नयी दिल्ली, 12 जनवरी (वार्ता) एक अमेरिकी गैर-लाभकारी सहायता समूह प्रोस्टेट कैंसर के उपचार के लिए एक्टिव सर्विलांस(एएस) पद्धति के प्रति जागरुकता पैदा करने के लिए देश में अपनी एक नयी शाखा खोलने की योजना बना रहा है।
एक्टिव सर्विलांस पेशेंट्स इंटरनेशनल(एएसपीआई) ने अपनी इस योजना के हिस्से के रूप में प्रोस्टेट कैंसर को पराजित करने वाले गोविंदा कुमार रामकृष्ण को अपने निदेशक मंडल में शामिल किया है। इससे इस अभियान के विश्वव्यापी संचालन को गति विशेष रूप से भारत में तेजी प्रदान की जा सकेगी।
एएस प्रणाली के साथ, कम जोखिम के प्रोस्टेट कैंसर वाले पुरुषों की चिकित्सकीय पेशेवर की मदद और तत्काल उपचार प्राप्त करने से पहले समय-समय पर नैदानिक परीक्षणों के साथ सावधानीपूर्वक निगरानी की जाती है। यह आजीवन होने वाले दुष्प्रभावों, जैसे मूत्र संबंधी समस्याएं और अन्य जोखिमों से बचाता है।
एएसपीआई बोर्ड के चेयरमैन मार्क लिचि ने एक बयान में कहा कि भारतीय शाखा प्रोस्टेट कैंसर से निपटने के लिए सर्वोत्तम प्रणालियों को लागू करने के लिए भारत में एक प्रभावी समूह के रूप में काम करेगा और सुनिश्चित करेगा कि ये प्रक्रियायें और जागरुकता समाज के सभी वर्गों तक पहुंचे।
उन्होंने कहा, “हमारा मुख्य ध्यान पुरुषों को एएस के साथ सहज महसूस करने में मदद करना और इस बात के लिए आश्वस्त करना है कि यदि आवश्यकता पड़ी तो उपचार किया जाएगा। इस तरह पुरुषों को गंभीर दीर्घकालिक दुष्प्रभावों से बचाया जा सकेगा। एएस के दौरान बिना किसी परेशानी के निगरानी की जा सकती है और हम पुरुषों को उस स्थिति तक पहुंचने में मदद करना चाहते हैं।”
श्री लिचि ने कहा, “चूंकि प्रोस्टेट कैंसर अन्य प्रकार के कैंसर की तुलना में धीमी गति से बढ़ता है, इसलिए बिना किसी उपचार के लंबे समय तक जीवित रहना संभव है। एक डॉक्टर की सहायता से उपचार करने से रोके रखने और वह किस गति से बढ़ रहा है, उसके संकेतों की निगरानी करने से, कम जोखिम वाले प्रोस्टेट कैंसर के रोगी के जीवन की गुणवत्ता पर कोई असर नहीं पड़ता है। इसके अलावा, एएस जीवन भर होने वाले दुष्प्रभावों से बचाने में भी मदद करेगा। ”
उन्होंने कहा कि कैंसर से बचे लोगों के अलावा यूरोलॉजिस्ट और ऑन्कोलॉजिस्ट का एक समूह वास्तविक उपचार की तुलना में एएस के लाभों के बारे में जागरुकता पैदा करने में संगठन को सहयोग दे रहा है।
उन्होंने कहा, “अमेरिका में हाल ही में किए गए एक अध्ययन, जिसमें 240 मूत्रविज्ञान प्रणालियों के डेटा शामिल थे, में पाया गया कि कम जोखिम वाले प्रोस्टेट कैंसर वाले लगभग 60 प्रतिशत अमेरिकी पुरुष एएस को अपना रहे हैं। क्योंकि पुरुष अपने जीवन की गुणवत्ता को बनाए रखना चाहते हैं, इसलिए एएस में बहुत ही नाटकीय रूप वृद्धि देखने को मिली
है। अमेरिका में, यह पिछले 12 वर्षों में यह वृद्धि छह प्रतिशत से बढ़कर 60 प्रतिशत हो गई है। स्वीडन में यह दर 94 प्रतिशत है।”
नवीनतम अध्ययनों के अनुसार, पहले की अपेक्षा, भारत में प्रोस्टेट कैंसर का प्रसार महानगरीय शहरों में रहने वाले 35 से 44 और 55 से 64 वर्ष के आयु वर्ग के पुरुषों में अधिक है। शहरी क्षेत्रों में ग्रामीण आबादी के बढ़ते प्रवास, बदलती जीवन शैली, बढ़ती जागरुकता और चिकित्सा सुविधाओं के आसानी से उपलब्ध होने के कारण, देश में प्रोस्टेट के मामलों की संख्या में वृद्धि देखी गयी है।
भारतीय चिकित्सा डेटा से पता चलता है कि देश में प्रोस्टेट कैंसर के बढ़ने की दर पश्चिमी देशों के समान ही है।
एएसपीआई का दृढ़ विश्वास है कि देश में अपनी शाखा खोलने से पुरुषों को प्रोस्टेट कैंसर से निपटने और उपचार के अकसर विनाशकारी दीर्घकालिक दुष्प्रभावों से बचने में मदद मिलेगी।
एएसपीआई को प्रोस्टेट कैंसर से जीवित बचे लोगों, रोगियों और देखभाल करने वालों द्वारा स्थापित और व्यवस्थित किया जाता है। एएसपीआई काे विश्वास है कि भारत में अपनी शाखा खोलने से पुरुषों को प्रोस्टेट कैंसर से निपटने और उपचार के अकसर विनाशकारी दीर्घकालिक दुष्प्रभावों से बचने में मदद मिलेगी।
रिपोर्टों के अनुसार, पुरुषों में प्रोस्टेट कैंसर दूसरा सबसे अधिक पाया जाने वाला कैंसर है। साथ ही, भारत स्थित राष्ट्रीय कैंसर रजिस्ट्री का कहना है कि प्रोस्टेट कैंसर की घटनाओं की दर में भारी वृद्धि हो रही है।
श्रवण मनोहर
वार्ता