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राज्य


आजादी के आंदोलन मे चंबल के दुर्दांत डकैतों का भी रहा है योगदान

इटावा, 14 अगस्त(वार्ता) उत्तर प्रदेश में चंबल के बीहडों में रहने वाले दुर्दांत डकैतों ने भले ही कई सरकारों की रात की नींद और दिन का शकून छीन लिया हो लेकिन यह बहुत ही कम लोगों को पता होगा कि इन्होंने भी आजादी के दीवानों की तरह क्रांतिकारियों के कंधे से कंधा मिलाकर अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ संघर्ष किया था। चंबल मे आजादी के मतवालों पर शोध कर रहे शाह आलम का कहना है कि देश की आज़ादी के पूर्व चंबल में बसने वाले डाकू, जिन्हें पिंडारी कहा जाता था, देश के क्रांतिकारियों को न केवल असलहा और गोला,बारूद मुहैया कराया बल्कि उनको छिपने के लिए शरण भी दी। चंबल के बीहड़ों में आजादी की जंग 1909 से शुरू हुई थी। चंबल में रहने वाले डकैतों ने क्रांतिकारियों का भरपूर सहयोग और साथ दिया । उन्होंने बताया कि बीहड़ क्रांतिकारियों के छिपने का सुरक्षित ठिकाना हुआ करता था। बीहड में बसे डकैतों के पूर्वजों ने आजादी की लड़ाई में कंधे से कंधा मिलाकर क्रान्तिकारियों का साथ दिया लेकिन आजादी के बाद उन्हें कुछ नहीं मिला। राजस्थान से लेकर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में चंबल के किनारे 450 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्रफल में बागी आजादी से पहले रहा करते थे । चंबल के डकैतों को बागी कहलाना ही पसंद था। आजादी के बाद बीहड़ में जुर्म होने लगे। 


         श्री शाह आलम ने बताया कि पिंडारी मुगलकालीन जमींदारों के पाले हुए वफादार सिपाही हुआ करते थे, जिनका इस्तेमाल जमींदार विवाद को निबटाने के लिए किया करते थे। मुगलकाल की समाप्ति के बाद अंग्रेजी शासन में चंबल के किनारे रहने वाले इन्हीं पिंडारियों ने जीवन यापन के लिए डकैती डालना शुरू कर दिया और बचने के लिए चंबल की बीहड की वादियों का रास्ता अपनाया । अंग्रेजों के खिलाफ भारत छोड़ो आन्दोलन में चंबल के किनारे बसी हथकान रियासत के हथकान थाने पर 1909 में चर्चित डकैत पंचम सिंह, पामर और मुस्कुंड के सहयोग से क्रान्तिकारी पडिण्त गेंदालाल दीक्षित ने हमला कर 21 पुलिसकर्मियों की हत्या कर थाना लूट लिया था। इन्हीं डकैतों ने क्रान्तिकारी गेंदालाल दीक्षित, अशफाक उल्ला खान के नेतृत्व में सन 1909 में ही पिन्हार तहसील का खजाना लूटने के बाद उन्हीं हथियारों से नौ अगस्त 1915 को हरदोई से लखनऊ जा रही ट्रेन को काकोरी रेलवे स्टेशन पर रोककर सरकारी खजाना लूटा था। स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान वर्ष 1914-15 मे क्रान्तिकारी गेंदालाल दीक्षित ने चंबल घाटी में क्रान्तिकारियों के एक संगठन “मातृवेदी” का गठन किया था। संगठन मे हर उस आदमी की हिस्सेदारी का आवाह्न किया गया जो देशहित में काम करने का इच्छुक हो। उसी दरम्यान सहयोगियों के तौर चंबल के कई बागियों ने आजादी की लडाई मे सहयोग करने के लिये इच्छा जताई थी।


         इसी सम्बन्ध मे चंबल के खूंखार डाकू ब्रह्मचारी के मन मे देश को आजाद कराने का जज्बा पैदा हुआ और उसने अपने 100 से अधिक साथियों के साथ “मातृवेदी” संगठन का सहयोग करना शुरू कर दिया। ब्रह्मचारी डकैत के क्रान्तिकारी आंदोलन से जुडने के बाद चंबल के क्रान्तिकारी आंदोलन की शक्ति काफी बढ गई और फिरंगी शासन के दमन चक्र के विरूद्ध प्रतिशोध लेने की मनोवृत्ति तेज हो चली। ब्रह्मचारी अपने बागी साथियो के साथ चंबल के ग्वालियर में डाका डालने के बाद यमुना के बीहडों मे शरण लिया करता था। ब्रह्मचारी ने लूटे गये धन से मातृवेदी संगठन के लिये खासी तादात मे हथियार खरीदे। इसी दौरान ब्रह्मचारी ने चंबल संभाग के ग्वालियर मे एक किले को लूटने की योजना बनाई लेकिन योजना को अमली जामा पहनाये जाने से पहले ही अंग्रेजो को इसका पता चल गया। अंग्रेजो ने ब्रह्मचारी के खेमे मे अपना एक मुखबिर शामिल कर दिया। पडाव मे खाना बनाने के दौरान ही इस मुखबिर ने पूरे खाने मे जहरीला पदार्थ डाल दिया। इस करतूत का पता लगाकर ब्रह्मचारी ने उसे मारा डाला लेकिन तब तक अंग्रेजो ने ब्रह्मचारी के पडाव पर हमला कर दिया। जिसमे दोनों ओर से बहुत देर तक गोलियां चलीं। ब्रह्मचारी समेत उनके दल के करीब 35 डकैत शहीद हो गये ।


        कालेश्वर महापंचायत के अध्यक्ष बापू सहेल सिंह परिहार ने डाकुओं की देशप्रेमी छवि का जिक्र करते हुये बताया कि चंबल के खूंखार बागी ब्रह्मचारी ने अपने सैकडों सर्मथक बागियों के साथ स्वतंत्रता आंदोलन में अंग्रेजों के खिलाफ क्रांतिकारियों का साथ दिया। चकरनगर ब्लाक प्रमुख के प्रभा मुकेश सिंह का कहना है कि आजादी की लडाई में चंबल घाटी का खासा योगदान रहा है। आजादी के दौरान कई ऐसे गांव रहे है जिन गांव मे अंग्रेज प्रवेश करने को तरसते रहे और ऐसे भी कई गांव रहे है जहां पर अंग्रेज अफसरों को मौत के घाट तक उतार दिया गया। चंबल इलाके का कांयछी एक ऐसा गांव माना गया है जहां पर अंग्रेज अफसर आजादी के दीवानों को खोजने के लिये गांव को ही नहीं खोज पाये । इस घाटी के बंसरी गांव के 30 से अधिक डकैतों ने फिरंगियों से लोहा लेते हुए अपना जीवन वतन पर न्यौछावर कर दिया था। आज भले ही चंबल घाटी के डकैतों ने देशप्रेम की छवि को पूरी तरह से कलंकित कर दिया है लेकिन इस चंबल घाटी की ऐसी भी तस्वीर रही जहां के दुर्दांत डकैतों ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान क्रांतिकारियों का भरपूर सहयोग देकर फिरंगियों से संघर्ष करते हुए देश की खतिर अपना जीवन बलिदान कर दिया।


 

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