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टूटी सदियों पुरानी परंपरा, प्रयागराज में दंगल का आयोजन नहीं

टूटी सदियों पुरानी परंपरा, प्रयागराज में दंगल का आयोजन नहीं

प्रयागराज, 25 जुलाई (वार्ता) वैश्विक महामारी कोविड-19 ने सदियों से तीर्थ नगरी प्रयागराज में चली आ रही नागपंचमी पर अखाड़ों में दंगल की प्राचीन परंपरा पर फौरी तौर पर विराम लगा दिया है।

कोरोना वायरस के संक्रमण के बढ़ते प्रकोप को देखते हुए हर बार की तरह इस बार नाग पंचमी पर शहर की पहचान रखने वाले अखाड़ों में कुश्ती और दंगल के आयोजन नहीं हुये। अखाड़ों में मंत्रोच्चार के बीच सिर्फ पूजन किया गया।

लोकनाथ व्यायामशाला के मंत्री राम केसरवानी ने बताया कि इस बार दंगल रद्द कर दिया गया है। सिर्फ परंपरा का निर्वाहन करते हुए अखाड़ा से जुड़े कुछ लोग मंदिर में हनुमत लला का पूजन एवं अखाड़ा पूजन किया। वहीं, कल्याणी देवी के ऐतिहासिक अखाड़े में भी सिर्फ अखाड़ा पूजन और हनुमान जी के पूजन तक ही कार्यक्रम हुआ। दारागंज के प्राचीन रघुनाथदास व्यायामशाला में भी पूजन तक ही कार्यक्रम सीमित रहा।

केसरवानी ने बताया कि जाने-माने समाजसेवी छुन्नन गुरू ने इसका पुनरूर्द्धार कराया था। यह व्यायामशाला बहुत प्राचीन है। डिस्ट्रिक्ट चैंपियन का ताज हासिल करने वाले भोला पहलवान ने इस अखाड़े को नई पहचान दी थी। पचास साल बीतने के बाद भी अखाड़े का रुतबा उसी तरह से कायम है।

केसरवानी ने बताया कि पहले शहर में कई अखाड़ों में परंपरा का निर्वाह किया जाता था। दो दशक पहले तक 30 व्यायामशाला हुआ करती थी लेकिन अब गिने चुने ही व्यायामशाला ही रह गये हैं। उनमें सबसे बड़ी लोकनाथ व्यायामशाला है। वर्तमान में इसे जिले का सबसे बड़ा अखाड़ा कहलाने का गौरव प्राप्त है। इसके अलावा भी कई व्यायामशाला है लेकिन सक्रिय कुछ ही हैं। उन्होंने बताया कि प्रयागराज (इलाहाबाद) के व्यायामशाला में शेरे हिंद दारा सिंह, चंदगी राम, गामा पहलवान जैसे नामचीन पहलवान भी अपनी उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं।

लोकनाथ व्यायामशाला के पूर्व सदस्य अभय अवस्थी ने बताया कि शहर में गिनी चुनी व्यायामशाला बची हैं जिनमें कल्याणी देवी मंदिर के पास स्थित अखाड़ा, रघुनाथ व्यायामशाला जैसे कुछ नाम बचे हैं। व्यायामशालाओं की जगह अब वातानुकुलित जिम ने ले ली है।

देश की आजादी के बाद से इस अखाड़े में साल दर साल नागपंचमी के दिन दंगल का आयोजन एक परंपरा के रूप में किया जाता रहा है। सबसे बड़ी बात यह कि इस दंगल में कोई विजेता या पराजित नहीं होता, केवल स्वच्छ मनोरंजन और युवाओं को कुश्ती के प्रति आकर्षित करने के लिए इस तरह का आयोजन किया जाता था।

अवस्थी ने बताया कि पहले गांव में यह परंपरा थी लेकिन बाद में इसे शहरों ने ग्रहण कर लिया। साल भर तैयारी करने के बाद युवा इस दिन अपने टैलेंट का प्रदर्शन करते हैं। अच्छा प्रदर्शन करने वाले पहलवान को इंटर डिस्ट्रिक्ट या स्टेट चैंपियनशिप में भेजा जाता है। इस परंपरा के जरिए युवाओं को स्वस्थ, आत्मनिर्भर और मजबूत बनाने का संदेश दिया जाता है।

दिनेश राज

वार्ता

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