भोपाल, 12 जुलाई (वार्ता) मध्यप्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता गोपाल भार्गव ने वित्त वर्ष 2019 20 के बजट को यथार्थ से परे बताते हुए आज कहा कि यदि इसी तरह सच्चायी से मुंह मोड़े रखा तो आने वाले दिनों में वित्तीय मोर्चे पर सरकार को काफी विपरीत स्थितियों का सामना करना पड़ेगा।
श्री भार्गव ने बजट पर हुयी सामान्य चर्चा में हिस्सा लेते हुए कहा कि बजट में राजस्व संग्रहण के जो अनुमान लगाए हैं, वे वास्तविकता से परे दिखायी देते हैं। जीएसटी राजस्व में 70 प्रतिशत की वृद्धि दर्शायी गयी है। ऐसा होने केंद्र से प्राप्त होने वाली क्षतिपूर्ति राशि स्वयं ही कम हो जाएगी। उन्होंने अनेक आकड़े देते हुए कहा कि बजट में कुछ और तकनीकी खामियां भी हैं, जिसका असर वास्तवित राजस्व संग्रहण पर पड़ेगा। सरकार ने बजट का आकार बड़ा (दो लाख 33 हजार करोड़ रूपए) करने के लिए वास्तविकता से ध्यान मोड़ा है।
श्री भार्गव ने सरकार को चेताते हुए कहा कि ऐसा नहीं होने पर आने वाले दिनों में सरकार को वेतन देने में तक परेशानी आने लगेगी। उन्होंने पिछड़े डेढ दशक से अधिक समय के आकड़ों का हवाला देते हुए कहा कि पंद्रह वर्षों में भाजपा सरकार ने सड़क, बिजली, पानी, सिंचाई के अलावा अन्य क्षेत्रों में भी तरक्की की है। लेकिन सरकार से अब स्थितियां संभल नहीं रही हैं, तो वह पूर्ववर्ती सरकार के दोष दिखाने लगती है।
श्री भार्गव ने राज्य के कुछ सहकारी बैंकों में राज्य सरकार के शेयर प्रारंभ करने के कथित कदम का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसा होने पर भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) संबंधित बैंकों के लायसेंस निरस्त कर देगा और बैंक परेशानी में आ जाएंगे।
श्री भार्गव ने नोट गिनने की मशीन से संबंधित टिप्पणी भी की, जिस पर हंगामे जैसे आसार बन गए और सत्तारूढ़ दल कांग्रेस के सदस्यों और मंत्रियों ने भी पूर्ववर्ती भाजपा सरकार को निशाने पर लिया। इस बात को लेकर कुछ देर तक टीका टिप्पणियां हुयीं। श्री भार्गव ने राज्य की वर्तमान सरकार द्वारा छह माह के दौरान किए गए तबादलों पर भी सवाल उठाए।
श्री भार्गव के पहले आज सदन में भाजपा के वरिष्ठ विधायक विश्वास सारंग ने भी चर्चा में हिस्सा लिया। उन्होंने भी बजट प्रस्तावों का विरोध किया और सरकार की खामियां गिनाने का प्रयास किया। कांग्रेस के फुंदीलाल मार्को ने चर्चा में शामिल होते हुए बजट को ऐतिहासिक निरुपित किया और कहा कि इस सरकार ने आदिवासियों के हित में भी अनेक प्रावधान किए हैं।
प्रशांत
वार्ता