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2016 में पूर्वोत्तर में सत्ता के पायदान पर भाजपा ने रखा कदम

2016 में पूर्वोत्तर में सत्ता के पायदान पर भाजपा ने रखा कदम

गुवाहाटी 28 दिसम्बर(वार्ता) भारतीय जनता पार्टी(भाजपा) ने अपने वर्ष 2016 में असम विधानसभा चुनाव में भारी जीत हासिल करके पहली बार सत्ता के पायदान पर कदम रखा और क्षेत्रीय सहयोगी दलों के साथ सरकार बनाई। असम में लगातार तीन चुनाव में जीत हासिल कर सत्ता में काबिज रही कांग्रेस के लिये यह पतन का वर्ष साबित हुआ जब गत अप्रैल में हुये विधानसभा चुनाव में उसे करारी हार मिली और इसी के साथ भाजपा ने अपने राजनीति के इतिहास में एक और मील का पत्थर गढा । भाजपा ने फायर ब्रांड पूर्व छात्र नेता और और बाद में केंद्रीय मंत्री बने सर्वानंद सोनोवाल के नेतृत्व में गठबंधन सरकार बनाई। चुनाव में विशेष उम्मीदवारों को प्रमुखता देने वाली पूर्ववर्ती कांग्रेसी सरकार से आक्रोशित प्रदेश की जनता ने कांग्रेस के विकल्प के रुप में भाजपा और क्षेत्रीय दलों के गठबंधन को तरजीह दी। आम जनता के इस बदले तेवर का फायदा भाजपा को मिला और 2011 के विधानसभा चुनाव में उसके निर्वाचित विधायकों की संख्या इस साल के चुनाव में बढ़कर 60 हो गई और बाद में हुये उपचुनाव में जीत के बाद यह आंकड़ा 61 हो गया। असम गण परिषद(अगप) के लिये यह वर्ष एक तरह से पुनरोत्थान का रहा , जिसने गत विधानसभा चुनाव में 10 सीटें हासिल की, जबकि चुनाव गठबंधन में भाजपा के अन्य प्रमुख सहयोगी रहे बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट(बीपीएफ) के 12 सदस्य निर्वाचित हुये, हालांकि पिछली विधानसभा में भी बीपीएफ के इतने ही सदस्य थे। कांग्रेस के लिये यह वर्ष घोर निराशाजनक साबित हुआ। वर्ष 2011 के विधानसभा चुनाव में 79 सीटें फतह करने वाली यह पार्टी इस साल के चुनाव में 26 सीटों पर सिमट गयी। कांग्रेस के साथ तब एक दुखद पहलू यह भी जुड़ा , जब उसके एक निर्वाचित विधायक ने पार्टी छोड़कर भाजपा का दामन थाम लिया और सत्तारुढ़ भाजपा के उम्मीदवार के तौर पर जीत हासिल की। 


            असम में वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में पराजय का स्वाद चख चुकी कांग्रेस बीते दो वर्षों में अपने वोटबैंक को दुरुस्त करने में विफल रही। बाद के चुनाव में कमजोर उम्मीदवारों का चयन प्रमुख सीटों पर पार्टी की हार की मुख्य वजह रही। इसके अलावा 2016 के चुनाव में एक प्रमुख राजनीतिक ताकत माना जा रहा अखिल भारतीय लोकतांत्रिक मोर्चा(एआईयूडीएफ) अपनी स्थिति बरकरार रखने में असफल रहा और पिछले विधानसभा चुनाव में 18 सीटों की तुलना में इस बार 13 सीटें ही मिली। एआईयूडीएफ प्रमुख मौलाना बदरुद्दीन अजमल स्वयं दक्षिण सलमारा विधानसभा सीट से हार गये । यह सीट ढुबरी लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत है, जहां का वह प्रतिनिधित्व करते हैं। पड़ोसी देशों से यहां आये धार्मिक अल्पसंख्यकों को नागरिकता का अधिकार तथा राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) का उन्नयन प्रदेश का ज्वलंत मुद्दाें में प्रमुख रहा तथा अब तक अनसुलझे ये दोनों मुद्दे नये वर्ष में भी छाये रहेंगे। भाजपा ने हालांकि प्रदेश में बाहर से आये हिन्दू बंगालियों को नागरिकता दिये जाने का समर्थन किया है लेकिन पार्टी की राज्य इकाई का एक धड़ा इस मुद्दे को दरकिनार करने का प्रयास कर रहा है। 


 

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