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भूजलसंरक्षण के लिए आगे आये समुदाय : उमाशंकर

भूजलसंरक्षण के लिए आगे आये समुदाय : उमाशंकर

झांसी 04 जून (वार्ता) बुंदेलखंड के सूखे की समस्या एक ऐसी समस्या है जिससे आजादी के बाद की हर सरकार जूझती आयी है और सभी ने इस क्षेत्र को पानीदार बनाने के लिए गंभीर प्रयास किये लेकिन इसके बावजूद आजादी के 70 साल बाद भी यह समस्या ज्यों की त्यों ही बनी हुई है । ऐसे में सवाल उठना लाजमी है कि क्या इस समस्या का कोई समाधान नहीं । निराशा के इस अंधेरे में इसी क्षेत्र का एक छोटा सा गांव आशा का दीपक बन उम्मीद की रोशनी फैला रहा है।

एक गांव , एक छोटा सा गांव इस विकट समस्या का हल दे रहा है ,यह गांव है बुंदेलखंड के बांदा जिले का “ जखनी गांव” । अपने भागीरथ प्रयास से इस सूखे और उजाड़ गांव को पानीदार बनाकर सदा के लिए खुशहाल बनाने वाले सर्वोदयी कार्यकर्ता और जलयोद्धा उमाशंकर पांडे ने यूनीवार्ता से शनिवार को खास बातचीत में कहा कि बुंदेलखंड वह क्षेत्र हैं जहां छोटी बड़ी 35 नदियां है जिनमें पांच बडी और 30 प्रदेश स्तर की हैं , छोटे बड़े 225 बांध , 52000 कुएं ,300 नाले, 350 बावडियां और चंदेली तथा बुंदेली राजाओं द्वारा स्थापित लगभग 51 परंपरागत और प्राकृतिक जल संसाधन । इसके अलावा केंद्र तथा राज्य सरकारों ने अरबों रूपये पानी के लिए पानी की तरह बहाये फिर भी 21वीं सदी में भी बुंदेलखंड प्यासा है ।

जलयोद्धा ने कहा कि समस्या न तो सरकार की मंशा में है और न ही उसके प्रयास में लेकिन यह समझना होगा कि पानी समुदाय का मुद्दा है न कि सरकार का। हमारे पूर्वज और इस क्षेत्र के राजाओं ने बड़ी संख्या में तालाब ,कुंए और बावडियां इस क्षेत्र में लोगों से ही बनवायी थीं और लोगों को ही इसके रखरखाव की जिम्मेदारी दी थी । आजादी के बाद सरकार ने अपनी ओर से हर प्रयास कर यहां लोगों को पानी मुहैया कराया लेकिन इसके संरक्षण की जिम्मेदारी लोगों को नहीं दी ,नतीजा लोगों ने पानी का अंधाधुंध दोहन कर संसाधन को बरबाद कर दिया और फिर सब सरकार भरोसे छोड़ दिया। इस प्रवृति में ही बदलाव लाये जाने की जरूरत है।

श्री पांड के प्रयास से जखनी गांव के लोगों ने अपना भरोसा जगाया। परंपरागत खेती किसानी को अपनाया गावं के हर बच्चे बूढ़े जवान महिला और पुरूष ने बिना आधुनिक मशीनों के परंपरागत तरीकों से जलदेव को जगाया। खेत का पानी खेत और गांव का पानी गांव में रखने की संकल्पना पर काम करते हुए लोगों ने खेत पर मेढ़बंदी शुरू की और मेढ़ पर कम फैलाव वाले पेडों को लगाया गया। इससे बरसात के समय खेत में गिरने वाला पानी खेत में ही रहा मेढ़ पर लगे पेडों ने पानी और मिट्टी को बांधे रखने का काम किया। खेत के साथ साथ घर में इस्तेमाल हुए अतिरिक्त पानी का रूख भी तालाबों की ओर किया गया। इस प्रकार गांव के पांच से छह तालाब लबालब हो गये। तालाबों में पानी आया तो कुओं में भी नवयौवन दिखायी देने लगा जिन में पानी का स्तर 100 से 200 फुट नीचे चला गया था वह 15 से 20 फुट पर आ गया।

किसानों की मेहनत रंग लायी और जिस गांव में पलायन के कारण वीरानी छायी थी वहां 15 वर्षों की इस सामूहिक मेहनत से जिस गांव में पीने का पानी नहीं था वहां बासमती धान की खेती शुरू की गयी और 100कुंतल से शुरू हुआ उत्पादन 2019 तक 25 हजार कुंतल पहुंच गया। सिलसिला यहीं नहीं थमा गेंहू का उत्पादन 500 कुंतल से शुरू हो कर उत्पादन 17 हजार कुंतल, 10 कुंतल से शुरू हुआ प्याज का उत्पादन दो हजार कुंतल तक पहुंच गया। इनके साथ तिलहन दलहन, साग सब्जी , मछली पालन और दुग्ध उत्पादन जैसे काम गांव में फिर से शुरू हुाने से किसान समृद्ध और साधनसंपन्न हुआ। खेती में परंपरागत और आधुनिक तकनीक के यथानुसार इस्तेमाल से आज आलम यह है कि चार बीघे मात्र की कास्तकारी वाले किसान के पास भी यहां अब बिना किसी लोन के खुद का टैक्टर है।

गांव से पलायन कर गये 99 प्रतिशत युवा वापस आकर परंपरागत तरीके से खेती में लग गये आज ये प्रदेश का समृद्ध गांव माना जाता है । नीतिआयोग ने अपनी जल प्रबंधन रिपोर्ट 20 में जखनी गांव को देश का सर्वोतम गांव माना है । जल शक्ति मंत्रालय ने इस मॉडल पर देश के 1050 गांव को जलग्राम के रूप में चुना जो प्रत्येक जिले में दो गांव होंगे । जिलाधिकारी बांदा ने 470 ग्राम पंचायत में जखनी मॉडल लागू किया है। सुल्तानपुर की जिलाधिकारी ने 14 गांवों को जलग्राम बनाने के लिए चुना है।

श्री पांडे के अथक प्रयास से बिना किसी सरकारी मदद और आधुनिक तकनीक के मात्र परंपरागत तरीकों से जखनी जैसे सूखे गांव को पानीदार बनाया गया । एक सर्वोदयी और जलयोद्धा की मदद से एक गांव में लाये गये आमूलचूल परिवर्तन को सरकार ने भी माना और जलशक्ति मंत्रालय के गठन के बाद जल सचिव यू पी सिंह ने 2019 में गांव का दौरा किया और जखनी को देश का पहला जलग्राम माना।

श्री पांडे ने कहा कि हमने कोई बड़ी जटिल तकनीक का इस्तेमाल भूजलसंरक्षण के लिए नहीं किया। मेढ़बंदी ही देश में भूजलसंरक्षण की सबसे पुरानी पद्धति है जिसे जखनी ने अपनाकर खुशहाली ही राह पकड़ी। अब बाकी लोग भूजल संरक्षण के लिए जखनी से प्रेरणा लेे। अपनी समस्या का समाधान खुद ही परंपरागत तरीकों से करने की कोशिश करें हां सरकार इसमें मददगार हो सकती है लेकिन पूरी जिम्मेदारी लोगों को लेनी होगी । वर्तमान में जरूरत है कि ऐसे परंपरागत मॉडलों को पूरे बुंदेलखंड और देश में लागू किया जाए जिससे न केवल गांवों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके बल्कि समाज के सभी वर्गों का विकास परंपरागत तरीके से किया जा सके। ऐसे मॉडलों से ही प्र्रधानमंत्री मोदी की देश को आत्मनिर्भर बनाने की सोच को मूर्त रूप दिया जा सकता है।

सोनिया

वार्ता

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