नयी दिल्ली, 22 फरवरी (वार्ता) दिल्ली सरकार कोंडली स्थित अपने सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (एसटीपी) में एक विशाल 'गाद उपचार संयंत्र' लगा रही है, जिसके बाद प्रतिदिन 200 टन गाद उपचार करने की क्षमता हो जाएगी।
दिल्ली के जल मंत्री एवं दिल्ली जल बोर्ड के अध्यक्ष सत्येंद्र जैन ने कहा कि जल बोर्ड प्रतिदिन एसटीपी से 700-800 टन गाद का उत्पादन करती है, जिसे आधुनिक तकनीक का उपयोग करके हम संसाधन में परिवर्तित करेंगे। नया अपशिष्ट उपचार संयंत्र मौजूदा कोंडली एसटीपी के परिसर के अंदर बनाया जा रहा है।
उन्होंने कहा कि दिल्ली में गाद का प्रबंधन एक बड़ी समस्या है। गाद सीवेज उपचार संयंत्रों से निकलने वाले अवशेष होते हैं। सीवेज से निकला गाद ठोस, अर्ध-ठोस या घोल अवशिष्ट सामग्री होता है, जो सीवेज उपचार प्रक्रियाओं के दौरान बच जाते हैं। इस गाद को एक खुरचनी का उपयोग करके हटा दिया जाता है और फिर एक टैंक में स्थानांतरित कर दिया जाता है, जहां बायोगैस का उत्पादन करने के लिए इसे एनारोबिक बैक्टीरिया द्वारा विघटित किया जाता है। इस बायोगैस का उपयोग बिजली पैदा करने के लिए कम लागत वाले ईंधन के रूप में किया जाता है। इस प्रक्रिया के बाद भी गाद का कुछ अवशेष बच जाता है और इस शेष गाद को डीजेबी या एमसीडी की साइट के बड़े डंपयार्ड में डाल दिया जाता है। यह डंप यार्ड में दुर्गंध पैदा करता है, जो आस पास में रह रहे लोगों के लिए असुविधा का कारण बनता है और आसपास के निवासियों के लिए एक स्वच्छता का मुद्दा बन जाता है। इसके अलावा, बायोगैस के उत्पादन के बाद बचा हुआ अवशेष अक्सर लैंडफिल साइटों तक पहुंच जाता है, जिससे गाद के पानी का मिट्टी में रिसने का खतरा बढ़ जाता है। इसके अलावा, यह मिट्टी के प्राकृतिक छिद्रों को भरता है और बारिश के दौरान भूमिगत जलभृतों को रिचार्ज होने से भी रोकता है। इससे यह भूमि प्रदूषण का एक बड़ा कारक बन जाता है और साथ ही क्षेत्र के आसपास रहने वाले लोगों के स्वास्थ्य के लिए खतरा भी बन जाता है।
नया गाद उपचार संयंत्र गर्म हवा के ऑक्सीडाइजेशन की तकनीक पर आधारित है, जिसमें गर्म हवा का उपयोग करके गाद को सुखाया जाता है और बायोचार में परिवर्तित किया जाता है। इस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद सीवेज़ से निकालने वाले गाद का उपचार किया जा सकेगा और सिर्फ पांच फीसदी गाद अवशेष ही बचेंगे। अवशेषों का उपयोग आगे टाइल बनाने और मिट्टी की कंडीशनिंग करने में किया जाएगा। यह डीजेबी की पहली हाइब्रिड मॉडल परियोजना है, जहां टेक्नोलॉजी मुहैया कराने वाली कंपनी द्वारा 40 फीसद निवेश किया जाएगा। इस परियोजना में 15 साल की संचालन और रखरखाव की अवधि होगी, जिसका अर्थ है कि संबंधित एजेंसी द्वारा 15 वर्षों तक रखरखाव का काम किया जाएगा और इस दौरान किसी भी तरह की आने वाली ख़ामी को कंपनी ही दुरुस्त करेगी।
श्री जैन ने बताया कि डीजेबी प्रतिदिन एसटीपी से 700-800 टन गाद का उत्पादन करती है, जिसे आधुनिक तकनीक का उपयोग करके संसाधन में परिवर्तित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि दो साल के भीतर दिल्ली के सभी एसटीपी में एक स्वतंत्र गाद उपचार संयंत्र होगा, ताकि भविष्य में हमे एमसीडी पर लैंडफ़िल के लिए ज़मीन मुहैया कराने की किसी प्रकार की कोई भी निर्भरता न रहे।
उन्होंने बताया कि औद्योगिक क्षेत्र के 13 कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांटों में इसी तरह के समाधान लागू किए जाएंगे, जहां औद्योगिक संयंत्रों से उत्पन्न गाद प्रकृति को हानि पहुंचा सकते हैं। अपशिष्ट जल और गाद प्रबंधन सभी विकासशील देशों के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय बन गया है।
आजाद, यामिनी
वार्ता