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वाणिज्यिक अदालतों के अधिकार क्षेत्र में बदलाव संबंधी विधेयक पर संसद की मुहर

वाणिज्यिक अदालतों के अधिकार क्षेत्र में बदलाव संबंधी विधेयक पर संसद की मुहर

नयी दिल्ली, 10 अगस्त (वार्ता) कारोबार को अधिक सुगम बनाने तथा प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) को आकर्षित करने के इरादे से वाणिज्यि से संबंधित विवादों के त्वरित समाधान के प्रावधान वाले विधेयक पर शुक्रवार को संसद की मुहर लग गयी। इसमें वाणिज्यिक अदालतों के एक करोड़ रुपये के विवाद निपटाने के अधिकार क्षेत्र को घटाकर तीन लाख रुपये किया गया है।

वाणिज्यिक न्यायालय, उच्च न्यायालय वाणिज्यिक प्रभाग और वाणिज्यिक अपील प्रभाग (संशोधन) विधेयक 2018 को राज्यसभा ने मानसून सत्र के अंतिम दिन ध्वनिमत से पारित किया। लोकसभा इस विधेयक को पिछले सप्ताह पारित कर चुकी है। यह विधेयक इस संबंध में मई में लाए गये वाणिज्यिक न्यायालय, उच्च न्यायालय वाणिज्यिक प्रभाग और वाणिज्यिक अपील प्रभाग (संशोधन) अध्यादेश 2018 का स्थान लेगा।

विधि एवं न्याय मंत्री रवि शंकर प्रसाद ने विधेयक पर हुई चर्चा का जवाब देेते हुए कहा कि सरकार न्यायपालिका में भर्ती के लिए अखिल भारतीय न्यायिक सेवा शुरू करना चाहती है और इसमें अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति और पिछड़े वर्ग को आरक्षण भी देना चाहती है। उन्होंने कहा कि अब कानून की पढ़ाई में अच्छे बच्चे आने लगे हैं।

श्री प्रसाद ने कहा कि वह न्यायपालिका से अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति वकीलों के साथ ही महिलाओं को भी अवसर दिये जाने का अनुरोध करते हैं ताकि इस वर्ग से भी लोग न्यायाधीश बन सकें। हालांकि कुछ उच्च न्यायालय इसका विरोध करते हैं।

उन्होंने विधेयक का उल्लेख करते हुये कहा कि इसका मकसद छोटे कारोबारियों को त्वरित न्याय दिलाना है। उन्होंने इसे ऐतिहािसक कदम बताया और कहा कि इससे बड़े उद्योगपतियों तथा छोटे कारोबारियों के वाणिज्यिक मसलों को एक ही अदालत में सुलझाया जा सकेगा।

विधेयक पर चर्चा में कांग्रेस के भुवनेश्वर कलिता, भारतीय जनता पार्टी के हर्षवर्द्धन सिंह डुंगरपुर, अन्नाद्रमुक के ए विजय कुमार, जनता दल यू के रामनाथ ठाकुर, राष्ट्रीय जनता दल के मनोज कुमार झा और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के डी राजा ने भाग लिया।

अरुण/ शेखर

वार्ता

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