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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी


जलवायु परिवर्तन के कारण विलुप्त हो रहे आर्कटिक हिरण

लंदन, 13 दिसम्बर (वार्ता) एक शोध के मुताबिक पृथ्वी के उत्तरी ध्रुव में स्थित अार्कटिक क्षेत्र में पाये जानेवाली हिरण पिछले दो दशकों में जलवायु परिवर्तन के कारण विलुप्त होने के कगार पर पहुंच गयी है। ब्रिटिश पारिस्थितिकी सोसाइटी की बैठक में यह तथ्य सामने आया है। इसमें कहा गया है कि वैज्ञानिकों ने नार्वे के स्वालबार्ड में कारिबू प्रजाति की हिरण का अध्ययन किया जिसमें वयस्क हिरन के औसत वजन में पिछले 16 साल की अवधि में 12 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गयी। वर्ष 1994 में पैदा हुए हिरणों का वजन 121 पाउंड हाेता था लेकिन वर्ष 2010 में यह गिरकर 106 पाउंड रह गया है। इसमें कहा गया है कि ये हिरण जलवायु परिवर्तन के प्रभाव के कारण भोजन पाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सर्दियों का मतलब होता है अधिक बारिश जिससे वहां बर्फ जम जाता है। इससे भोजन बर्फ के नीचे दब जाता है और वह वहां तक नहीं पहुंच पाते। इस कारण भूखे स्तनधारी जीव अपने बच्चे को भोजन नहीं करा पाते परिणामस्वरूप वह उन्हें खो देते हैं या छोटे आकार के बच्चों को पैदा करते हैं।


                   स्काॅटलैंड के जेम्स हट्टन इंस्टीट्यूट के पारिस्थितिकीविद प्रोफेसर स्टीव अल्बोन ने कहा, “ग्रीष्मकाल का मौसम इन हिरणों के लिए बढ़िया साबित हाेता है लेकिन ठंड के मौसम में इनकी समस्याएं बढ़ जाती है।” उन्होंने कहा, “अार्कटिक क्षेत्र के बर्फ में होनेवाली वृद्धि के कारण आनेवाले दशकों में अधिक छोटे हिरण देखने को मिल सकता है।” इस समय मादा हिरण अधिक बच्चों को पैदा कर रही है लेकिन इनका वजन और आकार सामान्य की अपेक्षा कम हो सकता है। 2015 के एक अध्ययन में पाया गया कि आर्कटिक में गर्म मौसम के बावजूद इन हिरणों की संख्या में बढ़ोतरी हो रही है लेकिन वे सभी भोजन के लिए अधिक संघर्ष कर रहे हैं। वर्ष 1990 से 1400 में से 800 जानवरों पर किये गये अध्ययन के मुताबिक गर्मी के मौसम में मादा हिरणों में गर्भधारण की संभावना अधिक होती है क्योंकि इस समय पाैधों की एक श्रृंखला मौजूद होती है। दुनिया के मुकाबले आर्कटिक में अौसत तापमान में तेजी से वृद्धि हो रही है जिससे वातावरण में ग्रीन हाउस गैसों का प्रभाव बढ़ गया है। सोनू वार्ता

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