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योगी की पचनदा को पर्यटन केंद्र बनाने की घोषणा से चंबल में खुशी का सैलाब

योगी की पचनदा को पर्यटन केंद्र बनाने की घोषणा से चंबल में खुशी का सैलाब

इटावा, 04 जून (वार्ता) उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के चंबल के बीहडों में स्थापित दुनिया के पांच नदियों के संगम पचनदा को पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित करने के ऐलान के बाद बीहड़ांचल में खुशी की लहर है।

अरसे से उपेक्षा के शिकार पचनदा को लेकर किसी मुख्यमंत्री ने पहली दफा इसको पर्यटन केंद्र के रूप में स्थापित करने का ऐलान कर इलाकाई लोगों में खुशहाली का एहसास करा दिया है।

प्राकृतिक सुंदरता से भरपूर चंबल के बीहड़ों में स्थित पांच नदियों के अद्भुत संगम को पर्यटन के जरिये उत्तर प्रदेश की योगी सरकार कुख्यात डाकुओं की शरणस्थली वाले इस इलाकों को एक नये मुकाम के तौर पर स्थापित करने में जुट गई है।

पांच नदियों का यह संगम उत्तर प्रदेश में इटावा जिला मुख्यालय से 70 किमी दूर बिठौली गांव में है जहां पर कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश और राजस्थान के लाखों की तादाद में श्रद्धालुओं का जमावड़ा लगता है। समूचे विश्व में इटावा का पचनदा ही एक स्थल है, जहां पर पांच नदियों यमुना, चंबल, क्वारी, सिंधु और पहुज का संगम होता है।

दुनिया में दो नदियों के संगम तो कई स्थानों पर हैं जबकि तीन नदियों के दुर्लभ संगम प्रयागराज, इलाहबाद को धार्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाता है लेकिन आश्चर्य की बात यह है कि पांच नदियों के इस संगम स्थल को त्रिवेणी जैसा धार्मिक महत्व नहीं मिल पाया है। प्रयाग का त्रिवेणी संगम पूर्णतः धार्मिक मान्यता पर आधारित है क्योंकि धर्मग्रन्थों में वहां पर गंगा, यमुना के अलावा अदृश्य सरस्वती नदी को भी स्वीकारा गया है, यह माना जाता है कि कभी सतह पर बहने वाली सरस्वती नदी अब भूमिगत हो चली है। बहराल तीसरी काल्पनिक नदी को मान्यता देते हुये त्रिवेणी संगम का जितना महत्व है उतना साक्षात पांच नदियों के संगम को प्राप्त नहीं है।


खूंखार डाकुओं की शरणस्थली चंबल घाटी में दुनिया का इकलौता पांच नदियों का संगम स्थल है लेकिन अरसे से सरकारी उपेक्षा का शिकार पचनदा को देश का सबसे बड़ा पर्यटन केंद्र बनवाने के लिये चंबल के वाशिंदे बहुत पहले से राजनेताओं से लगातार गुहार लगाते रहे हैं लेकिन अब मुख्यमंत्री की घोषणा के बाद बेहद प्रफुल्लित नजर आ रहे हैं।

       सबसे अधिक अगर कोई खुश है तो वे हैं उत्तर प्रदेश फिल्म विकास परिषद के पूर्व अध्यक्ष विशाल कपूर, जो अखिलेश सरकार में पचनदा को फिल्म निर्माण के लिए सबसे मुफीद मानते हुए पर्यटन केंद्र के तौर पर स्थापित करने की मांग करते रहे हैं।

      उनका कहना है कि यह बात अलग है कि मुख्यमंत्री योगी अदित्यनाथ ने पचनद को पर्यटन केंद्र स्थापित करने की पहल की है लेकिन इसको काफी पहले विकसित हो जाना चाहिए था। उन्होंने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के पचनदा को पर्यटन केंद्र बनाने के ऐलान का स्वागत करते हुए कहा कि ऐसे स्थल ही मन को हर्षित करते हैं इसलिए ऐसे स्थलों को सरसव्य किये जाने की बेहद जरूरत है।

     उन्होंने कहा कि वैसे तो चंबल का फिल्म शूटिंग के लिहाज से बेहद अहम है लेकिन जब पचनदा को पर्यटन केंद्र के तौर पर स्थापित कर दिया जायेगा तो देश के तमाम नामी फिल्मकार बेहतर शूटिंग स्थान की तलाश में इधर उधर भटकते हैं वो यहॉ आकर बेहतर शूटिंग करेंगे ऐसा यकीन है।

        चकरनगर की ब्लाक प्रमुख श्रीमती सुनी यादव मुख्यमंत्री की पचनदा को पयर्टन केंद्र बनाने के ऐलान पर हर्ष का इजहारला करते हुए कहती हैं कि पांच नदियों के दुलर्भ स्थल का वैसे तो अपने आप में खासा महत्व है अब मुख्यमंत्री के इसको पर्यटन केंद्र बनाने के ऐलान के बाद यहॉ पर बेसुमार विकास संभव है जो इस इलाके की तस्वीर को बदलने में बेहद ही सहायक होगा ।

        कालेश्वर महापंचायत के अध्यक्ष बापू सहेल सिंह परिहार कहते हैं कि वो एक लंबे अरसे से पचनदा को पर्यटन केंद्र स्थापित करने की मांग कर रहे हैं लेकिन किसी भी सरकार ने उनकी मांग को सुना नहीं लेकिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पचनदा को पर्यटन केंद्र बनाने का ऐलान करके इलाके के लोगों में एक नई उम्मीद की किरण जगा दी है।

        पांच नदियों का यह स्थल महाभारतकालीन सभ्यता से भी जुड़ा हुआ माना जाता है क्योंकि यहां पर पांडवों ने अज्ञातवास इसी इलाके में बिताया था। पांडवों के यहां पर अज्ञातवास बिताने के प्रमाण भी मिलते हैं। महाभारत में जिस बकासुर नामक राक्षस का ज्रिक किया जाता है उसे भीम ने इस इलाके के एक ऐतिहासिक कुयें में मार करके डाला था।

        करीब 800 ईसा पूर्व पचनदा संगम पर बने महाकालेश्वर मंदिर पर साधु-संतों का जमावड़ा लगा रहता है। मन में आस्था लिए लाखों श्रद्धालु कालेश्वर के दर्शन से पहले संगम में डुबकी अवश्य लगाते हैं। यह वह देव शनि हैं जहां भगवान विष्णु ने महेश्वरी की पूजा कर सुदर्शन चक्र हासिल किया था। इस देव शनि पर पांडु पुत्रों को कालेश्वर ने प्रकट होकर दर्शन दिए थे। इसीलिए हरिद्वार, बनारस, इलाहाबाद छोड़कर पचनदा पर कालेश्वर के दर्शन के लिए साधु-संतों की भीड़ जुटती है।

        इसे दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इतने पावन स्थान को यदि उस प्रकार से लोकप्रियता हासिल नहीं हुई जिस प्रकार से अन्य तीर्थस्थलियों को ख्याति मिली तो इसके लिए यहां का भौगोलिक क्षेत्र कसूरवार है। पचनदा के एक प्राचीन मंदिर को बाबा मुकुंदवन की तपस्थली भी माना जाता है।

       जनश्रुति के अनुसार संवत 1636 के आसपास भादों की अंधेरी रात में यमुना नदी के माध्यम से गोस्वामी तुलसीदास कंजौसा घाट पहुंचे थे और उन्होंने मध्यधार से ही पानी पिलाने की आवाज लगाई थी, जिसे सुनकर बाबा मुकुंदवन ने कमंडल में पानी लेकर यमुना की तेज धार पर चलकर गोस्वामी तुलसीदास को पानी पिलाकर तृप्त किया था।

        पचनदा पर बांध निर्माण की सबसे पहली योजना 1986 में बनी थी लेकिन हकीकत में इस पर कोई प्रगति नहीं हो सकी। बीहड़ तहसील क्षेत्र चकरनगर में यमुना नदी किनारे ऐतिहासिक भारेश्वर मंदिर भरेह व यमुना, चंबल, क्वारी, सिंध व पहूज पांच नदियों का संगम महाकालेश्वर पचनदा अपनी सुंदरता के लिये बखूबी जाना जाता है और उक्त दोनों ही ऐतिहासिक देव स्थान अपनी सिद्धि के लिये प्रसिद्ध भी है। उक्त देव स्थानों पर पांडवों द्वारा अज्ञात वास काटा गया और भगवान शंकर की पूजा आराधना करने के भी उल्लेख हैं। पर्यटक स्थल बनने से बीहड़ क्षेत्र में बेरोजगार घूम रहे हजारों नौजवानों को रोजगार का मौका मिलेगा और दूर दराज से क्षेत्र में पहुंचने वाले सैलानियों को बनावटी की जगह प्राकृतिक सुदंरता देखने को मिलेगी।


 

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