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लोकरुचि


‘योगी राज’ में भी विकास को तरस रही महायोगी की जन्मभूमि

‘योगी राज’ में भी विकास को तरस रही महायोगी की जन्मभूमि

गोण्डा, 21 अप्रैल (वार्ता) उत्तर प्रदेश मे देवी पाटन मंडल मुख्यालय गोण्डा जिले के वजीरगंज कोडर गांव मे स्थित महायोगी महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली आज भी विकास को तरस रही है।

महर्षि पतंजलि न्यास के अध्यक्ष स्वामी भगवदाचार्य ने आज ‘यूनीवार्ता’ को बताया “ भले ही अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर केन्द्र , राज्य सरकार व पतंजलि योगपीठ जगह जगह प्रशिक्षण शिविरों के माध्यम से योग के लिये प्रयासरत हो लेकिन योग प्रणेता महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली की बदहाली पर किसी का ध्यान नही है। ”

उन्होने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ,यूनेस्को और केन्द्र सरकार ने महायोगी पतंजलि का जन्मस्थान गोण्डा को जो कि पूर्व मे गोनर्द के नाम से जाना जाता था माना है। पतंजलि के जन्मस्थान के जीर्णोंद्धार के लिये कई बार सरकार से अनुरोध किया गया लेकिन योग का सम्मान करने वाले प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली सरकारों मे अभी तक यहाँ किसी प्रकार के विकास या जीर्णोंद्धार की कोई घोषणा व पहल तक नही की है। ”

न्यास के अध्यक्ष ने कहा कि महर्षि पंतजलि के नाम का भरपूर इस्तेमाल करने वाले योगगुरू स्वामी रामदेव की दृष्टि भी कोडर गांव की ओर नही पडी है हालांकि पिछली सरकारों के नुमाइंदों ने कोडर गांव का दौरा कर सिर्फ घोषणाओ की खानापूर्ति की।

उन्होने कहा कि पिछली अखिलेश सरकार ने जिले के कर्नलगंज तहसील क्षेत्र मे महर्षि पतंजलि सूचना प्रौद्योगिकी एवं पालीटेक्निक कॉलेज का निर्माण कार्य शुरू कराया। इसके अलावा जिलाधिकारी आशुतोष निरंजन के नेतृत्व मे नगर मे महर्षि पतंजलि स्पोर्ट्स काम्प्लेक्स की शुरुआत करायी थी लेकिन महर्षि की जन्मस्थली कोडर का कोई विकास नही हो सका।

         स्वामी भगवदाचार्य ने बताया कि कोडर गांव मे स्थित झील की हालत बदतर है। यहाँ दूर दराज से आने वाले आगंतुकों के लिये कोई आश्रम,धर्मशाला अथवा स्वास्थ के लिये कोई सुविधा नही है। शुद्ध पेयजल ,विद्युत ,खानपान व अन्य तमाम संसाधनों का नामों निशान तक नही है। इस संबन्ध मे केन्द्र व राज्य सरकारों को पत्र के माध्यम से कई बार न्यास समिति ने अनुरोध किया है।

बहरहाल स्थानीय संसाधनों को एकत्र कर स्वामी भगवदाचार्य के नेतृत्व मे प्रतिवर्ष 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर कोडर झील के किनारे योग शिविर का कार्यक्रम आयोजित कर संगोष्ठी करायी जाती है।

मान्यताओ के अनुसार ,विक्रम संवत दो हजार वर्ष पूर्व श्रावण मास की शुक्ल पंचमी को महर्षि पतंजलि ने गोनर्द की पावन धरती पर जन्म लिया। उनकी माता का नाम गोणिका था। वे व्याकरण महाभाष्य के रचयिता है। उन्हे ज्ञान और भक्ति की प्राप्ति कोडर झील के किनारे बैठ कर हुई थी। शेषावतार माने जाने वाले पतंजलि त्रिजट ब्राह्मण थे। विद्वानों के अनुसार ,सूत्रकार ,वृत्तिकार और भाष्यकार त्रिजट ब्राह्मणों की तीन जटाओं के प्रतीक है।

इस संबन्ध मे पतंजलि का अनोखा ' भाष्य ग्रंथ ' विश्व मे प्रचलित हुआ। इसकी शैली सर्वथा भिन्न होने के कारण इस शैली का दूसरा कोई ग्रंथ नही है। महर्षि ने काशी को बनारस के नागकुआ के पास अपनी कर्मभूमि बनायी। उन्होने अपने ग्रंथ महाभाष्य मे स्वयं को कई बार गोनर्दीय कहा है। विद्वानों ने महर्षि पतंजलि की व्याख्या करते हुये लिखा है कि

'पत्रन्ति अज्जलया स्मिन इति पतंजलि '।

 

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