Thursday, Apr 25 2024 | Time 01:06 Hrs(IST)
image
फीचर्स


बजट लाेकलुभावन होने के आसार

बजट लाेकलुभावन होने के आसार

(सुषमा रामचंद्रन से)


नयी दिल्ली 17 जनवरी (वार्ता) अगले आम चुनाव से ठीक पहले आठ राज्यों में हाेने वाले चुनावों को देखते हुये आगामी एक फरवरी को पेश होने वाले बजट के लोकलुभावन होने के पूरे आसार हैं।


बजट तैयार करने में जुटे वित्त मंत्री अरुण जेटली और माेदी सरकार को अपने प्रत्येक नीतिगत निर्णय के राजनीतिक नफे नुकसान का पूरा आकलन करना होगा। बजट को अक्सर राजनीतिक दस्तावेज की संज्ञा दी जाती है। यह विशेषण इस समय और भी सटीक दिखायी देता है, जबकि देश में 2019 के आम चुनावों से ऐन पहले कम से कम आठ राज्यों में विधानसभा चुनाव होने जा रहे हैं। ऐसे में इस बात पर कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिये कि इस बार का बजट सुधारवादी कम और जनभावनाओं के अनुरूप ज्यादा हो।

सरकार ने प्रतिकूल सार्वजनिक प्रतिक्रिया होने का अंदेशा होने के बावजूद नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) जैसे अर्थव्यवस्था में आमूल-चूल बदलाव लाने वाले उपाय करने का जोखिम उठाया है। ऐसे में माना जा रहा है कि इस बार का बजट जन भावनाओं के अनुरूप होगा, हालांकि इसमें कारोबार के अनुकूल सुधार शामिल होंगे।

लोकलुभावन कदमों के रूप में बजट वेतनभोगी वर्ग के लिए आयकर मेें राहत की कुछ सौगात ला सकता है। समय की मांग है कि मध्यम वर्ग के हाथ में और ज्यादा पैसा दिया जाए। इससे वस्तुओं और सेवाओं की खरीद बढ़ेगी, जिससे अंतत: मांग में बढ़ोत्तरी और अर्थव्यवस्था में वृद्धि होगी। मध्यम वर्ग को दी जाने वाली रियायतें आयकर छूट की सीमा बढ़ाने या कुछ खास बचत साधनों में निवेश की सीमा बढ़ाने के रूप में हो सकती हैं। वरिष्ठ नागरिकों को भी कुछ कर लाभ दिए जा सकते हैं, जिनकी तादाद देश में बढ़ रही है।

यह बजट इसलिए भी अतीत के बजटों से काफी अलग होगा क्योंकि ज्यादातर अप्रत्यक्ष कर अब जीएसटी में शामिल किए जा चुके हैं। इनमें वृद्धि या कमी करने का फैसला केवल जीएसटी परिषद ही ले सकती है। इसलिए अप्रत्यक्ष करों में आमतौर पर होने वाले बदलाव अब संभव नहीं हैं। पेट्रोलियम उत्पाद अब तक इसके दायरे से बाहर हैं। जब दुनिया में तेल की कीमतों में बेतहाशा वृद्धि हो रही है, ऐसे में राहत पहुंचाने के लिए पेट्रोलियम उत्पाद शुल्कों में कमी की जा सकती है।

वित्त वर्ष 2017-18 में विकास दर 6.5 प्रतिशत रहने की संभावना है जो चार साल में सबसे कम है। इस तथ्य को देखते हुए बजट प्रस्तावों में सार्वजनिक और निजी निवेश के साथ अर्थव्यवस्था में नई जान डालने पर विशेष ध्यान दिया जा सकता है। एक अन्य प्रमुख क्षेत्र-ढांचागत क्षेत्र में भी सड़क, रेलवे और बिजली क्षेत्र को दिए जाने वाले प्रोत्साहनों और रियायतों सहित आवंटन में बढ़ोत्तरी देखने को मिल सकती है। नए इंफ्रास्ट्रक्चर बॉड्स भी जारी किए जा सकते हैं।

आवास भी एक अन्य महत्वपूर्ण क्षेत्र है, जिसके अंतर्गत निर्माण को बढ़ावा देने के लिए रियायतें दी जा सकती हैं। मंत्रालय से परिव्यय में तीन गुणा वृद्धि चाहता है। यह रोजगार सृजन करने वाला क्षेत्र है, एेसे में इसमें महत्वपूर्ण वृद्धि अपरिहार्य है। बजट प्रस्तावों में कौशल विकास और राेजगार के मामलों पर भी ध्यान दिए जाने की संभावना है।

जहां तक कारोपोरेट करों में कटौती का सवाल है, वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 2015 में ही इसे 30 से घटा कर 25 प्रतिशत पर लाने की बात कर चुके हैं। वर्तमान में भारत में इसकी दर 30 प्रतिशत से अधिक है, जो क्षेत्र के अधिकांश अन्य देशों से अधिक है। श्री जेटली के सामने संसाधनों में वृद्धि करने की बड़ी समस्या है। कच्चे तेल के दामों में लगातार हो रही वृद्धि के कारण इस साल आयात बिल बहुत बढ़ गया है। इसके अलावा जीएसटी आरंभ हो जाने के कारण राजस्व का प्रवाह भी अपेक्षा से कम रहा है। राजस्व संग्रह अधिक नहीं है, ऐसे में वित्त मंत्री के लिए कारपोरेट करों में कमी लाने की दिशा में आगे बढ़ना मुमकिन नहीं है।

वित्तीय घाटा भी इस समय एक महत्वपूर्ण विषय है। वर्ष 2017-18 में इसके 3.2 प्रतिशत रहने का अनुमान व्यक्त किया गया था, लेकिन इसमें कुछ चूक हो सकती है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था और ढांचागत क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए भारी खर्च की जरूरत को देखते हुए उन्हें वर्ष 2018-19 के लिए वित्तीय घाटे के तीन प्रतिशत के लक्ष्य में कुछ परिवर्तन करना होगा।

ऐसे में आने वाला बजट श्री जेटली के लिए टेढ़ी खीर हो सकता है। इस बजट को लोकलुभावन बनाने के साथ ही साथ, उन्हें अल्प संसाधनों की मदद से देश के लेखे को भी संतुलित करना है। इसमें कोई संदेह नहीं कि अगले वित्तीय वर्ष में कम से कम सात प्रतिशत विकास दर सुनिश्चित करने के लिए उन्हें कृषि और ढांचागत क्षेत्र में नई जान डालने पर ध्यान देना ही होगा।

वार्ता

There is no row at position 0.
image