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विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी


100 की उम्र में दौड़ती है ‘जिन्दगी’ जहां, 65 में बनती हैं कई मां

100 की उम्र में दौड़ती है ‘जिन्दगी’ जहां, 65 में बनती हैं कई मां

नयी दिल्ली, 22 दिसंबर (वार्ता) ‘आहार-विहार और लंबी उम्र’ के परस्पर गहरे संबंध पर वैज्ञानिकों की कसौटी पर खरा उतरी इस धरती पर एक जगह ऐसी भी है जहां लोग ढलती उम्र में भी सरपट दौड़ लगाते हैं और दादी-नानी की उम्र में कई महिलाएं बच्चों को जन्म देती हैं। आर्यावत की कोख में जन्मी यह ‘हुंजा दुनिया’ कभी भारत का अहम हिस्सा थी जो अब पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में गिलगिट-बाल्टिस्तान के पहाड़ों बसती है। हिमालय की पर्वतमाला पर स्थित हुंजा दुनिया की छत की कहलाता है। यह भारत के उत्तरी छोर पर स्थित है जहां से आगे भारत, पाकिस्तान, चीन, अफगानिस्तान की सीमाएं मिलती हैं। प्रकृति के साथ कदम से कदम मिलाकार चलने वाले हुंजा के लोगों की औसत उम्र 110से 120 वर्ष तक मानी जाती है। माना जाता है कि कई लोग तो 150 वर्ष तक भी जीवित रहे हैं और चलते-फिरते दुनिया से विदा हो गए। बेहतरीन जीवन शैली , उत्तम -आहार , नियमित व्यायाम और खुशमिजाज मनोस्थिति समेत अनेक ‘सदगुणों’की बदौलत यहां के लोग वाकई में जीने के लिए खाने की वैज्ञानिकों की सलाह पर अमल करते हैं और ताउम्र स्वस्थ ,‘जवां’ और सुंदर बने रहते हैं। कैंसर समेत अनेक जानलेवा बीमारियों से इनका संभवत: दूर का नाता है। इस समुदाय के लोगों को बुरुशो भी कहा जाता है। इनकी भाषा बुरुशास्की है । इन्हें सिंकदर महान की सेना का वंशज माना जाता है आैर कहा जाता है कि चौथी सदी में हुंजा बस्ती आबाद हुयी थी। इनकी आबादी लगभग 87 हजार है। पाकिस्तान के इस्लामाबाद स्थित इंस्टीट्यूट आॅफ मेडिकल साइंसेज के सीईओ एवं शहीद जुल्फिकार अली भुट्टो मेडिकल यूनिवर्सिटी वाइस चांसलर प्रोफसर(डॉ़ ) जावेद अकरम ने यूनीवार्ता के साथ विशेष बातचीत में आज कहा कि हुंजा घाटी को युवाओं का ‘नखलिस्तान’भी कहा जाता है। वर्ष 1984 में म्बुंदु नाम का एक शख्स जब लंदन एयरपोर्ट पर सिक्युरिटी चेक करवाने पहुंची, तो अधिकारी यह देखकर हैरान रह गये कि उनका जन्म वर्ष 1932 में हुआ था। उन्होंने पूरी तरह से उनकी उम्र के बारे में खोजबीन की और सही जानकारी के बाद ही उन्हें जाने दिया गया। इस घटना के बाद ही हुंजा के लोगों के बारे में अद्भुत जानकारियां दूर-दूर तक पहुंचीं। यहां के बाशिंदों की खास बात यह है कि ये बहुत खूबसूरत और जवान दिखते हैं। महिलाएं 65 साल तक की उम्र में भी संतान को जन्म दे सकती हैं। ऐसी महिलाओं का औसत 15 से 20 प्रतिशत है। उन्होंने कहा“यहां के लोगों ने यह साबित कर दिया है कि पौष्टिक खानपान और उत्तम जीवनशैली से उम्र को चकमा दिया जा सकता है तथा लंबा और स्वस्थ जीवन जीया जा सकता है। हुंजा के लोग खूब खुबानी(एप्रिकोट) खाते हैं जो एंटीकैंसर है। ” 


          प्रोफेसर अकरम के अनुसार हुंजा के लोग सुबह पांच बजे बिस्तर छोड़ देते हैं और 15 से 20 किलोमीटर की सैर करते हैं। यहां की साक्षरता दर करीब 90प्रतिशत है और यही वह वजह है जिससे ये लोग अपनी जीवनशैली के फायदे को समझते हैं । शिक्षित ,शांतिप्रिय एवं खुशमिजाज लोग बाहरी ताकतों के बहकावे में नहीं आते इसलिए आतंकवाद जैसे शब्द इनके लिए अजनबी-सा है। यहां के लोग तमाम आविष्कारों के बावजूद स्वयं पर विश्वास करते हैं और अपने हाथों उगाए फल एवं अनाज का ही सेवन करते हैं। ये लोग ऑर्गेनिक फूड उगाते हैं और उनके यहां खाद का प्रयोग वर्जित है। उन्होंने कहा“ गोरे-चिट्टे, हंसमुख और आसपास की आबादी से बिलकुल अलग दिखने वाले हुंजा के लोग शून्य के भी नीचे के तापमान पर ठंडे पानी से नहाते हैं। ये लोग वही खाना खाते हैं जो ये खुद उगाते हैं। खुबानी ,मेवा एवं सब्जियां अधिक खाते हैं और अनाज में जौ, बाजरा और कूट्टू पंसद करते हैं। ये लोग कम खाते हैं और पैदल ज्यादा चलते हैं। रोजाना 15 से 20 किलोमीटर तक चलना और टहलना इनकी जीवनशैली का अहम हिस्सा है। ये लोग केवल दो बार खाना खाते हैं। पहला भोजन बारह बजे और दूसरी दफा सूरज ढ़लने के साथ लेते हैं। वर्तमान में जीने पर विश्वास करने वाले हुंजा के लोग तनाव और चिंता नहीं पालते तथा बच्चों की तरह खिलखिलाती जिंदगी गुजारते हैं। ” प्रोफेसर अकरम ने कहा “ऐसी सकारात्मक सोच और आधुनिक जीवन की चकाचौंध से दूरी बनाने वाले हुंजावासी से हमें आज सीखने की जरूरत है कि कैसे हम स्वयं को स्वयं से और प्रकृति से जोड़कर एक स्वस्थ और लंबी जिन्दगी का सफर तय कर सकते हैं। आज की पीढ़ी को बर्गर और पिज्जा की ओर आकर्षित करने के लिए तरह -तरह के ‘हथकंडे’ अपनाए जा रहे हैं। मसलन कम दाम में अधिक मात्रा दी जा रही हैं ,बर्गर मील के साथ बच्चों को लुभाने वाले खिलौनों के ताेहफे पराेसे जा रहे हैं और उनके लिए खेलने और बर्थडे केक काटने और साथियों के साथ मस्ती करने के लिए सुंदर सजावट वाली जगह भी मुहैया करायी जा रही है। ऐसे में स्वास्थ्य वर्धक भोजन से बच्चे कटते जा रहे हैं और हमारी पीढी छोटी उम्र में ही कई प्रकार की गंभीर बीमारियों की गिरफ्त में आ रही है जबकि हुंजा घाटी को स्वास्थ्य ,सौहार्द,शिक्षा और सुरक्षा का ‘ओएसिस ’ कहा जाता है।” उन्होंने कहा “ हुंजा के लोग खुबानी का उपयोग अधिक करते हैं जिसमें विटामिन ए, बी कॉम्लेक्स और सी की मात्रा अत्यधिक होती है। यह आंखों और प्रजनन क्षमता के लिए फायदेमंद है। इसमें कई प्रकार के विटामिन और फाइबर होते हैं। खुबानी का फल ही नहीं इसका बीज भी बेहद सेहतमंद है। बीज में एंटी कैंसर विटामिन बी 17 प्रचुर मात्रा में होता है।” उन्होंने कहा “इतना ही नहीं ये लोग साल में दो से चार माह तक सूखी खुबानी के जूस पर रहते हैं। यह इनके रस्मो -रिवाज का हिस्सा है। आप अंदाज लगा सकते हैं कि 24 घंटे कड़ी मेहनत करने वाली हमारी शरीर रूपी मशीन को कितना आराम मिलता होगा ।


           राजस्थान में कोटा के डॉ़ ओपी वर्मा ने कहा “आयुर्वेद में प्राचीन काल से ही खुबानी का प्रयोग कैंसर के उपचार के लिए होता आया है। यह भी देखा गया है कि हिमालय की तराइयों में रहने वाले हंजा के लोगों में कैंसर विरले ही होता है। क्योंकि इनका मुख्य भोजन खुबानी और बाजरा है। ये खुबानी, उसके बीज और तेल सभी का भरपूर प्रयोग करते हैं। इनके भोजन में विटामिन बी-17 की मात्रा अमेरिकी भोजन से 200 गुना ज्यादा होती है। खुबानी के पेड़ ही इनकी सम्पत्ति होती है । ये लोग बहुत लम्बी उम्र जीते हैं। 115-120 वर्ष तक की उम्र आम बात है। इनकी महिलाओं की त्वचा बहुत मुलायम होती है और ये अपनी उम्र से 15-20 वर्ष युवा दिखती हैं। क्योंकि ये त्वचा पर खुबानी का तेल जो लगाती हैं।” डॉ वर्मा ने कहा कि कई वर्षों तक शोध करने के बाद सेन फ्रांसिस्को के विख्यात जीव रसायन विशेषज्ञ डॉ. अर्नेस्ट टी. क्रेब्स जूनियर ने 1950 में एक कैंसर रोधी विटामिन की खोज की जिसे उन्होंने विटामिन बी-17 या लेट्रियल या एमिग्डेलिन नाम दिया। यह उन्होंने खुबानी के बीज से विकसित किया। क्रेब्स ने वर्षों तक कैंसर के रोगियों का उपचार विटामिन बी-17 से किया और आश्चर्यजनक परिणाम प्राप्त किये। क्रेब्स ने पाया कि विटामिन बी-17 कैंसर कोशिकाओं के लिए अत्यंत घातक होता है, लेकिन यह सामान्य कोशिकाओं के लिए पूर्णतया सुरक्षित है। विटामिन बी-17 या लेट्रियल प्राकृतिक, पानी में घुलनशील पदार्थ है जो सभी जगह पाये जाने वाले लगभग 1200 पौधों के बीजों में पाया जाता है। इसके सबसे बड़े स्रोत खुबानी, आड़ू, आलू बुखारा, बादाम, सेब के बीज हैं। इनके अलावा ये नाशपाती, चेरी, बाजरा, काबुली चना, अंकुरित मूंग, अंकुरित मसूर, काजू, स्ट्रॉबेरी, रसबेरी, जामुन, अखरोट, चिया, तिल, अलसी, ओट, कूटू, भूरे चावल, रतालू, गैंहू के जवारे आदि में भी पाया जाता है। ब्रिटिश लेखक जेम्स हिल्टन ने वर्ष 1933 में “लॉस्ट होराइजन” उपन्यास लिखा था जिसमें उन्होंने खूबसूरत वादी ‘शंगरिला ’का जिक्र किया था। ऐसा माना जाता है कि इस लेखक ने हुंजा घाटी से प्रभावित होकर ही काल्पनिक शंगरिला गढ़ी होगी। पाकिस्तान में यूरोपियन यूनियन के पूर्व राजदूत लार्स जी विगेमार्क वर्ष 2014 में जब पहली बार हुंजा घाटी आये थे तो कहा था “ यह वास्तविक शंगरिला है।” आशा जितेन्द्र वार्ता


          

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