महसूस करते हुए स्वयं कीर्ति मंदिर का शिलान्यास 2006 में बरसाना में रंगीली महल परिसर में किया था।

जगदगुरू कृपालु परिषद की अधिष्ठात्री डा0 विशाखा त्रिपाठी ने बताया कि उड़ीसा और राजस्थान के 500 से अधिक कारीगरों ने इस मंदिर का निर्माण 12 साल में पूरा किया। मंदिर वास्तुकला का बेजोड़ नमूना होने के साथ ही आकर्षक चकाचौंध रोशनी का प्रतीक बन गया है। इस मंदिर का विगृह बेटियों एवं मां के महत्व को भी बताता है क्योंकि मुख्य विगृह में राधारानी स्वयं अपनी मां कीर्ति किशोरी जी की गोद में विराजमान हैं।

     मंदिर की स्थापत्य कला एवं अनूठी लाइटिंग विदेशी कृष्ण भक्तों को अभी से उसी प्रकार आकर्षित करने लगी है जिस प्रकार से वृन्दावन का प्रेम मंदिर देश विदेश के भक्तों को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है अपने शैशवकाल से उसी प्रकार यह मंदिर देशी विदेशी श्यामाश्याम भक्तों  के लिए चुम्बक बन गया है।  मंदिर में  लाल पत्थर पर उकेरी गई कलाकृतियां इस बात की गवाह हैं कि मंदिर की कलाकृति बेजोड़ है।कदम्ब के वृक्ष पर अठखेलिया करते नटखट बालकृष्ण की झांकी और अष्टसखी के दर्शन के साथ साथ मंदिर के चारों ओर का बगीचा भी दर्शनीय है।

     डा त्रिपाठी ने बताया कि ब्रज में श्यामसुन्दर और किशोरी जी की लीलाओं से संबंधित अपार निधि मौजूद है ।इस निधि को विलुप्त होने से बचाने के लिए मंदिर में एक शोधपीठ भी स्थापित करने का प्रयास है जहां पर शोधार्थी ब्रज भाषा और श्यामाश्याम की लीलाओं के रहस्य पर शोध करेंगे।

   इस मंदिर में दर्शन के समय जहां जगद्गुरू कृपालु महराज के प्रवचन में ब्रज और श्याश्याम की लीलाओं के गूढ रहस्य सुनने को मिलेंगे वहीं आनेवाले समय में देशी और विदेशी पर्यटकों को ब्रज के प्रमुख तीर्थस्थलों की जानकारी भी कम से कम दो भाषाओं में मिल सकेगी।

    उन्होंने बताया मंदिर की ओर देशी और विदेशी पर्यटकों का कितना अधिक आकर्षण है इसका अंदाजा इससे लगाया जा सकता है कि इसी वसंत पंचमी को हुए मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा समारोह के अगले दिन से आज तक इस मंदिर के दर्शन के लिए पांच लाख से अधिक भक्त आ चुके हैं। कुल मिलाकर इस मंदिर के परिसर में श्रद्धा, भक्ति और संगीत की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है।

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