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दृष्टिहीनता पर हावी है अनूठा हुनर

उदयपुर 01 दिसम्बर (वार्ता)राजस्थान के उदयपुर के रहने वाले दृष्टिहीन भगवत सिंह खमेसरा ने न केवल अपनी दृष्टिहीनता के अभिशाप को पछाडा है बल्कि हस्त कलाओं के क्षेत्र में नया मुकाम हासिल किया है। मात्र 15 साल की आयु में आँखों की रोशनी से वंचित होने के बावजूद वे जिस खूबसूरती से केनिंग एवं डोरमेट का काम कर रहे हैं वह स्वावलम्बन से जीवन निर्वाह के इच्छुकों के लिए प्रेरणा का स्रोत होने के साथ ही दृष्टिहीनों के सम्मान एवं स्वाभिमान को भी गौरवान्वित करने वाला है। पिछले कई वर्षो से शहर के विभिन्न सरकारी कार्यालयों, संस्थाओं, विद्यालयों आदि में केनिंग का कार्य करके अपना गुजारा कर रहे हैं। 12 नवम्बर 1942 को जन्मे भगवत सिंह बचपन से दृष्टिहीन नहीं थे। पन्द्रह साल की उम्र के करीब उनकी आँखों में धुंधलेपन की शिकायत रहने लगी। इसके इलाज के लिए विशेषज्ञों की राय से सीतापुर (मध्यप्रदेश) में आँखों का ऑपरेशन भी करवाया और इलाज के सारे उपाय अपनाए लेकिन नियति को कुछ और ही मंजूर था। कुछ समय बाद भगवतसिंह की दोनों आँखें खराब हो गई और दिखना बिल्कुल बंद हो गया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। श्री भगवतसिंह अहमदाबाद स्थित दृष्टिहीन बच्चों के प्रशिक्षण स्कूल में प्रशिक्षण के लिए गये लेकिन गुजराती भाषा नहीं जानने के अभाव में वहां से निराशा ही हाथ लगी। लेकिन उस विद्यालय के प्रिंसिपल ने उन्हें माउण्ट आबू स्थित दृष्टिहीन व्यक्तियों के पुनर्वास केन्द्र में जाने की सलाह दी और वहां से माउण्ट आबू आ गये। जुलाई 1979 में माउण्ट आबू में खमेसरा ने बड़ी लगन के साथ केनिंग और डोरमेट का प्रशिक्षण प्राप्त किया। वहां उन्होंने एक वर्षीय प्रशिक्षण के दौरान ब्रेल लिपि द्वारा नोटों की जांच, चलना, वस्तुओं की पहचान करना, घास कटाई, गाय का दूध निकालना आदि का प्रशिक्षण प्राप्त किया। केनिंग में दक्षता हासिल कर चुके खमेसरा के इस हुनर ने खूब सराहना पायी। उन्हें जिला स्तर एवं विभिन्न संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया गया। आज अपना लघु उद्योग चलाकर अन्य लोगों के लिए प्रेरणा का स्रोत बने हुए हैं वहीं औरों को भी रोजगार दे रहे है। पिछले तीन दशकों में वे हजारों कुर्सियों की केनिंग कर चुके हैं वहीं सैकड़ों डोरमेट भी बनाए हैं। हालांकि अब कच्चा माल नहीं मिल पाने की वजह डोरमेट के काम को उन्होंने विराम दे रखा है लेकिन साल भर में औसत 400 से 500 कुर्सियों एवं अन्य फर्निचर की केनिंग वे करते हैं। दो दर्जन से अधिक लोगों को केनिंग सिखाकर वे रोजगार दे चुके हैं। उनसे सीखे हुए हुनरमंद लोग अब आत्मनिर्भर बने हुए हैं। इस समय उनके साथ चार-पाँच सहयोगी हैं जिन्हें रोजगार मिल रहा है। रामसिंह अजय वार्ता

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