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छत्तीसगढ़ में हर्षोल्लास के साथ मनायी गयी हरेली

छत्तीसगढ़ में हर्षोल्लास के साथ मनायी गयी हरेली

बिलासपुर 01 अगस्त (वार्ता) छत्तीसगढ़ में सावन माह की अमावस्या के दिन गुरुवार को हरेली मनाये जाने के साथ ही यहां पर्वों की शुरुआत हो गयी।

सावन में प्रकृति हरियाली की चादर ओढ़ लेती है और इसी हरियाली का उत्सव मनाने के पर्व को हरेली कहते हैं। मूलतः खेती का काम करने वाले किसानों के इस पर्व में प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने की परंपरा है। आमतौर पर हरेली आने तक खेती-किसानी का पहला चरण पूरा हो चुका होता है। खेतों में धान की रोपाई और बुआई हो चुकी होती है। अच्छी फसल की कामना और धरती माता के प्रति आभार प्रकट करने के साथ खेती में उपयोगी औजार और पशुधन के प्रति भी कृतज्ञता प्रकट की जाती है।

हरेली के मौके पर ग्राम देवता और इष्ट देव की पूजा की भी परंपरा है। इस पूजा में पारंपरिक छत्तीसगढ़ी पकवान गुड़ चीला, फरा, ठेठरी, खुरमी, गुलगुला,पपची आदि अर्पित किए जाते हैं। कई स्थानों पर ग्राम देवता को प्रसन्न करने के लिए मुर्गा और बकरे की बलि भी दी जाती है।

किसानों के अलावा अन्य लोगों की भी भागीदारी हरेली पर्व के साथ जुड़ी है। यादव समाज के चरवाहे इस दिन घर-घर जाकर गाय, बैल और भैंस को बीमारी से बचाने के लिए बरगंडा की पत्ती और नमक खिलाते हैं, ताकि मवेशी रोग से बच सकें। किसानों द्वारा इन्हें स्वेच्छा से अनाज और अन्य उपहार दिए जाते हैं। सुबह सभी घरों में औजारों के साथ गाय, बैल, कुल देवता और ग्राम देवता की पूजा की जाती है और चीला का भोग अर्पित किया जाता है। गांव में बैगा इस दिन अनिष्ट से रक्षा के लिए घर-घर जाकर नीम की टहनियां बांधते हैं और चौखट पर कील गाड़ते हैं।

भले ही यह परंपरायें अंधविश्वास की प्रतीक हो, लेकिन इस तरह के क्रिया-कलाप में एक दूसरे के प्रति प्रेम का भाव दिखाई देता है। ग्रामीण इलाकों में इसी तिथि पर तंत्र विद्या की शुरुआत होती है। जानकार बैगा गुनिया नए शिष्यों को तंत्र विद्या देने की शुरुआत सावन कृष्ण पक्ष की अमावस्या हरेली से करते हैं और यह शिक्षा भाद्र शुक्ल पंचमी तक चलती है। जिज्ञासु शिष्य को पीलिया, विष उतारने, नजर से बचाने, महामारी और बाहरी हवा से बचाने के मंत्र सिखाए जाते हैं। वर्तमान परिवेश में इन्हें भले ही अंधविश्वास माना जाता हो लेकिन प्राचीन काल में यही इलाज की पद्धतियां हुआ करती थी जिसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में इसी तरह हस्तांतरित किया जाता था। इसी दिन बैगा भूत-प्रेत से रक्षा के लिए पूरे गांव को मंत्रों से अभिमंत्रित कर बांधते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से गांव में भूत-प्रेत का प्रवेश नहीं हो पाता।

हरेली पर कई स्पर्धाओं का भी आयोजन होता है। गांवों और शहरों के कुछेक पुराने वाशिंदों के इलाकों में युवा, खासकर बच्चे गेड़ी का आनंद लेते हैं। गेड़ी बांस से बना एक उपकरण है, जिस पर चढ़कर बच्चे ग्रामीण सड़कों पर इधर-उधर चलते हैं। असल में बरसात के मौसम में ग्रामीण इलाकों में सड़कों पर कीचड़ हुआ करता था और कीचड़ पर चलने के लिए यही उपयुक्त साधन है। ग्रामीण इलाकों में नारियल फेंक प्रतियोगिता स्पर्धा का भी अपना ही आनंद है। युवाओं में अधिक से अधिक दूरी तक नारियल फेकने की प्रतिस्पर्धा होती है, जिसमें आपस में शर्त लगाई जाती है। अधिक दूर तक नारियल फेकने वाला विजेता बनता है।

पहली बार प्रदेश में हरेली पर सरकारी अवकाश की घोषणा की गयी थी, इसलिए उत्साह दुगुना नजर आया। राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री निवास से लेकर राज्य के सभी जिलों और गांवों में इस बार हरेली पर्व के उत्साह और उमंग के माध्यम से यहां की संस्कृति की सतरंगी छटा अपने पूरे चटख के साथ नजर आयी। लोक कलाकारों, लोक नर्तकों, लोक गायकों ने इस रंग को और अधिक मधुरता से भर दिया है। छत्तीसगढ़ महतारी की वंदना के साथ ’अरपा पैरी के धार’ जैसे सुमधुर गीतों, झांझर, मांदर और गुदुम बाजा के साथ हरेली गीत भी गाये गए। लोक नर्तक दलों ने गेड़ी, करमा, सुआ ,राउत नाचा ,पंथी नृत्य और गौरी -गौरा नृत्य प्रस्तुत किए।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बिलासपुर जिले में तखतपुर विकासखंड के नेवरा गांव में आयोजित ‘हरेली तिहार’ कार्यक्रम में शामिल हुए। श्री बघेल ने राज्य की जनता को हरेली पर्व की बधाई और शुभकामनाएं दी। उन्होंने गेड़ी पर चढ़कर हरेली का आनंद उठाया।

टंडन.श्रवण

वार्ता

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