नयी दिल्ली, 21 नवंबर (वार्ता) उच्चतम न्यायालय ने राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में वायु प्रदूषण से संबंधित मामले की सुनवाई करते मंगलवार को पंजाब सरकार से कहा कि वह हरियाणा सरकार यह सबक ले कि पराली जलाने पर रोक लगाने के लिए उसने किस प्रकार से किसानों को वित्तीय प्रोत्साहन दिया।
न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ ने कहा कि राज्य और केंद्र सरकारों को इस मामले में 'राजनीति' भूल कर यह पता लगाना चाहिए कि पराली जलाने पर कैसे रोक लगाया जाए।
पीठ ने कहा, 'उन्हें (पंजाब सरकार को) किसानों को दिए जाने वाले प्रोत्साहन के संबंध में हरियाणा से सीखना चाहिए।'
शीर्ष अदालत ने पंजाब सरकार से किसानों को कुछ हद तक समर्थन देने को कहा और पूछा कि उन्हें (किसानों) खलनायक क्यों बनाया जा रहा है। उनके पास पराली जलाने के कुछ कारण होने चाहिए।
पीठ ने आगाह करते हुए कहा कि अगर आरोप-प्रत्यारोप का खेल जारी रहा तो जमीन सूख जाएगी और पानी गायब हो जाएगा।
पीठ की अध्यक्षता कर रहे न्यायमूर्ति कौल ने पराली जलाने वाले को कुछ हतोत्साहन के बारे में बात करते हुए कहा, “मैं गंभीरता से सोच रहा हूं… इन लोगों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली के तहत कोई खरीद क्यों होनी चाहिए? कानून का उल्लंघन करने वाले लोगों को आर्थिक लाभ क्यों मिलनी चाहिए"।
पीठ ने सुझाव दिया कि जो किसान पराली जला रहे हैं, उन्हें चावल उगाने की इजाजत बिल्कुल नहीं दी जानी चाहिए।
न्यायमूर्ति धूलिया ने कहा, 'पराली जलाने के उनके पास कुछ कारण होंगे। प्रश्न बहुत प्रासंगिक हैं कि वे ऐसा क्यों कर रहे हैं? राज्य हमें यह जवाब देने में सक्षम नहीं है।'
पीठ ने मशीनरी वितरण के संबंध में राज्य और केंद्र के वकील से पूछा कि वे इसे 100 फीसदी मुफ्त क्यों नहीं करते।
शीर्ष अदालत ने सात नवंबर को पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश और दिल्ली सरकारों को फसल (पराली) जलाने पर तुरंत रोक लगाने का आदेश दिया था।
शीर्ष अदालत ने केंद्र को बाजरा जैसी अन्य वैकल्पिक फसलों पर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) देकर पंजाब में धान की खेती को चरणबद्ध तरीके से बंद करने पर विचार करने का भी निर्देश दिया था।
बीरेंद्र,आशा
वार्ता