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इटावा संसदीय सीट पर भाजपा की हैट्रिक में ब्रेक के आसार

इटावा संसदीय सीट पर भाजपा की हैट्रिक में ब्रेक के आसार

इटावा, 15 मई (वार्ता) यादवलैंड के आधार स्तंभ कहे जाने वाली उत्तर प्रदेश की इटावा संसदीय सीट पर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की हैट्रिक के ब्रेक होने के आसार नजर आ रहे है।

भाजपा की हैट्रिक में ब्रेक के आसार ऐसे ही नजर नहीं आ रहे हैं इसके पीछे भी कई अहम तथ्य बताए जा रहे हैं । संविधान बदलने की वकालत करने वाली भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ दलित, पिछड़ी और मुस्लिम जाति से ताल्लुक रखने वाले मतदाताओं ने खास मोर्चा खोला हुआ है। इन वर्गों के मतदाता सत्ता का मिजाज बदलने की कवायत करते हुए देखे गए है।

सोमवार को हुए मतदान के बाद राजनीतिक विश्लेषकों के बीच इस बात की चर्चाएं आम हो चुकी है कि इंडिया गठबंधन की उम्मीदवार जितेंद्र दोहरे और भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार प्रो. रामशंकर कठेरिया के बीच जोरदार संघर्ष नजर आ रहा है। इस जोरदार संघर्ष के बीच कोई भी दल अपने आप को स्पष्ट तौर पर जीतता हुआ नहीं बता पा रहा है हालांकि भारतीय जनता पार्टी चुनाव प्रबंधन से जुड़े हुए प्रभावी लोग ऐसा जरूर मानते हैं कि 2019 के मुकाबले दलित और पिछड़ी से ताल्लुक रखने वाले मतदाताओं ने पोलिंग बूथ पर पहुंच कर वोट किया है,उनका वोट किसके पक्ष में गया है यह अभी बताना कठिन है।

कई जानकारों के अनुसार मतदान के दिन दलित और पिछड़ी जाति के वर्ग का वोटिंग का रुख सत्ता के खिलाफ महसूस हुआ है, अगर वाकई में ऐसा हुआ तो इटावा सीट पर बड़ा उलटफेर हो सकता है।

राजनीतिक टीकाकार और वरिष्ठ पत्रकार गुलशन कुमार बताते है कि भारतीय जनता पार्टी के प्रोफेसर रामशंकर कठेरिया और इंडिया गठबंधन के जितेंद्र दोहरे में सीधा मुकाबला देखा जा रहा है । बसपा के मुख्य लड़ाई में न होने की वजह से उसका वोट इंडिया गठबंधन के साथ जाता हुआ नजर आया है। इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार दोहरे समाज के होने के वजह से इसका फायदा इंडिया गठबंधन को मिला तो चुनाव इंडिया गठबंधन के पक्ष में जा सकता है।

राजनीतिक विश्लेषक यह भी बताते हैं कि साल 2019 के चुनाव में दलित और पिछड़ी जाति से ताल्लुक रखने वाले बड़ी तादात में मतदाताओं ने भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में व्यापक पैमाने पर मतदान किया था जिसके चलते अपने गृह जिले इटावा से पहली बार प्रो. रामशंकर कठेरिया को जीत हासिल हुई। हालांकि इस जीत में समाजवादी परिवार में चल रही अनबन के बीच शिवपाल सिंह यादव की टकराहट भी एक बड़ा फायदेमंद मुद्दा भारतीय जनता पार्टी के लिए माना गया लेकिन नेता जी मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद शिवपाल सिंह ने अपने भतीजे अखिलेश यादव को नेताजी की तरह ही अपना नेता मान लिया है और उसके बाद शिवपाल सिंह यादव व्यापक पैमाने पर समाजवादी पार्टी के पक्ष में मजबूती से खड़े हो गए।

साल 2024 में शिवपाल के सपा के साथ मजबूती से खड़े होने से भाजपा उस हिसाब से फायदा नहीं ले पाई जिस तरह से उसको 2019 में फायदा मिला । 2019 में इटावा संसदीय सीट पर 58.52 फीसदी हुआ था जब कि 2024 में 56.39 फीसदी मतदान हुआ। 2019 के मुकाबले 02.13 फीसदी कम मतदान हुआ है। भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवार प्रो. रामशंकर कठेरिया मतदान के बाद अपनी जीत का दावा करते हुए बताते है कि केंद्र की मोदी और योगी सरकार की नीतियों के चलते भाजपा के पक्ष में खासी तादात में मतदान हुआ है नतीजा 4 जून को भाजपा के पक्ष में ही आयेगा।

इंडिया गठबंधन के उम्मीदवार जितेंद्र दोहरे भी कुछ ऐसा ही बताते हैं । उनका कहना है कि संविधान को खत्म करने की वकालत करने वाली भाजपा को 4 जून को नतीजे के तौर पर हार का सामना करना पड़ेगा इसमें कोई दो राय नहीं है।वैसे तो बसपा ने पूर्व सांसद श्रीमती सारिका सिंह बघेल को भी इटावा सीट से चुनाव मैदान में उतारा है लेकिन चुनावी प्रचार से लेकर मतदान तक उनकी भूमिका कहीं पर भी प्रत्यक्ष रूप में नजर नहीं आई है इसलिए अगर उनको सम्मानजनक मत मिलते हैं तो बहुत बड़ी बात मानी जाएगी।

सं सोनिया

वार्ता

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