नयी दिल्ली, 14 दिसंबर (वार्ता) भारत ने हिन्द प्रशांत क्षेत्र को एक सार्थक एवं ठोस सहयोगकारी पहलों के माध्यम से इसे पूर्वी एशियाई देशों के व्यापक हितों को पूरा करने के लिए एक परस्पर लाभकारी, मुक्त, समावेशी मंच बनाये जाने की शनिवार को वकालत की।
विदेश मंत्री एस जयशंकर ने यहां वार्षिक दिल्ली संवाद के समापन समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि सबसे महत्वपूर्ण कार्य हिन्द प्रशांत क्षेत्र को एक मुक्त, खुला एवं समावेशी मंच के रूप में इस्तेमाल के लिए समय एवं प्रयासों का निवेश बढ़ाना है ताकि इससे ठोस एवं सार्थक सहकारी पहल की जा सकें।
डॉ. जयशंकर ने कहा कि इसके हासिल करने के लिए सभी यह सुनिश्चित करना होगा कि सहयोग के दरवाजे यथासंभव खुले रहें। दूसरे शब्दों में कहें तो हम सबको अधिक से अधिक इस पर ध्यान देना होगा कि हम क्या करें और क्या कर सकते हैं। हमें समान रूप से यह भी सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि हम हर अवधारणा के हर तत्व पर विचारों की पूरी पहचान पाने के लिए संभावित रूप से भ्रामक खोज में नहीं फंस जायें।
विदेश मंत्री ने इंडोनेशिया की विदेश मंत्री रेत्नो मारसुदी के विचारों का अनुमोदन किया कि हमारे लिये इस क्षेत्र में अपने आसपास के इलाके में खुद के बलबूते ढांचागत कनेक्टिविटी को मजबूत करने की गुंजाइश है। उन्होंने कहा कि हिन्द प्रशांत क्षेत्र आने वाले कल की भविष्यवाणी नहीं है बल्कि बीते कल की वास्तविकता है और विभिन्न विशेषज्ञों और क्षेत्रीय नेताओं ने इस तथ्य को रेखांकित किया है। पर हमें इस क्षेत्र की अवधारणा पर सहमति से आगे बढ़कर किसी प्रकार के एक समझौते पर पहुंचना होगा और इसके भौगोलिक सीमांकन को तय करना होगा।
डॉ. जयशंकर ने इस दिशा में कदम ना उठाने के नुकसान को रेखांकित करने के लिए अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति जॉन एफ. कैनेडी को उद्धृत करते हुए कहा कि हर पहल के बहुत से जोखिम होते हैं लेकिन ये जोखिम आरामदायक अकर्मण्यता के दीर्घकालिक जोखिमों से बहुत कम होते हैं।
सचिन, उप्रेती
वार्ता