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मौसम ने साथ दिया तो बिहार की लीचियां होंगी और रसीली

मौसम ने साथ दिया तो बिहार की लीचियां होंगी और रसीली

मुजफ्फरपुर 18 मार्च (वार्ता) लाल, मीठी और रसीली लीचियों के लिए मशहूर मुजफ्फरपुर इस बार देश-दुनिया के लोगों को अपने लाजवाब स्वाद एवं रस से तृप्त करायेगा या तरसायेगा यह तो मौसम के मिजाज पर निर्भर करेगा लेकिन पेड़ों पर लगे मंजर को देखकर अच्छी पैदावार की उम्मीद जरूर की जा सकती है।

         लीचियों का राजा कही जाने वाली ‘शाही लीची’ के लिए मशहूर मुजफ्फरपुर के साथ ही पूर्वी चंपारण, मधुबनी एवं बेगूसराय के बाग-बागीचों में पेड़ पर लगे मंज़र को देख आशा बंधती है कि यदि मौसम अनुकूल रहा तो इस बार लीची की अच्छी फसल होगी। इससे किसानों के साथ ही व्यापारियों की आमदनी भी बढ़ेगी।

         राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र, मुसहरी के निदेशक डाॅ. विशाल नाथ लीची के पेड़ों पर लगे फूलों ( मंजर) को देखकर आशान्वित हैं कि असमय प्रचंड धूप, तेज पछुआ हवा, आंधी-तूफान और ओले तथा कीटों के कहर से बच जाने पर इस बार लीची की फसल अच्छी होगी। उन्होंने बताया कि इस वर्ष बिहार में लीची का उत्पादन तीन लाख टन से अधिक होने का अनुमान है।

         डाॅ. नाथ ने बताया कि देश में प्रतिवर्ष करीब छह लाख टन लीची का उत्पादन होता है जिसमें 50 प्रतिशत योगदान बिहार में होने वाली लीचियों का होता है। बिहार में उच्च गुणवत्ता के साथ ही लीचियों के अधिक उत्पादन के मामले में मुजफ्फरपुर हमेशा शीर्ष पर रहता है। इसके अलावा पूर्वी चंपारण, मधुबनी और बेगूसराय जिले में भी लीची की बागवानी की जाती है।

        निदेशक ने बताया कि लीची की बागवानी शहद उत्पादन में काफी सहायक होता है। इन क्षेत्रों में लीची का उत्पादन बड़े पैमाने पर होने के कारण बाग-बागीचों की कमी नहीं है इसलिए यहां शहद उत्पादन की अपार संभावनाएं हैं। उन्होंने बताया कि किसानों को शहद उत्पादन की ओर आकर्षित करने के लिए सरकार के स्तर पर काफी प्रयास भी हो रहें हैं और इसका फायदा भी लोगों को दिखने लगा है।

डॉ. नाथ ने बताया कि राष्ट्रीय कृषि अनुसंधान केन्द्र लीची और शहद उत्पादन के क्षेत्र में नये अनुसंधान कर रहा है और इससे कृषकों को भी अवगत कराया जा रहा है। उन्होंने किसानों से अपील की है कि बागीचे में मधु के छत्तेवाले बॉक्स पर्याप्त संख्या में रखें ताकि शहद का अधिक से अधिक उत्पादन हो सके।

वार्ता

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