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आजाद की मां की समाधि झेल रही है उपेक्षा का दंश

आजाद की मां की समाधि झेल रही है उपेक्षा का दंश

झांसी 22 जुलाई (वार्ता) भारत मां की आजादी के लिए अपना र्स्वस्व न्यौछावर करने वाले महानायक चंद्रशेखर आजाद की मां जगरानी देवी की उत्तर प्रदेश के झांसी स्थित समाधि सरकारी उदासीनता के कारण उपेक्षा का दंश झेल रही है।

इस महान स्वतंत्रता सेनानी की जयंती के अवसर पर कल शहर में कई कार्यक्रम आयोजित किये जायेंगे और सरकारी अमला तथा लोग भी उनकी प्रतिमा पर माल्यार्पण करेंगे लेकिन भारत मां को गुलामी की बेडियों से आजाद कराने के लिए सब कुछ बलिदान करने वाले आजाद की खुद की मां की समाधि कल भी अंधेरी ही रह जायोगी। इस भागादौड़ में किसी के पास इतना समय नहीं कि ऐसे वीर सपूत को जन्म देनी वाली जगरानी देवी को भी याद कर लिया जाए जबकि उस दौर में जगरानी देवी की हमसफर रही 95 साल की नूरजहां आपा ने यूनीवार्ता को बताया कि मैं और जगरानी जी सुख दुख के साथी थे। झुर्रियों से भरे चेहरे पर कंपकंपाते हाेठों से वीर शहीद के परिवार के बारे में बताते हुए नूरजहां आपा की आंखों में गजब की चमक दिखायी दे रही थी और लग रहा था कि तिवारी जी,जगरानी जी और उनके बच्चों चंद्रशेखर और सुखदेव को लेकर उनकी सारी स्मृतियां ताजा हो गयीं है।

इस उम्र में भी बेहद अच्छी याद्दाश्त के साथ उन्होंने बताया कि मेरा पीहर और ससुराल दोनों ही भाबरा का ही है। मेरे पति जान मोहम्मद हैड साहब थे और आजाद के हमसखा थे। दोनों का बचपन साथ ही गुजरा । खाने से लेकर कबड्डी तक और कंचे खेलने से लेकर पतंग उड़ाने तक सब कुछ दोनों ने साथ साथ किया। आजाद अपनी मां का बहुत ख्याल रखते थे ।बेहद जल्दी वह आजादी की जंग में शिरकत करने के लिए घर से बाहर निकल गये थे लेकिन मां की परवाह हमेशा उन्हें बनी रहती थी।

पिता तिवारी जी के देहांत के बाद आजाद जब भी घर आते तो नूरजहां और पास पडोस के लोगों को दो चार रूपये दे जाते थे और मां का ध्यान रखने को कहते थे। जैसे जैसे आजादी का जुनून नौजवानों पर बढा तो छोटा बेटा सुखदेव भी घर छोडकर चला गया। जगरानीजी अब घर में अकेली थी तो नूरजहां से ही अपना दुख सुख कहती थीं। नूरजहां अकेले होने के कारण कभी कभी उन्हें खाना भी बनाकर दे जातीं थीं। जगरानी देवी को अपने बेटे आजाद पर बहुत गर्व था वह कहती थीं “ यह मेरा बेटा तो है लेकिन वह अब भारत मां का सपूत हो गया है।”

आजाद की मौत की सूचना जब जगरानी जी को मिली तो मैं भी उनके साथ थी। इस बडे धक्के के बाद जगरानी जी बहुत टूट गयीं और बहुत रोयीं। आजाद के शहीद होने के बाद तो जगरानी जी और आंसुओं का चोली दामन का साथ हो गया। जब तक जगरानी जी भाबरा में रहीं तक तक हमारा चूल्हा चौका चक्की खाना सब साथ में ही चला लेकिन इसके बाद वह झांसी चलीं गयीं तो उसके बाद मेरा उनसे मिलना नहीं हो पाया फिर काफी समय बाद जगरानी जी के भी देहांत की सूचना मिली और उनके जाने के साथ ही आजाद के परिवार से वो गहरा जुड़ाव अब केवल मेेरी स्मृतियों में ही बचा है।

सोनिया

वार्ता

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