प्रयागराज, 30 अक्टूबर (वार्ता) दीपावली नकारात्मक ऊर्जा स्रोत को मन-मस्तिष्क से दूर करता है और सकारात्मक ऊर्जा जगाने का आध्यात्मिक पर्व है। यह पर्व हमें आध्यात्मिक रूप से आत्मज्ञान, शुद्धि, समृद्धि और धर्म का संदेश देने की सीख देता है।
दीपक के रूप भले ही समय के अनुसार बदलते रहे लेकिन इसका आध्यात्मिक स्वरूप प्रकाश देने की प्रक्रिया में कोई बदलाव नहीं आया। उसी प्रकार जीवन में भूल को सुधारकर नए सिरे से उसे प्रगति का संकल्प लेकर आगे बढ़ना चाहिए। दीये का स्वभाव स्वत: जलकर दूसरों को प्रकाश देना है। भारतीय परंपरा हमारे वेद ज्ञान का स्रोतपूंज हैं। वेदों में अग्नि को देव रूप में माना गया है। अग्नि के तेज में देवताओं का निवास होता है। दीपक एकता का प्रतीक भी माना जाता है। यह किसी में भेद न/न कर समता को प्रदर्शित करता है।
संस्कृत में विद्यावारिधि (पी एच डी) कर सात संस्कृत पुस्तकों का लेखन और संपादन कर चुके व्याकराणाचार्य डा गायत्री प्रसाद पाण्डेय ने बताया कि ‘दीपावली’ शब्द संस्कृत से आया है। ‘दीप’ का अर्थ है ‘प्रकाश’ और ‘अवली’ का अर्थ है ‘पंक्ति’, जिसका शाब्दिक अर्थ है ‘रोशनी की पंक्ति।’ यह पर्व हिंदू माह, कार्तिक की अमावस्या को मनाया जाता है।
डा पाण्डे ने बताया कि जनमानस में दीपावली एक सांस्कृतिक पर्व के रूप में अपनी व्यापकता सिद्ध कर चुका है। यह तो मानना होगा कि जिन ऐतिहासिक महापुरुषों के घटना प्रसंगों से इस पर्व की महत्ता जुड़ी है, वे अध्यात्म जगत के शिखर-पुरुष थे। इस दृष्टि से दीपावली पर्व लौकिकता के साथ-साथ आध्यात्मिकता का भी अनूठा पर्व भी है।
श्री पाण्डे को उनकी रचना के लिए नौ पुरस्कार मिले हैं जिसमें मुख्य रूपसे प्रदेश सरकार द्वारा अष्टवक्र गीता रहस्यम
के लिए विशेष पुरस्कार, संस्कृत संस्थान से यायावरीयम, बाणभट्ट, व्याकरण एवं वेदांत, धर्मसंघ वाराणसी से ‘करपात्र गौरव’, और श्रीकोडिमठ संसकृत साहित्य पुरस्कार शामिल हैं।
डाॅ पाण्डे ने बताया कि यह त्योहार आंतरिक रोशनी और आत्म-प्रतिबिंब को प्रोत्साहित करने वाला है। बाहरी उत्सवों से परे, दीपावली का गहरा आध्यात्मिक महत्व है। दीपक जलाना आंतरिक प्रकाश का प्रतीक है जो आध्यात्मिक अंधकार से बचाता है, जो अज्ञान पर ज्ञान, बुराई पर अच्छाई और निराशा पर आशा का प्रतिनिधित्व करता है। यह रूपक पहलू इस त्योहार को सांस्कृतिक और धार्मिक सीमाओं के पार प्रासंगिक बनाता है।
प्रकाश, ज्ञान और अच्छाई के उत्सव के रूप में, दीपावली लाखों लोगों के जीवन को रोशन कर रही है। पीढ़ियों और भौगोलिक सीमाओं के पार एकता, खुशी और सांस्कृतिक गौरव को बढ़ावा दे रही है। जैसे-जैसे भारतीय समुदाय विश्व स्तर पर फैला है, दीपावली को अंतरर्राष्ट्रीय मान्यता मिल गई है। दुनिया के प्रमुख शहर न्यूयॉर्क, लंदन, अमेरिका, रूस, यूरोप, अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया, मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, वियतनाम, मालदीव आदि देशों और महाद्वीपों में उल्लास पूर्वक मनाया जाता है। इस वैश्वीकरण ने उत्सवों को स्थानीय संदर्भों में ढाल विश्व बिरादरी को उत्सव की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत से रूबरू कराया है।
व्याकरणाचार्य ने बताया कि आचरण से पहले ज्ञान को, चारित्र पालन से पूर्व सम्यक्त्व को आवश्यक माना है। ज्ञान जीवन में प्रकाश करने वाला होता है। हमारे भीतर अज्ञान का तमस छाया हुआ है। वह ज्ञान के प्रकाश से ही मिट सकता है। ज्ञान दुनिया का सबसे बड़ा प्रकाश दीप है। जब ज्ञान का दीप प्रज्वलित होता है तब भीतर और बाहर दोनों आलोकित हो जाते हैं। अंधकार का साम्राज्य स्वत: समाप्त हो जाता है।
श्री पाण्डे ने बताया कि तन रूपी दीपक में मन रूपी बाती को स्थापित करके प्रेम रूपी घी से मानव जीवन और समाज को प्रकाशित करना यही दीपक का अर्थ है। अहंकार का त्याग कर हम जीवन की सत् मार्ग पर हो यही दीपक का सही मायने में महत्व है। दीपक का प्रकाश नकारात्मक ऊर्जाओं को भी समाप्त करता है। दीपावली पर्व की सार्थकता के लिए जरूरी है कि दीये बाहर के ही नहीं, दीये मन के भीतर भी जलने चाहिए। दीया कहीं भी जले, उजाला ही देता है। दीये का संदेश है- हम जीवन से कभी पलायन न करें, जीवन को परिवर्तन दें, और परिवर्तन जीवन के सार्थक विकास की मार्ग खोज लेती हैं।
उन्होंने बताया कि यह त्योहार अवगुणों और बुराई के प्रतीक राक्षस ‘रावण’ पर, पुरुषों की मर्यादा का सूत्रपात करने वाले प्रभु ‘श्री राम’ के द्वारा सत्य की विजय के रूप में लोकमानस का अंग बन चुका है। ‘दीपावली’ संस्कृत शब्द से व्युत्पन्न है, जिसका अर्थ है रोशनी की एक पंक्ति है। जब रावण पर विजय प्राप्त करके प्रभु श्री राम गृहनगर अयोध्या लौटे, तो पुरवासियों ने दीपों से पूरे नगर को सजाया था, जो कालजयी परिघटना बन गई और उसी चिर स्मरण पर्व को अब तक भी परंपरा के रूप में मनाया जाता है।
दिनेश प्रदीप
वार्ता