बस्ती 15 नवम्बर (वार्ता) चित्रगुप्त वशंज 16 नवम्बर को कलम (लेखनी) की पूजा करेगे । कार्तिक शुक्ल द्वितीया तिथि का प्रारंभ 16 नवंबर को सुबह 07ः06 बजे से हो रहा है, जो 17 नवंबर को तड़के 03ः56 बजे तक है। ऐसे में आप चित्रगुप्त पूजा 16 नवंबर को करें।
इस दिन सर्वार्थ सिद्धि योग सुबह 06ः45 से दोपहर 02ः37 तक है। विजय मुहूर्त दोपहर 01ः53 बजे से दोपहर 02ः36 तक है। अभिजित मुहूर्त दिन में 11ः44 बजे से दोपहर 12ः27 बजे तक है।बिना कलम की पूजा किये हुए चित्र गुप्त वशंज पानी नही पीते है।
प्रलय के अनन्तर परमपिता ब्रह्मा ने सृष्टि रचना का कार्य प्रारम्भ किया, और मनुष्य सहित अन्य जीव जन्तुओं को उदय हुआ। कर्मफल की व्यवस्था संभाली धर्मराज ने, शुभकर्मों के फलस्वरूप पुण्य और अशुभ कर्मों के परिणाम में पाप का भागी होने की व्यवस्था दी गई। धर्मराज यह लेखा जोखा रखने में पूर्ण सक्षम थे। अतः सृष्टि व्यवस्था सुचारू चलती रही। धीरे -धीरे जनसंख्या बढ़ती, वंशावलियों का विस्तार हुआ, मानव शरीरों की संख्या गणना कठिन प्रतीत हुई, पाप-पुण्य का लेखा- जोखा रखना दुश्कर हुआ। धर्मराज आकुल व्याकुल होकर पहुंचे परमपिता ब्रह्मा के चरणों में और कहा ‘‘मुझे सहायक चाहिए, कार्याध्यक्ष चाहिए।’’
पितामह ध्यानमगन हुए, तप प्रारम्भ हुआ, एक हजार वर्ष बीत गए, शरीर में स्पन्दन हुआ, शुद्ध चैतन्य ब्रह्मा शरीर डोलायमान हुआ और प्रगट हुआ ब्रह्मा शरीर से तेजोदीप्त, दिव्य, स्थूल रूप, वर्ण तीसी के फूल के समान श्यामल, कण्ठ शंख के समान सुडौल, कण्ठ रेखा कबूतर के गले की रेखा के समान चिकनी, नेत्र कमल की पंखुरी के समान आकर्षक, हाथ आजानु दीर्घ, शरीर-सौष्ठव पूर्ण पीताम्बर-धारी, विद्युत सम आभावान्, दाहिने हाथ में लेखनी, बांए हाथ में दवात वे नवीन पुरूषाकृति पितामह के चरणों में नतमस्तक हुए। पितामह ने अपने प्रतिरूप सदृश पुरूष के हाथ उठाकर आशीर्वाद दिया। पुरूष ने पितामह से विनम्र भाव से कहा ‘‘पिता! कृपया मेरा नाम, वर्ण, जाति और जीविका का निर्धारण कीजिए।
पितामह ने उत्तर दिया ‘‘तुम मेरे चित्त में गुप्त रूप से वास करते थे अतः तुम्हारा नाम चित्रगुप्त हुआ। तुम मेरी काया में स्थित थे अथवा जो चैतन्य समभाव से सबकी काया से साक्षी है वही तुम में भी अन्तः है अतः वर्ण कायस्थ हुआ। तुम धर्म-अधर्म के विचार का लेखा -जोखा रख कर मानव जाति के अस्तित्व की रक्षा करोगे अतः जाति क्षत्रिय हुई। तुम विद्याध्ययन के माध्यम से ख्याति को प्राप्त होगे अतः जीविका पठन और लेखन हुई तुम्हारा वास स्थान पृथ्वी लोक में अवन्तिपुरी हुआ।’
सं विनोद
जारी वार्ता