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समय बदला,सरकारें बदली, नहीं बदली तो ‘छोटू’ की किस्मत

समय बदला,सरकारें बदली, नहीं बदली तो ‘छोटू’ की किस्मत

लखनऊ 11 जून (वार्ता) शहरों और महानगरों में फर्राटा भरती जिंदगी के बीच मटमैले लिबास में दुबले पतले ‘छोटू’ से आपकी मुलाकात कई मर्तबा चाय के ढाबे, सडक किनारे चलती फिरती बूट पालिश की दुकानों और लाल बत्ती पर बडी बडी कारों के शीशे चमकाते हुयी होगी। आजादी के बाद देश ने कई क्षेत्रों में सफलता के नये मुकाम हासिल किये। गांव देहातों की तस्वीर बदली तो शहरों मे गगनचुंबी इमारतों और माल वगैरह की बाढ सी आ गयी। इन सबके बीच बाल श्रमिकों की दशकों पुरानी समस्या पर केन्द्र आैर राज्य सरकारें कडे कानून के बावजूद अंकुश लगाने में विफल रही हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के अनुसार देश में बाल श्रमिकों की तादाद दो करोड से अधिक है जो दुनिया भर के बाल श्रमिकों की तादाद का लगभग आठ फीसदी है। इन बाल श्रमिकों में से 19 प्रतिशत के लगभग घरेलू नौकर हैं, ग्रामीण और असंगठित क्षेत्रों में तथा कृषि क्षेत्र से लगभग 80 फीसदी बाल मजदूर जुड़े हुए हैं। बाल मजदूरी पर लगाम कसने के लिये बनाये गये कानून का अक्षरश: पालन कराने में केन्द्र और राज्य सरकारें नकारा साबित हुयी है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है कि 14 साल से कम उम्र के बच्चे किसी भी शहर के हर गली चौराहे और औद्योगिक क्षेत्र में खुलेआम काम करते दिखायी पडते हैं मगर श्रम विभाग ने अपनी आंखों में काला चश्मा पहना हुआ है। पिछले साल जुलाई में बाल श्रम पर नये कानून को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने मंजूरी दी। नये कानून के मुताबिक किसी भी काम के लिए 14 साल से कम उम्र के बच्चे को नियुक्त करने वाले व्यक्ति को दो साल तक की कैद की सजा तथा उस पर 50,000 रुपये का अधिकतम जुर्माना लगेगा।


उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ,कानपुर,बरेली,इलाहाबाद,मेरठ और वाराणसी समेत लगभग हर बडे शहर में रेलवे स्टेशन,बस अड्डे,बाजार और कारखानों में काम कर रहे बाल श्रमिक इस दिशा में नये कानून की सरेआम धज्जियां उडाते दिखायी देते हैं। लखनऊ के चारबाग रेलवे स्टेशन के बाहर चाय के कप धोते नौ साल के छोटू ने कहा कि उसका असली नाम छुट्टन है मगर यहां उसे लोगबाग छोटू कहकर पुकारते हैं। पिछले डेढ साल से काम कर रहे बालक ने कहा कि वह गाजीपुर के एक गांव का रहने वाला है। माता पिता यहां मजदूरी करते है जबकि उसे गांव के ही लल्लन के हवाले कर दिया है। चाय की दुकान करने वाला लल्लन उसे काम के एवज में दो समय खाना देता है और महीने का 700 रूपये उसके माता पिता को देता है। पढाई लिखायी के बारे में बिल्कुल अनभिज्ञ छुट्टन ने कहा कि पढने के बारे में उसके कभी नही सोचा और न/न ही उसके माता पिता ने उसे इसके लिये प्रेरित किया। अमीनाबाद में बूट पालिश की दुकान चलाने वाला 12 वर्षीय किशोर आमिर और 13 साल के रहमान ने कहा कि उनका परिवार चौक इलाके में रहता है। किशाेरों ने कहा कि करीब पांच साल से वे बूट पालिश का धंधा कर रहे है और अब हर रोज वे औसत 80 से 120 रूपये कमा लेते हैं। राहगीर और दुकानदार उन्हे छोटू के नाम से पुकारते हैं अौर उन्हे इससे कोई एतराज भी नही है। हिन्दी फिल्मों के शौकीन किशोरों ने कहा कि टीवी पर पुरानी पिक्चरों में उन्होंने अमिताभ बच्चन समेत कई कलाकारों को बूट पालिश करते देखा है। मेहनत करके रूपये कमाने में कोई बुराई नही है।


लखनऊ विश्वविद्यालय में समाजशास्त्र के प्रवक्ता एस सी बनर्जी ने इस बाबत कहा कि बाल-श्रम, मानवाधिकार का खुला उल्लंघन है। यह बच्चों के मानसिक, शारीरिक, आत्मिक, बौद्धिक एवं सामाजिक हितों को प्रभावित करता है। बच्चे आज के परिवेश में घरेलू नौकर का कार्य कर रहे हैं। वे होटलों, कारखानों, सेवा-केन्द्रों, दुकानों आदि में कार्य कर रहे हैं, जिससे उनका बचपन पूर्णतया प्रभावित हो रहा है। श्री बनर्जी ने कहा कि स्कूलों में बच्चो को अब्दुल कलाम,सचिन तेंदुलकर,विवेकानंद और राजा राममोहन राय जैसे चरित्रों को पढाया जाता है जिससे वे प्रेरणा लेकर देश और समाज के लिये कुछ कर सके वहीं दूसरी ओर बाल मजदूरी के चलते बच्चों का भविष्य अंधकारमय होता जा रहा है। ग़रीब बच्चे सबसे अधिक शोषण का शिकार हो रहे हैं। छोटे-छोटे ग़रीब बच्चे स्कूल छोड़कर बाल-श्रम के लिये मजबूर हैं। विधि विशेषज्ञ और उच्च न्यायालय में वकालत करने वाले एस प्रसाद ने कहा कि भारत के संविधान, 1950 का अनुच्छेद 24 स्पष्ट करता है कि 14 वर्ष से कम उम्र के किसी भी बच्चे को ऐसे कार्य या कारखाने इत्यादि में न रखा जाये जो खतरनाक हो। कारखाना अधिनियम, बाल अधिनियम, बाल श्रम निरोधक अधिनियम आदि भी बच्चों के अधिकार को सुरक्षा देते हैं मगर इसके विपरीत आज की स्थिति बिलकुल भिन्न है।


श्री प्रसाद ने कहा कि पिछले साल राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बाल श्रम पर नये कानून को मंजूरी दी थी। किसी भी काम के लिए 14 साल से कम उम्र के बच्चे को नियुक्त करने वाले व्यक्ति को दो साल तक की कैद की सजा तथा उस पर 50,000 रुपये का अधिकतम जुर्माना लगेगा। हालांकि, स्कूल से बाद के समय में अपने परिवार की मदद करने वाले बच्चे को इस कानून के दायरे में नहीं रखा गया है। नया कानून 14 से 18 साल की उम्र के किशोर को खानों और अन्य ज्वलनशील पदार्थ या विस्फोटकों जैसे जोखिम वाले कार्यों में रोजगार पर पाबंदी लगाता है। नया कानून फिल्मों, विज्ञापनों या टीवी उद्योग में बच्चों के काम पर लागू नहीं होता। इस सिलसिले में एक विधेयक को लोकसभा ने 26 जुलाई को पारित किया था जबकि राज्यसभा ने उसे 19 जुलाई को पारित किया। संशोधित अधिनियम के जरिए इसका उल्लंघन करने वालों के लिए सजा को बढ़ाया गया है। बच्चों को रोजगार देने वालों को अब छह महीने से दो साल की जेल की सजा होगी या 20,000 से लेकर 50,000 रुपये तक का जुर्माना, या दोनों लग सकेगा। पहले तीन महीने से एक साल तक की सजा और 10,000 से 20,000 रुपये तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान था। दूसरी बार अपराध में संलिप्त पाए जाने पर नियोक्ता को एक साल से लेकर तीन साल तक की कैद की सजा का प्रावधान किया गया है। कानून के मुताबिक किसी भी बच्चे को किसी भी रोजगार या व्यवसाय में नहीं लगाया जाएगा। हालांकि स्कूल के समय के बाद या अवकाश के दौरान उसे अपने परिवार की मदद करने की छूट दी गई है। प्रदीप नरेन्द्र सिंह वार्ता


 

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