मुंबई 06 मार्च (वार्ता) बाॅलीवुड फिल्मों और टेलीविजन सीरियलों में अपने अभिनय से धाक जमाने वाली बुजुर्ग अदाकारा शम्मी का 89 साल की उम्र में निधन हो गया।
बाॅलीवुड में शम्मी आंटी के नाम से लोकप्रिय अदाकारा काफी दिनों से बीमार थीं और सोमवार की देर रात उनका निधन हुआ। उन्हें अंतिम बार फराह खान और बोमन ईरानी की फिल्म ‘शीरीं फरहाद की तो निकल पड़ी’ में देखा गया था। उनका असली नाम नर्गिस राबदी था। उनकी फिल्मों में ‘कुली नंबर 1’ ,‘खुदा गवाह’ , ‘हम’, ‘द बर्निंग ट्रेन’ जैसी प्रसिद्ध फिल्में शामिल हैं। शम्मी आंटी ने टेलीविजन पर प्रसारित ‘देख भाई देख’ , ‘श्रीमान श्रीमती’, ‘जबान संभाल के’ और ‘कभी ये कभी वो’ जैसे शो से प्रशंसकों का दिल जीता।
सदी के महानायक अमिताभ बचन ने आज टि्वटर पर शोक व्यक्त किया। उन्होंने लिखा,“शम्मी आंटी बेहतरीन अदाकारा और हमारी पारिवारिक मित्र, फिल्म जगत को अपने वर्षों के योगदान के बाद दुनिया से चली गईं। वह लंबी बीमारी से जूझ रही थीं दुखद .. धीरे धीरे कर सभी बिछड़ते जा रहे हैं।” उन्होंने टि्वटर पर उनकी कुछ तस्वीरें भी पोस्ट की हैं।
वर्ष 2003 में प्रदर्शित फिल्म ‘ओम जय जगदीश’ के जरिये अनुपम खेर ने फिल्म निर्देशन के क्षेत्र में भी कदम रखा। हालांकि फिल्म टिकट खिड़की पर बुरी तरह से विफल साबित हुयी। वर्ष 2005 में अनुपम खेर ने फिल्म ‘मैंने गांधी को नहीं मारा’ का निर्माण किया। इस फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिये उन्हें कराची इंटरनेशनल फिल्म फेस्टिवल में पुरस्कार से सम्मानित किया गया। अनुपम खेर ने कई हॉलीवुड फिल्मों में भी अपने अभिनय का जौहर दिखाया है।
वर्ष 1984 में अनुपम खेर को महेश भट्ट की फिल्म ‘सारांश’ में काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में उन्होंने एक वृद्ध पिता की भूमिका निभाई जिसके पुत्र की असमय मृत्यु हो जाती है। अपने इस किरदार को अनुपम खेर ने
संजीदगी के साथ निभाकर दर्शकों का दिल जीत लिया। साथ ही सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये।
वर्ष 1986 में अनुपम खेर को सुभाष घई की फिल्म ‘कर्मा’ में बतौर खलनायक काम करने का अवसर मिला। इस फिल्म में उनके सामने अभिनय सम्राट दिलीप कुमार थे लेकिन अनुपम खेर अपने दमदार अभिनय से दर्शकों का दिल
जीतने में सफल रहे। फिल्म की सफलता के बाद बतौर खलनायक वह अपनी पहचान बनाने में सफल रहे।
अपने अभिनय में आई एकरूपता को बदलने और स्वयं को चरित्र अभिनेता के रूप में भी स्थापित करने के लिये अनुपम खेर ने अपनी भूमिकाओं में परिवर्तन किया। इस क्रम में वर्ष 1989 में प्रदर्शित सुभाष घई की सुपरहिट फिल्म ‘राम लखन’ में उन्होंने फिल्म अभिनेत्री माधुरी दीक्षित के पिता की भूमिका निभायी। फिल्म में उनके दमदार अभिनय के लिये सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया।
वर्ष 1989 में अनुपम खेर के सिने करियर की एक और अहम फिल्म डैडी प्रदर्शित हुयी। फिल्म में अपने भावुक किरदार को अनुपम खेर ने सधे हुये अंदाज में निभाकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया। अपने दमदार अभिनय के लिये वह फिल्म फेयर समीक्षक पुरस्कार और राष्ट्रीय पुरस्कार के स्पेशल ज्यूरी पुरस्कार से भी सम्मानित किये गये।
2000 के दशक में अनुपम खेर ने दर्शकों की पसंद को देखते हुये छोटे पर्दे का भी रुख किया और ‘से ना समथिंग टू अनुपम अंकल’ और ‘सवाल दस करोड़ का’ बतौर होस्ट काम कर दर्शकों का भरपूर मनोरंजन किया। वर्ष 2007 में अपने मित्र सतीश कौशिक के साथ मिलकर अनुपम खेर ने करोग बाग प्रोडक्शन कंपनी की स्थापना की जिसके बैनर तले ‘तेरे संग’ का निर्माण किया गया।
अनुपम खेर को अपने सिने करियर में आठ बार फिल्म फेयर पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। फिल्मों में कई भूमिकाएं निभाने के बाद अनुपम खेर नेशनल सेंसर बोर्ड के अध्यक्ष भी बने। इसके अलावा उन्होंने नेशनल स्कूल ऑफ
ड्रामा में बतौर निदेशक 2001 से 2004 तक काम किया। फिल्म क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान को देखते हुये अनुपम खेर को पद्मश्री और पद्मभूषण सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है।
अनुपम खेर ने अपने तीन दशक लंबे सिने करियर में लगभग 500 फिल्मों में काम किया है। अनुपम खेर आज भी जोशोखरोश के साथ फिल्म इंडस्ट्री में सक्रिय हैं।
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