Friday, Mar 29 2024 | Time 21:10 Hrs(IST)
image
लोकरुचि


दशमी से शुरू होगी सुलतानपुर की दुर्गापूजा

दशमी से शुरू होगी सुलतानपुर की दुर्गापूजा

सुलतानपुर 15 अक्टूबर (वार्ता) उत्तर-प्रदेश के सुलतानपुर जिले की ऐतिहासिक दुर्गापूजा अपनी अनूठी परम्पराओं के लिए प्रसिद्ध है। दो वर्ष कोरोना काल में मूर्तियां छोटे स्वरूप स्थापित हो रही थी। सरकार की बंदिशों के बीच इस वर्ष मूर्तियों को थोड़ा बड़ी करने के साथ विशाल पंडाल नही बनाये गए हैं,मगर झांकी की भव्यता में कोई कमी होते नही दिख रही हैं।

सुलतानपुर जिले की ऐतिहासिक दुर्गापूजा महोत्सव की व्यापकता के मामले में कलकत्ता के बाद देश में दूसरे स्थान का गौरव लिये सुलतानपुर कुछ मामले में विश्व में सबसे अलग है। शुरूआती दौर में एक समय था जब माॅं दुर्गा का विर्सजन कहारों के कंधो पर निकलता था। सुलतानपुर में वृहद स्तर पर होने वाले दुर्गापूजा महोत्सव का यह 63वां वर्ष है। प्रतिवर्ष पूजा समितियों की ओर से अपनी समितियों को और भी आकर्षक एवं मनोहारी स्वरूप प्रदान किया जाता हैै। 15अक्टूबर को विजयादशमी के साथ जहाँ देश भर में दुर्गापूजा सम्पन्न हो जाएगी। वहीं सुलतानपुर में दशहरा के साथ ही दुर्गापूजा महोत्सव अपने चरर्मोत्कर्श पर है जो 20 अक्टूबर पूर्णिमा के दिन विराट विसर्जन शोभायात्रा के साथ सम्पन्न होगा।

उल्लेखनीय है कि सुलतानपुर जिले में दुर्गापूजा की शुरूआत ठठेरी बाजार मेें वर्ष 1959 से भिखारी लाल सोनी के नेतृत्व में हुई थी। जिसमें दुर्गाभक्तों के एक दल ने श्रीदुर्गा माता पूजा समिति की स्थापना कराई गयी थी । जिसकी प्रतिस्पर्धा में रूहट्ठा गली में श्रीकाली माता पूजा समिति, लखनऊ नाका पर संतोषी माता पूजा समिति, पंचरास्ते पर कालीमाता पूजा समिति, ठठेरी बाजार में शीतला माता पूजा समिति व चौक में सरस्वती माता पूजा समिति की स्थापना हुई। उस समय मूर्तियोें के विसर्जन के लिए टै्रक्टरों आदि की सुविधा उपलब्ध नहीं थी, जिससे माँ की प्रतिमाओं को कहारों के कंधों से ले जाया जाता था। इस विसर्जन शोभायात्रा में दुर्गा प्रतिमा को आठ से अट्ठारह कहार लगकर अपने कंधों पर रख शहर भ्रमण करते हुए गोमती नदी के सीताकुण्ड घाट तक ले जाते थे।

वर्ष 1972 के बाद से देवी माँ की प्रतिमाओं में उत्तरोत्तर बढ़ोत्तरी हुई। जिसका श्रेय तत्कालीन केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति के अध्यक्ष राजेन्द्र सेठ उर्फ रज्जन सेठ को जाता हैै। जिन्होंने साईकिल से भ्रमण कर दुर्गाभक्तों को मूर्ति स्थापना के लिए प्रेरित किया। आज छह दशक पूरे होने के बाद शहर में अकेले करीब डेढ़ सौ प्रतिमाएं स्थापित हो रही हैैं। दुर्गापूजा महोत्सव में पूजा समितियों के बढ़ने के बाद सभी पर समान नियंत्रण रखने के लिए पहले सर्वदेवी पूजा समिति का गठन हुआ। बाद में जिसका नाम बदलकर केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति हो गया। जो इस समय कार्य कर रही है। यह समिति पूरे महोत्सव में मुख्य भूमिका में होती हैं, प्रशासन सेकेंड्री बन कर सहयोग करता है। आज यह महापर्व के रूप में मनाया जाता हैै। लगभग एक पखवारे तक चलने वाली यहाँ की दुर्गापूजा अपने आप में अनूठी है, क्योंकि देश के अन्य स्थानों पर नवरात्र के प्रथम दिन ही देवी माताओं की प्रतिमाओं की स्थापना कर विजयादशमी को विसर्जित कर दिये जाते हैं। जबकि सुलतानपुर जिले में विजयादशमी के पांच दिन बाद पूर्णिमा को सामूहिक रूप से सैकड़ों प्रतिमाओं की विशाल शोभायात्रा नगर के ठठेरी बाजार प्रथम दुर्गामाता पूजा समिति स्थल से निकाली जाती है। विसर्जन आदि गंगा गोमती के सीताकुण्ड घाट पर केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति के द्वारा निर्धारित मार्ग से होकर करीब 36 घण्टे निरन्तर चलते रहने के बाद अगले दिन देर सायं से प्रारम्भ होती है। जो अनवरत अगले दिन तक जारी रहती है।

महोत्सव में पूजा समितियों की ओर से प्रतिवर्ष देश भर के प्रख्यात मन्दिरों के माॅडल को पण्डालों में उतारा जाता है।

इस विशाल और अनूठी परम्पराओं वाली दुर्गापूजा महोत्सव को देखने के लिए पड़ोसी जनपदों फैजाबाद, प्रतापगढ़, जौनपुर, अम्बेडकरनगर, रायबरेली, बाराबंकी, भदोही, वाराणसी, इलाहाबाद, उन्नाव, लखनऊ आदि के विभिन्न क्षेत्रों से श्रृद्धालु आते हैैं। इन श्रृद्धालुओं को मेले में आने पर खाने से लेकर रहने व चिकित्सा तक की सारी सुविधाएं पूजा समितियां एवं स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा किया गया हैै। नवयुवक दल सहित तमाम ऐसी स्वयंसेवी संस्थाएं हैं, जो मूर्ति स्थापना से लेकर विसर्जन तक भक्तों को प्रसाद के रूप में अलग-अलग व्यजंनों का भोजन वितरण करते हैं। ठहरने के लिए रैन वसेरा बनाये गए हैै। दर्जनभर स्थानों पर चिकित्सा शिविर व खोया-पाया शिविर आयोजित हैं।

सुलतानपुर की दुर्गापूजा अपने अनूठी परम्पराओं से ही प्रसिद्धि नहीं पायी हैै, बल्कि यहाँ की कौमी एकता एवं सद्भावना भी नमन योग्य है। माँ दुर्गा की अद्भुद छठा को देखने के लिए मुस्लिम महिलाएं एवं बच्चे बूढ़े भी शामिल होते हैैं। महोत्सव में आकर्षक कई पूजा समितियों में मुस्लिम समुदाय के युवक भी अपनी सक्रिय भागीदारी निभाते हैं तथा स्वयंसेवी संस्थाओं की ओर से रातभर जगकर सुरक्षा आदि व्यवस्थाओं में सहयोग करते हैं। कई बार ऐसे मौके भी आए हैं जब मोहर्रम-बारावफात और दुर्गापूजा साथ-साथ पड़े हैं, पर दोनों वर्गों के प्रबुद्ध लोगों के आपसी सामांजस्य के कारण सुलतानपुर का साम्प्रदायिक माहौल कभी बिगड़ने नहीं पाया।

इस बार भी विसर्जन के एक दिन पहले बारावफात पड़ रहा हैं। प्रशानिक हल्का इसको लेकर काफी संवेदनशील बना हुआ है किंतु पूजा समितियां पहले की भांति निश्चिंत होकर पूजा व्यवस्था में लगी हैं। यह महोत्सव लगभग एक पखवारे तक सभी वर्गाे के लोगों को रोजगार भी मुहैया कराता हैै।

जिला प्रशासन व पुलिस प्रशासन ने भी दुर्गापूजा की व्यवस्थाओं से सम्बन्धित तैयारियाँ कर ली है। उन्हें अन्तिम रूप दिये जाने में वह पूजा समितियों का सहयोग ले रहे हैं। प्रशासन व पुलिस की हर स्तर पर व्यापक पैनी निगाह है। दुर्गा पूजा में नियंत्रण हेतु केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति एवं जिला सुरक्षा संगठन सहित कई सेवा शिविरों का शुभारम्भ जिलाधिकारी रवीश गुप्ता, पुलिस अधीक्षक डॉ विपिन कुमार मिश्र, अपर जिलाधिकारी प्रशासन हर्षदेव पांडेय व अन्य जिला स्तरीय अधिकारियों ने किये।

सं प्रदीप

वार्ता

There is no row at position 0.
image