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मथुरा में दीपावली पर्व मनाया जाता है अनूठे तरीके से

मथुरा में दीपावली पर्व मनाया जाता है अनूठे तरीके से

मथुरा, 26 अक्टूबर (वार्ता) उत्तर प्रदेश में मथुरा के ब्रजभूमि में दीपावली का त्यौहार पंच महापर्व के रूप में मनाया जाता है लेकिन तीन लोक से न्यारी मथुरा नगरी के रमणरेती क्षेत्र में यह पर्व पर्यावरण हितैषी भावना के अनुरूप अनूठे तरीके से मनाया जाता है। समय के परिवर्तन के साथ जहां सभी जगह त्यौहारों के मनाने के तौर तरीकों में परिवर्तन आया है वहीं गोपाल की भूमि में आज भी प्राचीनता बरकरार है। यहां के मंदिरों, घाटों तथा आश्रमों में आज भी दीपावली के दिन मोमबत्ती की जगह मिट्टी के दीपक का ही प्रयोग होता है। श्रीकृष्ण जन्मस्थान में जहां शहीदों की स्मृति में एक लाख दीपक जलाने की परंपरा है वहीं कृष्ण आश्रम रमणरेती में इस पर्व को पर्यावरण के साथ साथ जनकल्याण ,मानव एकता और प्राणी कल्याण से भी जोड़ा गया है। इस अनूठे कार्यक्रम को दीपदान का नाम दिया गया है तथा यह यमुना के ब्रह्माण्ड घाट पर आयोजित किया जाता है जिसमें इक्यावन हजार आटे के दीपकों से दीपदान किया जाता है। 


         ब्रह्माण्ड घाट की पौराणिकता और ऐतिहासिकता के बारे में काश्रणि आश्रम रमण रेती के महंत महामण्डलेश्वर काश्रणि स्वामी गुरूशरणानन्द महाराज ने आज यहां बताया कि कन्हैया ने जब एक बार माटी खाई तो मां यशोदा ने उनसे मुंह खोलने और मिट्टी थूकने की हिदायत दी।कुछ देर तक कान्हा ने मुंह नही खोला किंतु जब मां यशाेदा उन्हें डराने के लिए उनके हांथ बांधने लगीं तो उन्होंने मुंह खोल दिया। मां यशाेदा ने जैसे ही कान्हा के मुंह में ब्रह्माण्ड के दर्शन किये उन्हें समझ में आ गया कि उनका लाला कोई साधारण बालक नहीं है। यमुना के तट पर गोकुल से महाबन की ओर यमुना के जिस घाट पर यह चमत्कार मां यशाेदा को दिखाई दिया उसे “ब्रह्माण्ड घाट” कहते हैं। उन्होंने बताया कि इस पावन स्थल पर कन्हैया के चरण पड़े थे इसीलिए इस स्थल की पावन रज को मस्तक पर लगाकर लोग स्वयं को धन्य मानते हैं। इस पावन स्थल का महत्व तीर्थयात्रियों के लिए किसी धाम से कम नही है क्योंकि यह मोक्ष का द्वार खोलती है। तभी तो ब्रज रज के महत्व के बारे में कहा गया हैः- “ मुक्ति कहे गोपाल ते, मेरी मुक्ति बताय। ब्रज रज उड़ि मस्तक लगे, मुक्ति मुक्ति होइ जाय।”


          आश्रम के व्यवस्थापक स्वामी स्वरूपानन्द के अनुसार इसी घाट पर 29 अक्टूबर की शाम अनूठे आटे का दीपदान का आयोजन होगा जो पर्यावरण हितैषी होने के साथ प्राणीमात्र के कल्याण के लिए भी आयोजित होगा । यह आयोजन हर साल होता है तथा इसमें महामंडलेश्वर काश्रणि स्वामी गुरूशरणानन्द के सानिध्य में हजारों लोंगों को शामिल कर जहां भावनात्मक एकता स्थापित करने का प्रयास किया जाता है वहीं यह अनूठा आयोजन अंततोगत्वा मछली कछुओं का आहार बन जाता है। उन्होंने बताया इसमें आटे के इक्यावन हजार दीपक बनाकर फिर उनको इस प्रकार से घी में हल्का तला जाता है कि आटा कुछ पक जाय तथा उससे बने दीपकों के स्वरूप में परिवर्तन न हो । इसके बाद ही इनमे घी डालकर और बत्ती लगाकर इन्हे दीपक का स्वरूप देकर इन्हें दोने में रखकर ब्रह्माण्ड घाट में यमुना में जब प्रवाहित किया जाता है। यमुना में जलते प्रवाहित दीपक से यह घाट झिलमिल सितारों रूप ले लेता है। जल के प्रवाह के साथ साथ जब हजारों दीपक एक साथ यमुना में आगे बढ़ते हैं तो ऐसा लगता है कि आसमान यमुना के जल में उतर आया है। कार्यक्रम का समापन ब्रह्माण्ड घाट की पावन रज को मस्तक पर लगाकर किया जाता है। स्वामी स्वरूपानन्द ने बताया कि एकता स्थापित करने के लिए ही सामूहिक अन्नकूट एंव 56 भोग का आयोजन भी काश्रणि आश्रम रमण रेती में किया जाता है। इस बार यह कार्यक्रम 31 अक्टूबर को आयोजित होगा जिसमें सवा मन दूध, सवा मन दही, पांच किलो शहद, पांच किलो घी एवं पांच किलो बूरा एवं महौषधियों से गिर्राज जी का अभिषेक कर फिर गंगा जल से अभिषेक और ठाकुर का अनूठा श्रंगार उन्हें 56 भोग अर्पित किया जाता है। कार्यक्रम के अंत में दोपहर बाद भक्तों में सकड़ी प्रसाद का वितरण होता है। सामूहिक प्रसाद का आयोजन भक्तों में एक दूसरे को समझने एवं एकता की भावना पैदा करने में सेतु का काम करती है। 


 

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