प्रजनन के बाद जन्में घडियालों के बच्चों से वन्य जीव प्रेमिंयो में खुशी दौड़ गयी है। चंबल नदी मे पहली बार हजारों की तादात मे घडियाल के बच्चे प्रजनन के बाद जन्में है। चंबल नदी में इन दिनो हजारो की तादात मे घडियाल के बच्चे नजर आ रहे है। इन बच्चों की किलकारियो ने चंबल सेंचुरी के अधिकारियाें को खुश कर दिया है। लगभग 2100 स्क्वायर मीटर में फैले नेशनल चंबल घड़ियाल सेंचुरी में वर्ष 1989 से घड़ियालों काे संरक्षण देना शुरू हुआ था।
चंबल सेंचुरी के जिला वन अधिकारी (डीएफओ) संजीव कुमार ने आज यहाँ बताया कि जिस तादात मे घडियाल के बच्चे चंबल मे नजर आ रहे उसे देख कर यही कहा जा सकता है कि यह तादात दुर्लभ प्रजाति के घडियाल की तादात में इजाफा करने के लिये पर्याप्त समझी जा रही है। उनका कहना है कि चंबल नदी में पहली दफा इतनी बडी तादात मे घडियाल के बच्चे चंबल में पानी मे नजर आ रहे है ।
उन्होंने बताया कि इटावा रेंज के खेड़ा अजब सिंह और कसऊआ गांव में 34 घोसलों में से 14 की हैचिंग हो चुकी है। यहां पर लगभग 300 नन्हें घड़ियाल जन्म ले चुके हैं। पिनाहट रेंज के रेहा घाट पर 300 नन्हें घड़ियालों ने जन्म लिया है। विप्रावली में लगभग 200 घड़ियाल अंडों से निकल चुके हैं। इधर पिनाहट में करीब 25 घड़ियाल हैचिंग कर चुके हैं। चंबल की रेतिया में 500 नन्हें घड़ियाल अठखेलियां करते नजर आ रहे हैं। ऐसे ही बाह के कैंजराए हरलालपुरा और नंदगंवा में भी लगभग 24 घड़ियालों की हैचिंग अगले एक.दो दिन में होने की संभावना है। ऐसे में जल्द ही चंबल नदी के किनारे घड़ियालों की नयी फौज अठखेलियां करती दिख सकती है।
राष्ट्रीय चंबल सेंचुरी के अधिकारियों की माने तो तीन राज्यों में पसरी चंबल नदी मे एक अनुमान के मुताबिक 5000 के आसपास घडियाल के छोटे- छोटे बच्चे पानी में तैरते हुए दिखाई दे रहे है। उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान में प्रवाहित चंबल नदी में दुर्लभ प्रजाति के घडियालो को संरक्षण के मददेनजर चंबल नदी को संरक्षित कर रखा गया है। घडियाल के इन बच्चो को चंबल नदी में पानी में तैरते हुए देखा जा सकता है। बाह से लेकर इटावा तक करीब 70 किलोमीटर के दायरे में इतनी बडी तादात में इससे पहले घडियाल के बच्चो को प्रजनन के बाद नही देखा गया है।
कसाऔ में चंबल नदी के किनारे एक ऐसा मनोरम दश्य देखने को मिला है। जहॉ एक विशालकाय घडियाल अपनी पीठ पर सैकड़ों की तादात में अपने मासूम बच्चों को बैठाये हुए है। उसे देखने के बाद इंसानी बच्चों के दुलार की याद आ जाती है। यह एक ऐसा घडियाल है जो बडे आराम से अपनी पीठ पर बच्चों को बैठाये रहता है जब कोई हरकत उसको सुनाई देती है तो वह अपने बच्चों को पीठ से उतारता है अन्यथा सभी बच्चे उसकी पीठ पर बैठ कर ही आंनद लेते हैं। सुबह-शाम यह दृश्य गांव वालो के लिए बडे ही आंनद का विषय बना हुआ है।
इन बच्चो की रखवाली के लिए चंबल सेंचुरी की ओर से रखे गये घडियाल रक्षक सेवक गांव वालों की मदद से बच्चों की निगरानी करने मे लगे हुए है। गांव वालों का कहना है कि उनके लिए चंबल नदी ही चिड़ियाघर है क्योंकि इतनी बडी तादात मे घडियाल के बच्चे दिखाई दे रहे है। साथ ही घडियालों को भी पास से देखने का मौका मिल रहा है।
कसौआ गांव के रहने वाले कुवंर सिंह का कहना है कि इन छोटे छोटे बच्चो को देखने के लिए दूर दराज के लोग आते रहते है। इन बच्चो को देखने के बाद लोग बेहद ही खुश होते है।
इससे पहले जब चंबल में उत्तर प्रदेश के हिस्से में घडियाल का प्रजनन नही हुआ करता था तब विभाग के अफसर राजस्थान से घडियाल के अंडे लेकर आया करते थे। उसके बाद लेकर कुकरैल छोड कर आते थे उसके बाद जब बच्चे हो जाते थे तो उन बच्चो को चंबल मे ला कर छोडा जाता था।
चंबल नदी में प्रजनन के बाद नजर आ रहे है घड़ियाल के मासूम बच्चों को सियार जैसे जानवर भी नुकसान पहुंचाने लगे हुए है। चंबल नदी के किनारे कई घड़ियाल के छोटे-छोटे बच्चे मरे हुए नजर आ रहे है। गांव वालों काे संदेह है कि चंबल मे पाये जाने वाले सियार घडियाल के अंडे और बच्चे दोनों को निवाला बना रहे है।
चंबल मे पहली बार तमिलनाडु से कुछ शोधार्थी छात्र भी घड़ियाल के प्रजनन पर अपना अध्ययन पूर्ण करने के लिए पहुंचे हुए है। छात्र अपनी पहचान उजागर ना करने की शर्त पर बताते है कि चंबल नदी मे घड़ियाल के प्रजनन पर अध्ययन करने के लिए उनके संस्थान ने यहॉ भेजा हुआ है।
इसी परिपेक्ष्य में यहॉ पर कैमरो के अलावा प्रजनन के बाद मासूम बच्चे के साथ साथ मादा और नर घडियाल की आवाजो को कैद करने के लिए विभिन्न किस्म के उपकरण लगाये गये है। जिनके कई तारों को पानी में भी छोडा गया है। सभी उपकरणों को बैट्री के माध्यम से संचालित किया जा रहा है । रास्ते के अधेरे में होने वाली घड़ियाल और उनके बच्चो की हरकतों को कैमरे मे कैद करने के लिए लाइट पैनल भी लगाया गया हुआ है। दूर से ही शोधार्थी छात्र और उनके मददगार तकनीकी उपकरणो मे कैद हो रही सभी की सभी हरकतों को एक निर्धारित समय पर चेक करते है ।
मौसम की मार से घड़ियालों के प्रजनन पर असर पड़ना शुरू हो गया है। करीब एक दशक पहले तक जहॉ कभी घडियालो का प्रजनन निधार्रित समय पर ही हुआ करता था लेकिन अब समय से काफी पहले प्रजनन से पर्यावरण विशेषज्ञो के साथ साथ चंबल सेंचुरी के अफसरो को भी सकते मे डाल रखा है। बढते तापमान के कारण घड़ियालो का प्रजनन दस दिन पहले के आसपास होना शुरू हो गया है। यह ऐसा बदलाव माना जा रहा है जिसका दूरगामी असर इस प्रजाति पर पड़ने की संभावनाए जताई जा रही है।
चंबल में वर्ष 2007 से फरवरी 2008 तक जिस तेजी के साथ किसी अनजान बीमारी के कारण एक के बाद एक करके करीब सवा सौ से अधिक तादात में घड़ियालों की मौत हुई थी उसने समूचे विश्व समुदाय को चिंतित कर दिया था। ऐसा प्रतीत होने लगा था कि कहीं इस प्रजाति के घडियाल किसी किताब का हिस्सा न बनकर रह जाएं।
घड़ियालों के बचाव के लिए तमाम अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएं आगे आई और फ्रांस, अमेरिका समेत तमाम देशों के वन्य जीव विशेषज्ञों ने घडियालों की मौत की वजह तलाशने के लिए तमाम शोध कर डाले। घडियालों की हैरतअंगेज तरीके से हुई मौतों में जहां वैज्ञानिकों के एक समुदाय ने इसे लीवर क्लोसिस बीमारी को एक वजह माना तो वहीं दूसरी ओर अन्य वैज्ञानिकों के समूह ने चंबल के पानी में प्रदूषण की वजह से घड़ियालों की मौत को कारण माना। वहीं दबी जुबां से घडियालों की मौत के लिए अवैध शिकार एवं घड़ियालों की भूख को भी जिम्मेदार माना गया।
पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फार कंजरवेशन आफ नेचर के सचिव एवं वन्य जीव विशेषज्ञ संजीव चौहान बताते हैं कि पंद्रह जून तक घडियालों के प्रजनन का समय होता है जो मानसून आने से आठ-दस दिन पूर्व तक रहता है। घड़ियालों के प्रजनन का यह दौर ही घड़ियालों के बच्चों के लिए काल के रुप में होता है क्योंकि बरसात में चंबल नदी का जलस्तर बढ़ जाता है। परिणामस्वरूप बच्चे नदी के वेग में बहकर मर जाते हैं। इन बच्चों को बचाने के बारे में वह उपाय बताते हैं कि यदि इन बच्चों को कृत्रिम गर्भाधान केंद्र में संरक्षित कर तीन साल तक बचा लिया जाए तो इन बच्चों को फिर खतरे से टाला जा सकता है। उन्होने कहा कि महज दस फीसदी ही बच्चे बच पाते हैं जबकि 90 फीसदी बच्चों की पानी में बह जाने से मौत हो जाती है।
यह खासी तादात चंबल सेंचुरी के अफसरो के लिये इसलिये और अहम हो जाती है क्यों कि वर्ष 2007 के आखिर में चंबल मे अनजान बीमारी के कारण दो सौ से अधिक ऐसे घाडियालो की मौत हो गई थी जिनको संरक्षित करने में चंबल सेंचुरी के अफसरो को एक दो नही कई साल लग गये थे। चंबल मे जितने घडियालो की मौत अनजान बीमारी के कारण हुई, उतने घडियाल आज तक पूरी दुनिया मे कही भी नही मरे थे। इसी वजह से दुनिया भर के घडियाल विशेषज्ञो ने चंबल में आ कर कई स्तर से अध्ययन किया गया लेकिन किसी ठोस नतीजे पर नही पहुंच सके।
इटावा, 03 जून (वार्ता) उत्तर प्रदेश के इटावा में पहली बार हजारों की तादात में जन्में घडियालों के बच्चों से चंबल नदी गुलजार हो गयी है।