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आंखों की रोशनी गंवा चुके आशीष ठाकुर ने रोशन किया जीवन

आंखों की रोशनी गंवा चुके आशीष ठाकुर ने रोशन किया जीवन

दरभंगा, 04 फरवरी (वार्ता) जीवन के घनघोर अंधेरे में भी यदि आत्मशक्ति जाग जाये तो इंसान मुश्किल से मुश्किल बाधा को पार कर सफलता के सोपान पर पहुंच जाता है।

कुछ ऐसी ही कहानी दृष्टि बाधिता को झुठलाते हुए देश की सर्वाधिक कठिन प्रतियोगी परीक्षा माने जाने वाले संघ लोक सेवा आयोग (यूपीएससी) की परीक्षा उत्तीर्ण होकर भारतीय डाक सेवा (आइपीएस) के अधिकारी बने बिहार के दरभंगा में डाक प्रशिक्षण केन्द्र के निदेशक आशीष सिंह ठाकुर की है। दृष्टि बाधित होने के बावजूद डाक प्रशिक्षण केन्द्र के निदेशक श्री ठाकुर चार राज्यों के इकलौते प्रशिक्षण केन्द्र का दायित्व सफलतापूर्वक संभाल रहें हैं।

छत्तीसगढ़ के बिलासपुर जिले के रहने वाले 40 वर्षीय आशीष सिंह ठाकुर अपनी कभी हार ना मानने की क्षमता और परिवार के लोगों के सहयोग की बदौलत न सिर्फ अपने लिये जिंदगी के मायने बदल दिये बल्कि समाज को भी प्रेरणा दी है। बाल्य अवस्था में ही नेत्रहीन हो चुके श्री ठाकुर की शिक्षा-दीक्षा सामान्य बच्चों की तरह सामान्य विद्यालय एवं महाविद्यालय में ही हुई है। इन्होंने ब्रेल लिपि का भी सहारा नहीं लिया और पाठ्यक्रम का ऑडियो रिकार्डिंग एवं स्वयं भी वर्ग में शिक्षकों से सुनकर अपनी पढ़ाई पूरी की है। वर्ष 1997 में बारहवीं की परीक्षा जीव विज्ञान विषय से एवं वर्ष 2000 में स्नातक कला की परीक्षा प्रथम श्रेणी में पास की।

इसके बाद गुरू घासी दास केन्द्रीय विश्वविद्यालय, छत्तीसगढ़ से वर्ष 2002 में उन्होंने इतिहास विषय से स्नातकोत्तर उत्तीर्ण कर गोल्ड मेडल प्राप्त किया। अपने विश्वविद्यालय के वे टॉपर बने। फिर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग से जेआरएफ और एसआरएफ में सफलता प्राप्त की। इतना पढ़ने के बाद भी वे नहीं रुके। इसके बाद उन्होंने ‘गांधीवाद और वामपंथ’ के अंतःक्रियात्मक संबंध’ विषय पर पीएचडी की। उन्होंने नौकरी के लिए छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं में भी सफलता प्राप्त की तथा वर्ष 2007 में उन्होंने छत्तीसगढ़ में सहायक आयुक्त वाणिज्यकर के रूप में दो वर्ष सेवा की।

पी.एच.डी. की उपाधि प्राप्त करने के बाद डॉ. ठाकुर को बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर बनने का मौका मिला पर उन्होंने इसे त्यागकर यूपीएससी की तैयारी की लेकिन प्रथम प्रयास 2006 में सफलता नहीं मिली। वर्ष 2009 में यूपीएससी में उन्होंने विकलांगता आरक्षण के आधार पर सफलता प्राप्त की और 435वां स्थान प्राप्त किया। उन्हें भारतीय डाक सेवा संवंर्ग प्राप्त हुआ। अगस्त 2009 में हैदराबाद के एमसीआरएचआरडी एवं गाजियाबाद में विभागीय प्रशिक्षण पाने के बाद 2011 में छत्तीसगढ़ के दुर्ग संभाग के छत्तीसगढ़ प्रवर अधीक्षक डाकघर के पद पर पदस्थापित हुए। 2015 में रायपुर संभाग में इसी पद पर रहे। 2018 में पदोन्नति लेकर निदेशक बने और पहली पदस्थापना डाक प्रशिक्षण केन्द्र दरभंगा में हुयी है।

इस प्रशिक्षण केन्द्र में चार राज्यों बिहार, झारखंड, ओडिशा एवं पश्चिम बंगाल के डाककर्मियों को प्रशिक्षित किया जाता है। यहां डाक विभाग के लिपिक, निरीक्षक के प्रशिक्षण के साथ-साथ विभाग के पदाधिकारियों को रिफ्रेसर कोर्स भी कराया जाता है। मृदुभाषी डॉ. ठाकुर की कार्यशैली से न सिर्फ यहां के कर्मी प्रसन्न हैं बल्कि प्रशिक्षण के लिए यहां आने वाले डाक विभाग के कर्मी भी उनके स्वभाव के कायल हैं।

डॉ. ठाकुर ने यूनीवार्ता से विशेष बातचीत में अपने अबतक के सफर को साझा करते हुए कहा कि वर्ष 1987 में 10 वर्ष की उम्र में उन्हें बुखार हुआ और उसके बाद वे अंधेपन के शिकार हो गये। शंकर नेत्रालय चेन्नई, अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान, नई दिल्ली और हैदराबाद में चिकित्सीय परीक्षण के बाद चिकित्सकों ने साफ कर दिया कि अब वे नहीं देख सकते है क्योंकि उन्हें न्यूरो रेटीनोटाइटिस हुआ है। उन्होंने कहा, “दृष्टिहीन हो जाने के बाद जीवन में अंधेरा छा गया। वह चिकित्सक (फिजिशियन) बनना चाहते थे। घर के लोगों खासकर माता-पिता, दादी और बड़े भाइयों ने प्रोत्साहित किया। मैंने भी नेपोलियन बोनापार्ट की तरह जीवन का लक्ष्य निर्धारित किया और आज इस मुकाम पर हूं। दो बच्चों के पिता आशीष सिंह ठाकुर की जीवनशैली से आम लोग भी प्रेरित हो रहे हैं।”

श्री ठाकुर ने बताया कि दृष्टिविहीन लोगों के लिए अब कम्प्यूटर और एंड्राॅयड फोन पर काम करना मुश्किल नहीं है। ऐसे लोगों के पठन-पाठन के लिए पहले से ही ब्रेल लिपि तो है ही अब कम्प्यूटर और मोबाईल पर भी विभिन्न एेप का इस्तेमाल हो रहा है। इतना ही नहीं ब्रेल लिपि की कीबोर्ड की उपलब्धता ने भी दृष्टिहीनों के तकनीकी काम काज को आसान कर दिया है। अपना उदाहरण देते हुए श्री ठाकुर ने बताया कि दृष्टिहीन होने के बावजूद इन एपलीकेशन एवं यंत्रों का सहयोग लेकर वे खुद को तकनीकी रूप से काफी सक्षम बना सके हैं।

दृष्टिविहीन होने के बावजूद श्री ठाकुर को अपने दैनिक कार्यों एवं जिम्मेवारियों को निभाने में कोई खास परेशानी नहीं होती है। कार्यलय के कार्यों के सम्पादन के लिए इन्हें सरकारी स्तर पर एक सहायक दिया गया है लेकिन उन्होंने स्वंय भी एक निजी सहायक रखा हैं। श्री ठाकुर बताते है कि पूर्व के पदस्थापन वाले स्थान पर वह औसतन एक सौ संचिकाओं का प्रतिदिन निष्पादन करते थे लेकिन यहां ऐसी संचिकाओं की संख्या अपेक्षाकृत काफी कम है। उन्होंने छत्तीसगढ़ संभाग में पदस्थापन के दौरान अपने कटु अनुभवों को साझाा करते हुए कहा कि इस दौरान वहां की यूनियन ने उनकी क्षमता पर प्रश्नचिह्न खड़े करते हुए उनके खिलाफ आंदोलन किया था। यूनियन ने उनकी शारीरिक अक्षमता को उच्च पदाधिकारियों तक पहुंचाने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी थी। लेकिन, मुझे क्षमता पर भरोसा है अपने कामों से इसे साबित भी किया।

नेत्रहीन लोगों के लिए संदेश देने की बाबत उन्होंने कहा कि संकीर्ण दृष्टि वाले समाज में नेत्रहीनता से पीड़ित लोगों को बेहद दयनीय दृष्टि से देखा जाता है और उन्हें काम के बुनियादी अवसर भी नहीं दिये जाते हैं। उन्होंने कहा कि समाज एवं परिवार के लोगों को नेत्रहीनों के प्रति अपने भाव में परिवर्तन लाना चाहिए और उनकी क्षमताओ और प्रतिभाओं को निखारने के लिए अवसर देने के साथ-साथ उन्हें हिम्मत भी देनी चाहिए। श्री ठाकुर ने कहा कि शारीरिक रूप से विकलांग लोगों की हौसला आफजाई के लिए सरकारी अवसरों को और ज्यादा बढ़ाया जाना चाहिए और उन्हें तकनीकी रूप से सक्षम बनाकर उनकी क्षमताओं का पूरी तरह इस्तेमाल किया जाना चाहिए।

 

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