नई दिल्ली, 11 सितंबर (वार्ता) अयोध्या के राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद जमीन विवाद की उच्चतम न्यायालय में आज 21वें दिन सुनवाई हुई, जिसमें जहां सुनवाई के सीधे प्रसारण को लेकर याचिका का विशेष उल्लेख किया गया, वहीं सुन्नी वक्फ बोर्ड ने अपनी दलीलें आगे बढ़ाई।
मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति एस ए बोबडे, न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति एस. अब्दुल नजीर की संविधान पीठ के समक्ष सुन्नी वक्फ बोर्ड के वकील राजीव धवन ने हिंदू पक्ष के दावे पर सवाल उठाते हुए कहा, “क्या रामलला विराजमान कह सकते हैं कि उस जमीन पर मालिकाना हक़ उनका है? नहीं, क्योंकि उनका मालिकाना हक़ कभी नहीं रहा है।”
श्री धवन ने 1962 में दिए गए शीर्ष अदालत के एक फैसले का हवाला देते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले पर सवाल उठाया और कहा कि जो गलती पहले हो चुकी है, उसे जारी नहीं रखा जाना चाहिए। उन्होंने दलील दी कि यह साबित करने की कोशिश की जा रही है कि जमीन पहले हिन्दू पक्षकारों के अधिकार में थी, जो सही नहीं है।
श्री धवन ने आगे कहा कि निर्मोही अखाड़ा ने गैरकानूनी कब्जा चबूतरे पर किया, उस पर मजिस्ट्रेट ने नोटिस कर दिया जिसके बाद से न्यायिक समीक्षा शुरू हुई और एक ‘गलत’ नोटिस के चलते आज शीर्ष अदालत में सुनवाई चल रही है।
संविधान पीठ भोजनावकाश से पहले नहीं बैठी थी। भोजनावकाश के बाद जब सुनवाई शुरू हुई, तो पूर्व संघ प्रचारक के. एन. गोविंदाचार्य की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता विकास सिंह इस मामले की सुनवाई के सीधे प्रसारण संबंधी याचिका विशेष उल्लेख किया, जिस पर शीर्ष अदालत ने कहा कि वह इस पर 16 सितंबर को सुनवाई करेगी।
पिछली सुनवाई के दौरान न्यायालय ने कहा था, यह बहुत ही संवेदनशील मामला है। श्री गोविंदाचार्य की याचिका में अयोध्या मामले की सुनवाई के सीधे प्रसारण या रिकॉर्डिंग की मांग की गई है।
श्री गोविंदाचार्य ने याचिका में कहा है कि यह मामला राष्ट्रीय महत्व का है। याचिकाकर्ता समेत करोड़ों लोग इस सुनवाई का हिस्सा बनना चाहते हैं। उन्होंने सितंबर, 2018 के शीर्ष अदालत के उस आदेश का हवाला दिया है जिसमें अहम संवैधानिक मामलों में सीधे प्रसारण की शुरुआत करने की बात कही गई थी।
अयोध्या विवाद की सुनवाई कल भी जारी रहेगी।
सुरेश.श्रवण
वार्ता