इटावा , 04 अक्टूबर (वार्ता) जलचरों का पंसदीदा प्रवास स्थल चंबल सेंचुरी में डाल्फिन की अठखेलियां पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बनी हुयी है।
पर्यावरणीय संस्था सोसायटी फाॅर कंजरवेशन ऑफ़ नेचर के महासचिव डा.राजीव चौहान ने रविवार को यूनीवार्ता से खास बातचीत में कहा कि सैकड़ों दुर्लभ जलचरो का संरक्षण कर रही चंबल नदी हालांकि तीन राज्यो राजस्थान,मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश मे प्रवाहित हो रही है लेकिन यूपी के हिस्से मे डाल्फिनो की मौजूदगी हर किसी को अपनी ओर आकर्षित करती है ।
स्वतंत्रता दिवस पर डाल्फिन के संरक्षण काे लेकर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अपील के बाद लोगो के मन में दुर्लभ जीव के प्रति आर्कषण बढा है । प्रधानमंत्री ने 74वें स्वतंत्रता दिवस पर ‘प्रोजेक्ट डाल्फिन’ की घोषणा करते हुए कहा कि इससे जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे । केंद्र सरकार प्रोजेक्ट डाल्फिन को बढ़ावा देना चाहती है । नदियों और समुद्रों में रहने वाले दोनों तरह के डाॅल्फिन पर ध्यान देंगे । इससे जैव विविधता को बढ़ावा मिलेगा और रोजगार के अवसर उत्पन्न होंगे। यह पर्यटन के लिए आकर्षण का केंद्र भी होगा । डाल्फिन को 2009 में राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया था ।
उन्होने बताया कि उत्तर प्रदेश मे चंबल नदी का प्रवाह रेहा बरेंडा से शुरू होता है लेकिन इटावा जिले मे इसकी शुरूआत पुरामुरैंग गांव से होते हुए प्रवाह पंचनदा तक रहता है । पंचनदा से पूर्व चंबल नदी यमुना नदी में विलय हो जाती है जिसके बाद यमुना नदी कहलाती है ।
जिले मे गढायता ,बरौली,खेडा अजब सिंह,ज्ञानपुरा,कसौआ,बरेछा,कुंदौल,पर्थरा महुआसूडा और चिकनी टाॅवर पर डाल्फिनो की मौजूदगी होती है जहाॅ पर उनको देखने के लिए बडी तादाद मे स्थानीय और दूर दराज से पर्यटकों का आना जाना लगा रहता है । चौहान बताते है कि इनमे से पर्थरा मे 8 से लेकर 11,कसौआ मे 5 से लेकर 7,चिकनी वाॅच टावर पर पांच के आसपास डाल्फिनो को देखा जाता है ।
इटावा जिले मे 55 से लेकर 60 के आसपास डाल्फिनो को विभिन्न स्थानो पर देखे जाने की तस्दीक विभिन्न स्तर पर की गई है वैसे पूरे चंबल की बाते करे तो यह तादात 95 के आसपास होती है ।
डॉ. चौहान ने बताया कि इटावा जिले मे डाल्फिन के संरक्षण के लिए इटावा जिले के डिभौली,कसौआ,सहसो,पचनदा और इटावा मे कार्यक्रम आयोजित किए जा रहे है ।
सामाजिक वानिकी प्रभाग के प्रभागीय निदेशक राजेश सिंह वर्मा बताते हैं कि डाल्फिन पानी में तीन से पांच मिनट रह पाती है उसके बाद इसको पानी की सतह पर सांस लेने के लिए आना पड़ता है इस दौरान यह लगभग 30 से 120 सेकंड पानी से बाहर रहती है सांस लेने के लिए जब यह पानी से उछाल लेती है तो इसका उछाल देखने लायक होता है।
डाल्फिन के आकर्षण की बात करते हुए यमुना नदी मित्र समिति के अध्यक्ष इंद्रभान सिंह परिहार बताते है कि पंचनदा पर भ्रमण करने आने वाले अधिकाधिक लोग यहाॅ पर केवल डाल्फिन को देखने का जिज्ञासा लेकर ही आते है । पचनदा पर आने वालो मे से प्रतिदिन कम से कम पचास साठ लोग केवल डाल्फिन को ही देखने की मांग करते है। ऐसा ही कुछ पर्यावणीय अजय कुमार मिश्रा भी बताते है कि देश के विभिन्न हिस्सो मे बैठे उनके मित्र अमूमन चंबल नदी मे डाल्फिनो को देखने की बात कहते हुए इटावा तक आते है और डाल्फिनो को देखने के बाद आंनद की अनूभूति का एहसास करके वापस लौट जाते है ।
डाल्फिन की वास्तविक स्थिति का आकंलन करने के लिये उत्तर प्रदेश सरकार ने वन विभाग और डब्लूडब्लूएफ के सहयोग से करने का काम शुरू करने की कवायद कर रखी है । चंबल नदी मे 2008 मे डाल्फिन के मरने का मामला उस समय सामने आया था जब बडे पैमाने पर घड़ियालो की मौत हुई थी । उस समय दो डाल्फिनो की मौत ने चंबल सेंचुरी अफसरो को सकते मे ला दिया था । उसके बाद डाॅल्फिनो के मरने की खबरे आ जाती है कहा जाता है कि चंबल नदी मे अवैध शिकार इस जलचर की मौत का बडा कारण है लेकिन चंबल सेंचुरी के अफसर इन मौतो को स्वाभाविक बता करके शिकार से पल्ला झाड लेता रहा है।
डाल्फिन को राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया गया है और सरकार की ओर से उसे बचाने के दावे-दर-दावे हो रहे हैं। यूं उसके शिकार पर 1972 से ही पाबंदी है पर तस्करों की निगाह उस पर बराबर लगी हुई है। डाल्फिन मानव के मित्र के रूप में जाना जाता है। वह नदी में अक्सर कुलांचें भर-भर कर सावधान करता रहता है कि कहां पर पानी गहरा है और कहां भंवर है। डाल्फिन की जैव संरक्षण में अहम भूमिका है। गंगा और उसकी सहायक नदियों के साथ ही ब्रहृपुत्र और उसकी सहायक नदियों में भी पायी जाती है। बिहार-उत्तर प्रदेश में पर यह सोंस और असम में जिहू नाम से जानी जाती है। आज से चार-साढ़े चार दशक पूर्व तक इसके अस्तित्व पर कोई संकट नहीं था।
उत्तर भारत की पांच प्रमुख नदियों यमुना, चंबल, सिंध, क्वारी व पहुज के संगम स्थल ‘पंचनदा’ डाल्फिन के लिये सबसे खास पर्यावास है। क्योंकि नदियों का संगम इनका मुख्य प्राकृतिक वास होता है और यहां पर एक साथ 16 से अधिक डाल्फिनों को एक समय में एक साथ पर्यावरण विशेषज्ञों ने देखा, तभी से देश के प्राणी वैज्ञानिक पंचनदा को डाल्फिनों के लिये महत्वपूर्ण स्थल मान रहे हैं और इस स्थान को पूर्णतया सुरक्षित रखने की मांग भी कर रहे हैं लेकिन आज तक ऐसा हो नही सका ।
डाल्फिन स्तनधारी जीव हैं जो पानी में रहने के कारण मछली होने को भ्रम पैदा करती है, सामान्यत इसे लोग सूंस के नाम से पुकारते है, इसमें देखने की क्षमता नहीं होती हैं लेकिन सोनार यानी घ्वनि प्रक्रिया बेहद तीब्र होती हैं, जिसके बलबूते खतरे को समझती है। मादा डाल्फिन 2.70 मीटर और वजन 100 से 150 किलो तक होता है, नर छोटा होता है, प्रजनन समय जनवरी से जून तक रहता है। यह एक बार में सिर्फ एक बच्चे को जन्म देती है।
डाल्फिन को बचाने की दिशा में सबसे पहला कदम 1979 में चंबल नदी में राष्ट्रीय सेंचुरी बना कर किया गया । डाल्फिन को वन्य जीव प्राणी संरक्षण अघिनियम 1972 में शामिल किया गया । हर साल एक अनुमान के मुताबिक 100 डाल्फिन विभिन्न तरीके से मौत की शिकार हो जाती हैं, इनमें मुख्यतया मछली के शिकार के दौरान जाल में फंसने से होती है, कुछ को तस्कर लोग डाल्फिन का तेल निकालने के इरादे से मार डालते हैं। दूसरा कारण नदियों का उथला होना यानी प्राकृतिक वास स्थलों का नष्ट होना,नदियों में प्रदूषण होना और नदियों में बन रहे बांध भी इनके आने-जाने को प्रभावित करते हैं।
अवैध शिकार की वजह है कि डाल्फिन के जिस्म से निकलने वाले तेल का उपयोग मछलियों के शिकार एवं मानव हड्डियों को मजबूत करने के लिए प्रयोग किया जाता है। यही कारण है कि इसके तेल की बाजार में कीमतें भी अधिक होती हैं। इसलिए शिकारियों की नजरों में डाल्फिन एक धन कमाने का जरिया बन चुकी है।
डाल्फिन का शिकार दंडनीय अपराध है। शिकार करते हुए पकड़े जाने पर आरोपी को छह साल के कारावास तथा पचास हजार रुपये जुर्माना का प्रावधान है। डॉल्फिन संरक्षण के लिए नमामि गंगे परियोजना मैं बहुत महत्व दिया जा रहा है अभी हाल में ही कई सारी डॉल्फिन संरक्षण की परियोजनाएं क्रियान्वित की गई है जिनमें सामुदायिक सामुदायिक सहभागिता को निश्चित रूप से शामिल करने का आवाहन किया गया।
सं प्रदीप
वार्ता