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इस मौके पर कालिदास संस्कृत विश्वविद्यालय, महाराष्ट्र के कुलपति आचार्य श्रीनिवास वरखेड़ी ने कहा कि मिथिला और विदर्भ का शास्त्रीय एवं पौराणिक संबंध रहा है। उन्होंने बताया कि विष्णु के अवतार कृष्ण की पत्नी रुक्मिणी की जन्म स्थली विदर्भ रही है। उसी तरह विष्णु के ही अवतार पुरुषोत्तम राम की धर्म पत्नी सीता की जन्मस्थली मिथिला है। ऐसे में मिथिला एवं विदर्भ का सम्बंध प्रगाढ़ होना स्वाभाविक है।
श्री वरखेड़ी ने शास्त्रीय परम्परा को सर्वोपरि बताया और कहा कि जिस तरह अगले वर्ष उत्पादन के लिए बीज की रक्षा की जाती है ठीक उसी तरह वेदों पुराणों में वर्णित आदर्शों को अक्षुण्ण रखने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि लोककल्याण के लिए अब नव अन्वेषण जरूरी है। संस्कृतानुरागी को चाहिए कि वे संस्कृत भाषा मे कही गयी अनुद्धरित बातों की खोज करे। पिस्ट प्रेषण से हमसभी बचें। बेहतर होगा कि एक ऐसे कैम्पस का निर्माण हो जहां अध्यापन से लेकर हर गतिविधि संस्कृत में ही हो।
कुलपति ने भारतीयता को संदर्भित करते हुए कहा कि मिथिला में मैथिली, पश्चिम बंगाल में बंगाली, तमिलनाडु में तमिल यानी स्थान विशेष में क्षेत्रीय भाषा बोली जाती है लेकिन भारत की एक ही भाषा है जिसे हम भारतीय कहते हैं और वह एकमात्र संस्कृत है। दुनिया की सभी भाषओं की जननी संस्कृत रही है। इसके अलावा उन्होंने संस्कृत विश्वविद्यालय की स्थापना के वर्तमान औचित्य को भी रेखांकित किया।
सं सूरज उमेश
वार्ता
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