नयी दिल्ली 05 अप्रैल ( वार्ता ) राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के सह सर कार्यवाह डा. कृष्ण गोपाल ने कहा है कि संघ देश के तमाम मुस्लिम बंधुओं को आमंत्रित करता है कि वह आरएसएस के विरुद्ध फैलाई गई भ्रांतियों से गुमराह होने की बजाए अपने प्रश्न सामने रखकर शंकाएँ दूर करें ।
संघ प्रमुख मोहन राव भागवत की पुस्तक ‘भविष्य का भारत’ के उर्दू संस्करण ‘मुस्तकबिल का भारत’ के सोमवार को यहाँ विमोचन समारोह में डा. कृष्णगोपाल ने कहा कि संघ प्रमुख की इस पुस्तक के ज़रिए संघ के प्रति फैलायी गयी भ्रांतियों और शंकाओं के समाधान के प्रयास किए गए हैं। देश के विभिन्न वर्गों और सम्प्रदायों के लोगों के बीच एक दूसरे के प्रति भ्रांतियां रखना उचित नहीं और समाज में दूरी रहने से देश एकजुट नहीं रह सकता ।
उन्होंने कहा कि देश के लोगों के बीच विभाजन की मानसिकता अनुचित है। जिन लोगों की देश के प्रति निष्ठा है और आस्था है वह सब एक हैं । भारत के विभिन्न भागों में बसने वाले तमाम पंथ और भाषाओं के लोगों के विचारों और पद्धतियों के प्रति परस्पर सम्मान और स्वीकार्यता ज़रूरी है और यही भारत की पहचान है।
डा. कृष्णगोपाल ने कहा हिंदुत्व का भारतीय दर्शन सभी के बीच परस्पर समन्वय, सम्मान और स्वीकार्यता में विश्वास करता है। देश दुनिया के जितने भी पंथ हैं अगर वे सबके मंगल और सुख की कामना करते हैं तो वे भी हिंदुत्व के दर्शन को बढ़ाने में ही योगदान देते हैं ।
उन्होंने कहा,“समृद्ध आचार विचार और संस्कृति से हिंदुत्व की पहचान होती है न की पूजा पद्धतियों से। हिंदू एक प्रवाह है जिसमें सबका योगदान है। सबके मंगल की कामना करने का नाम हिंदुत्व है । हम इसे छोटे दायरे में नहीं रख सकते । हज़ारों प्रकार की विविधताओं, आचार विचार में भिन्नताओं के बावजूद सबके प्रति मंगल की कामना करने की एकरूपता का हिंदुत्व भाव है जो लोगों को जोड़े रखती है । त्याग संयम और सबके प्रति कृतज्ञता हिंदुत्व का लक्षण है ।”
डा. कृष्णगोपाल ने कहा,“देश का इतिहास गौरवशाली रहा है। आर्थिक, सामाजिक और शिक्षा की दृष्टि से भारत श्रेष्ठ था लेकिन समय के साथ हम पिछड़ गए । संघ का उद्देश्य उसी भारत का गौरव लौटाने का है ताकि देश के पुराने वैभव को प्राप्त भविष्य के स्वर्णिम भारत का निर्माण किया जा सके ।”
राष्ट्रीय उर्दू भाषा विकास परिषद की ओर से इस पुस्तक विमोचन समारोह का आयोजन किया गया था । परिषद के निदेशक अकील अहमद ने श्री भागवत की पुस्तक का उर्दू में अनुवाद किया है ।
प्रणव.संजय
वार्ता