Saturday, Apr 20 2024 | Time 17:33 Hrs(IST)
image
फीचर्स


बस्तर को करीब से देखने पहुंचते हैं हजारों सैलानी

जगदलपुर 09 दिसंबर (वार्ता) प्राकृतिक सौंदर्य और सांस्कृतिक विरासत से समृद्ध छत्तीसगढ के बस्तर को करीब से देखने व समझने के लिए हर साल 56 हजार से अधिक देशी विदेशी सैलानी पहुंचते हैं। इनमें से कुछ सैलानी शोध, समाज शास्त्रीय अध्ययन व मानव विज्ञानी भी होते हैं। ऐसे पर्यटक यहां की नैसर्गिक खूबसूरती से तो वाकिफ होते हैं पर आदिवासी लोक संस्कृति व परंपरा से रूबरू नहीं हो पाते थे। बस्तर की प्राचीन संस्कृति को देखने और समझने के इच्छुक पर्यटकों के लिए छत्तीसगढ पर्यटन मंडल, जिला प्रशासन और अन्य एजेंसियां जगदलपुर होम स्टे सभा परिकल्पना को साकार करने जुटी हुई है। दक्षिण, पूर्वोत्तर व सुदूर उत्तर भारत के कुछ प्रांतों में ऐसी सुविधाएं पहले से ही चल रही हैं। यहां सैलानी ऐसी जनजातीय संस्कृति का हिस्सा बनकर अध्ययन, पर्यटन यात्रा वृत्तांत, डायरी लेखन व अनुसंधान, शोध कार्य करते आए हैं। ये हैं जनजातीय घरों की खूबिया बस्तर संभाग में मुख्य तौर पर धुरवा, मुरिया, भतरा, हलबा, दोरला और अबूझमाडियां जैसी छह जनजातियां हैं। इन सभी जनजातीय लोगों के रहन. सहन खान. पान पर्व. त्योहार रीति. रिवाज पहनावा और जन्म. मृत्यु संस्कार विविधता लिए हुए हैं। विज्ञानी राजेश रौशन ने बताया कि यहां अन्य जनजातीय के घर आम तौर पर दो तरफा ढलान लिए होते हैं, वहीं दोरला लोग अपने घर चार तरफ से ढलान वाले मकान बनाते हैं। ये मकान मंडपनुमा होते हैं। जलवायु को देखते हुए ये मकान बनाने के लिए स्थानीय साज. सामान का उपयोग करते हैं। आंध्र सीमा पर स्थित कोंटा. सुकमा में रहने वाले दोरला जनजाति के लोग अपने घर की छतें ताड़ के पत्तों से बनाते हैं। ये अपने पशुओं के रहने के लिए मचाननुमा घर बनाते हैं। नारायणपुर इलाके में रहने वाले अबुझमाडिया अपने घर पर आमतौर पर दरवाजा नहीं लगाते हैं। दरवाजे यदि बना भी लेते हैं तो कुंडी. ताला नहीं लगाते हैं। घर की परिसीमा निर्धारित करने के लिए ये लकडियां गाड़ देते हैं। शहरी इलाके के नजदीक रहने वाले हल्बा व भतरा जनजाति के लोग छत बनाने स्लेटी पत्थरों का उपयोग करते हैं। साथ ही चारदीवारी में भी ऐसे पत्थरों का उपयोग करते हैं। ये तेज बारिश में उनका बचाव करते हैं। मुरिया जनजाति के लोग खपरैल का उपयोग करते हैं। ये कच्ची. पकी ईंट से दीवारें बनाते हैं। मकान की छत इमारती बल्लियों से बनाते हैं। मेहमान को बिठाने के लिए दीवार के साथ चबूतरा होता है। जगदलपुर होम स्टेश् के पहले चरण में 40 गांव को जोड़ा गया है। इन गांवों में लोगों को प्रोत्साहित कर इनकी सूची बनाई जाएगी और इसकी जानकारी पर्यटकों तक भिजवाई जाएगी। अलग. अलग संस्कृति व जनजातीय लोगों की केटेगरी बनाकर पयर्टक अपने पसंदीदा मेजबान को चुनेंगे। इसके बाद उन्हें सीधे वहां तक पहुंचाने की जवाबदारी एजेंसियां संभालेंगी। मिट्टी का घरौंदा भित्ति चित्रों से बस्तर में पाई जाने वाली मूल जनजातिय लोगों के घर मिट्टी के बने होते हैं। घर एक कमरे या दो कमरे का हो सकते हैं। मानव विज्ञान संग्रहालय में सहायक अनुसंधान सहायक विजय कुमार ने बताया कि रसोईघर के लिए कमरे के एक हिस्से का उपयेाग होता है। ग्रामीण इलाकों में अलग. थलग बने इन घरों के दरवाजों में कुंडी.ताला तक नहीं लगाया जाता है। घर के सामने या पीछे के हिस्से का उपयोग बाड़ी बनाकर किचन गार्डनिंग के साथ ही कुक्कुट पालन के लिए भी करते हैं। घरों की दीवारों पर भित्तिचित्र बनाना इनका खासा शौक है। ये पौराणिक गाथाओं को इन चित्रों में बखूबी उभारते हैं। वास्तविकता बनी रहे के एम सिन्हा प्रभारी क्षेत्रीय मानव विज्ञान संग्रहालय होम स्टे का प्लान बेहतर है। जरुरत है कि इन मेजबानों व घरों का मूल स्वरूप बना रहे। चूंकि पर्यटक बस्तर से वापस जाकर अपने यात्रा का वर्णन करेगा। उसे जो दिखाया जाएगा वह उसे उसी तौर पर लिखेगा। पर्यटक व शोधार्थी वास्तविकता के जितने नजदीक होंगे यह परिकल्पना उतनी सार्थक साबित होगी। वैसे तो पर्यटन व मानव विज्ञानियों की सोच व कार्यशैली जुदा है। पर कहीं कहीं दोनों एक से नजर आते हैं। ट्राइबल टूरिज्म को बढ़ावा अमित कटारिया कलक्टर ट्राइबल टूरिज्म को बढ़ावा देने के लिए होम स्टे योजना को लांच किया जा रहा है। इसके लिए 40 गांवों का चयन किया गया है। इन गांवों व ग्रामीणों को मेहमान नवाजी के लिए बुनियादी सुविधा जिला प्रशासन उपलब्ध कराएगा। पर्यटक अपने को प्राकृतिक वातावरण में पाएंगे। ग्रामीणों व मेजबानी करने वालों को आर्थिक लाभ पहुंचाने का प्रयास है। पर्यटकों की सुरक्षा का ध्यान रखा जाएगा। करीम बघेल वार्ता

There is no row at position 0.
image