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लोकरुचि


सीमा सुरक्षा बल के सरंक्षण में राष्ट्रीय पक्षी का बढ़ता कुनबा

सीमा सुरक्षा बल के सरंक्षण में राष्ट्रीय पक्षी का बढ़ता कुनबा

बाडमेर 22 मई (वार्ता) राजस्थान से लगती पाकिस्तान अन्तर्राष्ट्रीय सीमावर्ती क्षेत्रोंं में सीमा सुरक्षा बल के संरक्षण में राष्ट्रीय पक्षी मोरो की संख्या में इजाफाा हुआ हैं। बाड़मेर जिले की सरहद पर सीमा सुरक्षा बल के जवान मोरों के सरंक्षक बने हुए हैं और सीमावर्ती अग्रिम पोस्टों पर बल के अधिकारियों और जवानों की दिन चर्या मोरों के साथ शुरू होती है। सुरक्षा बल की मुनाबाव ,तामलोर ,गडरा , मिठडाऊ ,देवा ,बी के डी ,केलनोर ,स्वरूपाें का तला , हुर्रो का तला ,जैसी सैकड़ों पोस्ट है जंहा सैकड़ों मोरों का सरंक्षण होता हैं । बल के जवान और अधिकारी अपने हाथों से मोरों को चुगा खिलाते हैं और हर केम्पस में मोरों के लिए पानी ,दाना और छाया की अलग से व्यवस्था कर रखी हैं। पिछले एक दशक में थार रेगिस्तान के ग्रामीण इलाकों की रौनक माने जाने वाले मोर विलुप्त से हो गए । घटते पेड़ों के कारण मोरों की संख्या भी नहीं के बराबर हो गई थी लेकिन अब मोर आबू के पहाड़ों में नहीं सीमा सुरक्षा बल के कैम्पसों में बोलते हैं। जैव विविधता थार के रेगिस्तान में खतरे में है और इस मरुस्थलीय क्षेत्र में वन्य जीवों की कई प्रजातियां सरंक्षण के अभाव में विलुप्त हो गयी। थार के ग्रामीण इलाकों में कभी बहुतायत पाये जाने वाले राष्ट्रीय पक्षी मोरों की विलुप्ति पर्यावरण प्रेमियों के लिए चिंता का विषय बनी। मरुस्थलीय क्षेत्रों में मोरों की बहुतायत का अंदाज़ इस बात से लगाया जा सकता है कि राजस्थानी लोक गीतों में मोरों पर कई गीत बने हुए हैं। मोरिया आछो बोल्यो रे धलती ,मोर बोले रे ओ मलजी आबू रे पहाडों में ,जैसे कई गीत मोर की सांस्कृतिक महत्ता को दर्शाते हैं । सं/ तेज मनोहर जारी वार्ता

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