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भारतीय क्रिकेट के स्वर्णिम इतिहास को दिखाने का प्रयास

भारतीय क्रिकेट के स्वर्णिम इतिहास को दिखाने का प्रयास

नयी दिल्ली, 29 दिसंबर (वार्ता) भारतीय क्रिकेट के सबसे स्वर्णिम पल 1983 की विश्व कप जीत पर बनी फिल्म 83 रिलीज हो चुकी है और इस फिल्म में उस ऐतिहासिक पल को दिखाने का प्रयास किया गया है।

भारत को अपना पहला क्रिकेट विश्व कप जीते हुए अब लगभग 40 साल हो चुके हैं। यह इस सदी के क्रिकेट प्रेमियों के लिए एक प्राचीन कथा की तरह लग सकती है, ख़ासकर उनके लिए जिन्होंने भारत को ना सिर्फ़ लगातार जीतते हुए बल्कि विश्व क्रिकेट पर प्रभुत्व बनाते हुए देखा है, जिन्होंने भारत को चार साल में दो बार विश्व विजेता बनते हुए देखा है। लेकिन जब भारत के लिए एक मैच जीतना भी किसी सपने से कम नहीं होता था, उन क्रिकेट प्रशंसकों के लिए यह '83' मूवी उस समय को फिर से जीने जैसा है।

भारत ने इस विश्व कप के दौरान आठ मैच खेले थे और इस फ़िल्म में लगभग सभी आठ मैचों की कहानी को दिखाया गया है। फ़िल्म देखने के बाद लगा कि यह एक अविश्वसनीय यात्रा थी। फ़िल्म के कुछ सीन और म्यूज़िक कमाल का था।उस समय तक भारत विश्व कप में सिर्फ़ एक टीम को हरा पाया था। 1975 के विश्व कप में भारतीय टीम ने ईस्ट अफ़्रीका को हराया था। 1983 के विश्व कप में भारत ऑस्ट्रेलिया, वेस्टइंडीज़ और ज़िम्बाब्वे के ग्रुप में था और सभी टीमों के ख़िलाफ़ उसे दो-दो मुक़ाबले खेलने थे।

भारतीय टीम ने विश्व चैंपियन वेस्टइंडीज़ के ख़िलाफ़ अप्रत्याशित जीत दर्ज की और फिर ज़िम्बाब्वे को हराया। हालांकि इसके बाद उन्हें लगातार दो मैचों में ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज़ से बड़ी हार मिली। अब ज़िम्बाब्वे के ख़िलाफ़ होने वाला उनका पांचवां मैच करो या मरो का मैच था। वे इस मैच में 17 रन पर पांच विकेट की स्थिति पर जूझ रहे थे। लेकिन इसके बाद कपिल देव ने 175 रन की विश्व रिकॉर्ड पारी खेल भारत को जीत दिला दी। इस फ़िल्म में सबसे अधिक महत्वपूर्ण सीन कपिल देव की वह 175 रन की पारी ही थी, जिसे बीबीसी ने टीवी पर नहीं दिखाया था। फ़िल्म में उस पारी को फिर से हूबहू दिखाने का प्रयास किया गया है।

किसी सत्य और ऐतिहासिक घटना को पुनर्जीवित करना सबसे मुश्किल काम होता है। इस फ़िल्म में क्रिकेट मैचों के दौरान लांग शॉट्स, क्लोज़ शॉट्स से अधिक प्रभावी दिखे क्योंकि किसी भी परिस्थिति में आप अंतर्राष्ट्रीय स्तर के क्रिकेट मैच और खिलाड़ियों के जुनून को फ़िल्मी पर्दे पर हूबहू नहीं दिखा सकते हो। भले ही निर्देशक और अभिनेताओं ने पूरी बारिक़ी के साथ उन तमाम मैचों को फिर से जीवित करने की कोशिश हो लेकिन कहीं पर भी ऐसा नहीं लगा कि आप फ़िल्म की बजाय कोई क्रिकेट मैच देख रहे हैं।

फ़िल्म को बनाने वालों को भी यह बात पता थी कि वह चाहकर भी उस स्तर के क्रिकेट को फिर से ज़िंदा नहीं कर सकते इसलिए उन्होंने क्रिकेट की बजाय मैदान के अंदर और बाहर की छोटी-छोटी कहानियों को दिखाना अधिक उचित समझा। अगर आप यूट्यूब पर 1983 की टीम की बार-बार होने वाले रियूनियन पर नज़र रखते हैं, तो आपको ये कहानियां पहले से ही पता होंगी, जैसे टीम मीटिंग में कपिल देव की टूटी-फूटी अंग्रेज़ी, श्रीकांत की हनीमून ट्रिप की कहानी, संदीप पाटिल को टीम का मनोरंजन प्रमुख और रात्रि कप्तान बनाना आदि।

फ़िल्म के एक सीन के दौरान जतिन शर्मा और साहिल खट्टर क्रमशः यशपाल और सैयद किरमानी की भूमिका में श्रीकांत पहले ही कई बार सार्वजनिक मंचों पर कह चुके हैं कि उनका कप्तान 'पागल' था, जो पहले ही दिन से विश्व कप जीतने की बात कह रहा था। यह दिखाता है कि कप्तान का ख़ुद पर और टीम पर कितना विश्वास था। फ़िल्म में भी ऐसी कहानियों की पुनरावृत्ति हुई है।

यह फ़िल्म ना सिर्फ़ मैदान के अंदर बल्कि मैदान के बाहर की प्रमुख कहानियों को सामने लाती है। इस टीम के सभी खिलाड़ियों के बीच बेहतरीन भाई-चारा था।

राज

वार्ता

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