नयी दिल्ली, 15 अक्टूबर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय में लगभग अंतिम पड़ाव पर पहुंच चुकी अयोध्या विवाद की सुनवाई आज हिन्दू और मुस्लिम पक्षकारों के वकीलों के बीच तीखी नोकझोंक का गवाह बनी और मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई को हस्तक्षेप करना पड़ा।
न्यायालय में 39वें दिन की सुनवाई के दौरान हिन्दू पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता के. परासरण ने बहस की शुरुआत की। उन्होंने मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण तथा न्यायमूर्ति एस अब्दुल नज़ीर की संविधान पीठ के समक्ष कहा कि अयोध्या में 50 से 60 मस्जिद हैं तथा मुस्लिम कहीं और भी जाकर नमाज़ पढ़ सकते हैं, लेकिन यह राम का जन्मस्थान है, इसे बदला नहीं जा सकता।
श्री परासरण ने अपनी दलील में कहा कि किसी को भी भारत के इतिहास को तबाह करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। न्यायालय को इतिहास की गलती को ठीक करना चाहिए। एक विदेशी भारत में आकर अपने कानून लागू नहीं कर सकता है। उन्होंने अपनी दलील की शुरुआत भारत के इतिहास के साथ की। न्यायालय के निर्देश के बाद वकील वी.पी. शर्मा ने लिखित दलील के साथ कुरान के अंग्रेज़ी अनुवाद की कॉपी रजिस्ट्री को सौंपी। इसके साथ ही हिंदू और सिख धर्म ग्रंथ भी रजिस्ट्री को सौंपे जाएंगे।
हिंदू पक्षकार की ओर से श्री परासरण ने मंदिर के सबूत के तौर पर कुछ दस्तावेज़ संविधान पीठ को देने की गुजारिश की है। अदालत की ओर से दस्तावेज़ रजिस्ट्री को देने को कहा गया है। हिंदू पक्षकार महंत रामचंद्र दास के शिष्य सुरेश दास की ओर से वकील श्री परासरण अपनी दलीलें दे रहे थे। हिंदू पक्ष की ओर से निर्मोही अखाड़ा बुधवार को अपनी दलील रखेगा। निर्मोही अखाड़े के वकील सुशील जैन की मां की मृत्यु हो जाने के कारण वह अदालत नहीं पहुंच सके।
श्री परासरण ने भावनात्मक दलीलें रखते हुए कहा कि बाबर जैसे विदेशी आक्रांता को हिंदुस्तान के गौरवशाली इतिहास को ख़त्म करने की इजाज़त नहीं दी जा सकती। अयोध्या में राम मंदिर को विध्वंस कर मस्जिद का निर्माण एक ऐतिहासिक ग़लती थी, जिसे न्यायालय को अब ठीक करना चाहिए।
सुरेश आशा
जारी वार्ता