. .जन्मदिवस 01 अगस्त के अवसर पर पर ..
मुंबई 01 अगस्त (वार्ता) हिंदी सिनेमा जगत में सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की नृत्य शैली के कई दीवाने है लेकिन खुद सुपर स्टार अमिताभ बच्चन जिनके दीवाने थे और जिनकी नृत्य शैली को अपनाया, वह अभिनेता थे पचास के दशक के सुपरस्टार भगवान दादा।
फिल्म जगत में ..भगवान दादा. के नाम से मशहूर भगवान आभा जी पल्लव से फिल्मों से जुड़ी कोई भी विधा अछूती नहीं रही। वह ऐसे हसमुख इंसान थे जिनकी उपस्थिति मात्र से माहौल खुशनुमा हो उठता था। हंसते हंसाते रहने की प्रवृति को उन्होने अपने अभिनय, निर्माण और निर्देशन में खूब बारीकी से उकेरा। उनका यह अंदाज आज भी उनके चहेतों की यादों मे तरोताजा है। भगवान दादा का जन्म 01 अगस्त 1913 को मुंबई में एक मध्यम वर्गीय परिवार में हुआ था। उनके पिता एक मिल वर्कर थे। बचपन के दिनों से भगवान दादा का रूझान फिल्मों की ओर था और वह अभिनेता बनना चाहते थे। अपने शुरूआती दौर में उन्होंने श्रमिक के तौर पर काम किया।
भगवान दादा ने अपने फिल्मी करियर के शुरूआती दौर में बतौर अभिनेता मूक फिल्मों में काम किया। इसके साथ ही उन्होंने फिल्म स्टूडियो में रहकर फिल्म निर्माण की तकनीक सीखनी शुरू कर दी। इस बीच उनकी मुलाकात
स्टंट फिल्मों के नामी निर्देशक जी.पी.पवार से हुयी और वह उनके सहायक के तौर पर काम करने लगे । बतौर निर्देशक वर्ष 1938 प्रदर्शित फिल्म ..बहादुर किसान ..भगवान दादा के सिने करियर की पहली फिल्म थी जिसमें उन्होंने जी.पी.
पवार के साथ मिलकर निर्देशन किया था। इसके बाद उन्होंने राजा गोपीचंद, बदला, सुखी जीवन, बहादुर और दोस्ती जैसी कई फिल्मों का निर्देशन किया लेकिन ये सभी टिकट खिड़की पर असफल साबित हुईं।
वर्ष 1942 में भगवान दादा ने फिल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और जागृति पिक्चर्स की स्थापना की। इस बीच उन्होंने अपना संघर्ष जारी रखा और कई फिल्मों का निर्माण और निर्देशन किया लेकिन इससे उन्हें कोई खास फायदा नहीं पहुंचा। वर्ष 1947 में भगवान दादा ने अपना खुद का स्टूडियो ..जागृति स्टूडियो ..की स्थापना की। उनकी किस्मत का सितारा वर्ष 1951 में प्रदर्शित फिल्म ..अलबेला .. से चमका । राजकपूर के कहने पर भगवान दादा ने फिल्म ..अलबेला ..का निर्माण और निर्देशन किया। बेहतरीन गीत-संगीत और अभिनय से सजी इस फिल्म की कामयाबी ने भगवान दादा को .स्टार. के रूप में स्थापित कर दिया ।
आज भी इस फिल्म के सदाबहार गीत दर्शकों और श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देते हैं। सी.राम.चंद्र के संगीत निर्देशन में भगवान दादा पर फिल्माये गीत ..शोला जो भड़के दिल मेरा धड़के .. का उन दिनों युवाओं के बीच बड़ा क्रेज था। इसके अलावा ‘भोली सूरत दिल के खोटे नाम बड़े और दर्शन छोटे’, ‘शाम ढ़ले खिड़की तले तुम सीटी बजाना छोड़ दो’ भी श्रोतोओं के बीच लोकप्रिय हुए थे। फिल्म अलबेला की सफलता के बाद भगवान दादा ने झमेला, रंगीला, भला आदमी,
शोला जो भड़के और हल्ला गुल्ला जैसी फिल्मों का निर्देशन किया लेकिन ये सारी फिल्में टिकट खिड़की पर असफल साबित हुईं। इस बीच उनकी वर्ष 1956 में प्रदर्शित फिल्म ..भागम भाग ..हिट रही। वर्ष 1966 में प्रदर्शित फिल्म लाबेला बतौर निर्देशक भगवान दादा के सिने करियर की अंतिम फिल्म साबित हुयी। दुर्भाग्य से इस फिल्म को भी दर्शकों ने बुरी तरह नकार दिया ।
फिल्म ..लाबेला ..की असफलता के बाद बतौर निर्देशक भगवान दादा ने फिल्में बनानी बंद कर दी और बतौर अभिनेता भी उन्हें काम मिलना बंद हो गया। परिवार की जरूरत को पूरा करने के लिये उन्हें अपना बंगला और कार बेचकर एक छोटे से चाॅल में रहने के लिये विवश होना पड़ा । इसके बाद माहौल और फिल्मों के विषय की दिशा बदल जाने परवह चरित्र अभिनेता के रूप में काम करने लगे लेकिन नौबत यहां तक आ गई कि जो निर्माता-निर्देशक पहले उन्हें लेकर फिल्म बनाने के लिए लालायित रहते थे,उन्होंने भी उनसे मुंह मोड़ लिया। इस स्थिति में उन्होंने अपना गुजारा चलाने के लिए फिल्मों में छोटी-छोटी मामूली भूमिकाएं करनी शुर कर दीं ।
बाद में हालात ऐसे हो गए कि भगवान दादा को फिल्मों में काम मिलना लगभग बंद हो गया । हालात की मार और वक्त के सितम से बुरी तरह टूट चुके हिन्दी फिल्मों के स्वर्णिम युग के अभिनेता भगवान दादा ने चार फरवरी 2002 को गुमनामी के अंधरे में ही इस दुनिया को अलविदा कह दिया ।
वार्ता