खेलPosted at: Apr 19 2018 11:16PM डेफलिम्पिक्स में हिस्सा लेने वाले भारतीयों को मिले बराबरी का दर्जा: दीपेंद्र हुड्डा
नयी दिल्ली 19 अप्रैल (वार्ता) रोहतक से लोकसभा सांसद दीपेन्द्र सिंह हुड्डा ने विख्यात डेफलिंपियन वीरेन्द्र पहलवान को साथ लेकर केंद्रीय खेल सचिव राहुल भटनागर से मुलाकात कर मांग रखी कि ओलंपिक और पैरालिंपिक्स में पदक जीतने वाले खिलाड़ियों की तर्ज पर ही डेफलिम्पिक्स में पदक जीतने वाले भारतीयों को पुरस्कार इत्यादि में बराबरी का प्रोत्साहन दिया जाए।
उन्होंने कहा कि जिस प्रकार से अन्य एथलीटों को सरकार की तरफ से प्रोत्साहन मिलता है उसी प्रकार बिना किसी भेदभाव के मूक बधिर दिव्यांग खिलाड़ियों को भी प्रोत्साहन मिल सके।
हरियाणा में गूंगा पहलवान के नाम से मशहूर वीरेन्द्र सिंह डेफलिम्पिक्स में भारत के एकमात्र स्वर्ण पदक विजेता रहे हैं और यदि उनको शारीरिक अक्षमता से जुड़े नियमों के कारण बाहर नहीं किया जाता तो वह निश्चित तौर पर कुश्ती में भारत के लिये ओलंपिक पदक जीत कर ला सकते थे। खेलों के जानकार उन्हें देश के बड़े नामों वाले खिलाड़ियों के बराबर दमदार मानते हैं।
इस मुद्दे पर सरकार से हस्तक्षेप की जरुरत पर जोर देते हुए श्री हुड्डा ने कहा कि सुनने में अक्षम एथलीट को भी अन्य दिव्यांग खिलाड़ियों के समान ही मानना चाहिए और भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार ने डेफलिंपिक खिलाड़ियों के लिये पहले से ही ओलंपिक और पैरालिंपिक स्पर्धा के पदक विजेताओं को मिलने वाले फायदे और प्रोत्साहन सुनिश्चित करने का प्रावधान कर दिया था। हालांकि, केन्द्र सरकार अब तक इन खिलाड़ियों को एक बराबर का नहीं मानती।
सुनने में असमर्थ पहलवान वीरेन्द्र को विश्व चैंपियन और तीन बार डेफलिम्पिक्स में स्वर्ण पदक विजेता होने के बावजूद देश और सरकार ने भुला दिया और उनकी उपलब्धियों को समानांतर मान्यता नहीं दी। बड़े पैमाने पर जीत के बावजूद वीरेन्द्र को गुजर-बसर के लिये तंदुरुस्त पहलवानों से साथ मिट्टी में कुश्ती (दंगल) प्रतियोगिताएं लड़नी पड़ती हैं। वर्ष 2016 में वीरेन्द्र को प्रतिष्ठित अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था और 2005 के बाद से उन्होंने डेफलिम्पिक्स में 2005 से अब तक तीन स्वर्ण पदक और वर्ल्ड डेफ कुश्ती चैम्पियनशिप जैसी अंतरराष्ट्रीय स्पर्धाओं में कई पुरस्कार जीते हैं।
सचिन, रवि
वार्ता