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बैकग्रांउड म्यूजिक के महारथी थे बसंत देसाई

बैकग्रांउड म्यूजिक के महारथी थे बसंत देसाई

मुंबई. 21 दिसंबर (वार्ता) अपनी मधुर संगीत लहरियों से फिल्मी दुनिया को सजाने संवारने वाले महान संगीतकार बसंत देसाई के संगीतबद्व गीतों की रोशनी फिल्म जगत की सतरंगी दुनिया को हमेशा रोशन करती रहेगी। वर्ष 1914 में गोवा के कुदाल में जन्मे बसंत देसाई को बचपन के दिनों से ही संगीत के प्रति रुचि थी। कुछ वर्ष के बाद वह अच्छी शिक्षा के लिये अपने मामा के पास महाराष्ट्र आ गये। स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद वह रंगमंच से जुड़ गये और नाटकों में अभिनय करने लगे। नाटकों से प्राप्त आय से उन्होंने एक पुराना हारमोनियम खरीद लिया और उससे शास्त्रीय संगीत का रियाज करना शुरू कर दिया। वर्ष 1929 में वह महराष्ट्र से कोल्हापुर आ गये। वर्ष 1930 में उन्हें प्रभात फिल्म्स की मूक फिल्म “खूनी खंजर” में अभिनय करने का मौका मिला। वर्ष 1932 में बसंत देसाई को “अयोध्या का राजा” में संगीतकार गोविंद राव टेंडे के सहायक के तौर पर काम करने का मौका मिला। इन सबके साथ हीं उन्हें इस फिल्म में के लिये गाने का भी मौका मिला। गीत के बोल कुछ इस प्रकार के थे “जय जय राजाधिराज” इस बीच बसंत देसाई फिल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिये संघर्ष करते रहे। वर्ष 1934 में प्रदर्शित फिल्म “अमृत मंथन” में गाया उनका यह गीत ‘बरसन लगी’ श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय हुआ।


इस बीच बसंत देसाई को यह महसूस हुआ कि पार्श्वगायन के बजाये संगीतकार के रूप में उनका भविष्य ज्यादा सुरक्षित रहेगा। इसके बाद उन्होंने उस्ताद आलम खान और उस्ताद इनायत खान से संगीत की शिक्षा लेनी शुरू कर दी। लगभग चार वर्ष तक वह मराठी नाटकों में भी संगीत देते रहे। वर्ष 1942 में प्रदर्शित फिल्म “शोभा” के जरिये बतौर संगीतकार उन्होंने अपने सिने करियर की शुरूआत की लेकिन फिल्म की असफलता से वह बतौर संगीतकार अपनी पहचान नहीं बना सके। वर्ष 1943 में व्ही शांताराम अपनी “शकुंतला” के लिए संगीतकार की तलाश कर रहे थे। वह इसके पूर्व व्ही शांताराम की खूनी खंजर, अयोध्या का राजा, धर्मात्मा और अमर ज्योति जैसी फिल्मों में अभिनय कर चुके थे। इसके साथ हीं व्ही शांताराम बसंत देसाई के संगीत बनाने के अंदाज से भी प्रभावित थे। व्ही शांताराम ने यह निश्चय किया कि इस बार फिल्म का संगीत बंसत देसाई का हो। उन्होंने उनको अपने पास बुलाया और अपनी फिल्म शकुंतला में संगीत देने की पेशकश की। इस फिल्म ने सफलता के नये कीर्तिमान स्थापित किये। फिल्म ने लगातार 104सप्ताह तक चलने का रिकार्ड बनाया। फिल्म “शकुंतला” की सफलता के बाद बसंत देसाई संगीतकार के रूप में अपनी पहचान बनाने में सफल हो गये । वर्ष 1957 में बंसत देसाई के संगीत निर्देशन में दो आंखे बारह हाथ का यह गीत गीत “ऐ मालिक तेरे बंदे हम” आज भी श्रोताओं के बीच काफी लोकप्रिय है इस गीत की लोकप्रियता का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि पंजाब सरकार ने इस गीत को सभी विद्यालयों में प्रातःकालीन प्रार्थना सभा में शामिल कर लिया।


वर्ष 1964 में प्रदर्शित फिल्म “यादें” बसंत देसाई के करियर की अहम फिल्म साबित हुयी। इस फिल्म में उनको यह जिम्मेवारी दी गयी थी कि फिल्म के पात्र के निजी जिंदगी के संस्मरणों को बैकग्रांउड स्कोर के माध्यम से पेश करना है। उन्होंने इस बात को एक चुनौती के रूप में लिया और सर्वश्रेष्ठ बैकग्राउड संगीत देकर फिल्म को अमर बना दिया। इसी तरह वर्ष 1974 में जब फिल्म निर्माता गुलजार बिना किसी गानों के फिल्म “अचानक” का निर्माण कर रहे थे तब उन्हें बसंत देसाई का ही ध्यान आया और उनसे अपनी फिल्म में पार्श्वसंगीत, बैकग्राउंड म्यूजिक देने की पेशकश की और इस बार भी वह कसौटी पर खरे उतरे और फिल्म के लिये श्रेष्ठ पार्श्व संगीत दिया। हमेशा अपने संगीत से श्रोताओं को कुछ नया देने वाले बसंत देसाई ने फिल्म “आशीर्वाद” में अभिनेता अशोक कुमार को “रेल गाडी रेल गाड़ी” गाने का मौका दिया। फिल्म का यह गीत बच्चों के बीच काफी लोकप्रिय साबित हुआ। उन्होंने हिंदी फिल्मों के अलावा लगभग 20 मराठी फिल्मो के लिये भी संगीत दिया जिसमें सभी फिल्में सुपरहिट साबित हुयी । 22 दिंसबर 1975 को एच.एम. भी स्टूडियो से रिकार्डिग पूरी करने के बाद वह अपने घर पहुंचे। जैसे हीं उन्होंने अपने अपार्टमेंट की लिफ्ट में कदम रखा किसी तकनीकी खराबी के कारण लिफ्ट उन पर गिर पड़ी और जिससे उनकी मौत हो गयी। बसंत देसाई का मानना था कि अधिक फिल्मों के लिये संगीत देने से अच्छा है अच्छा संगीत देना। उन्होंने लगभग चार दशक अपने सिने कैरियर में महज 46 फिल्मों को संगीतबद्ध किया । प्रेम, उप्रेती वार्ता

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