राज्य » राजस्थानPosted at: Dec 21 2020 4:19PM डायनामिक नेता परसराम मोरदिया की फीकी पड़ती चमक
सीकर 21 दिसम्बर (वार्ता) राजस्थान में देशव्यापी जनता लहर को काटकर सीकर जिले में उदय हुए दलित नेता परसराम मोरदिया की राजनीतिक चमक वरिष्ठ विधायक होने के बावजूद फीकी पड़ी हुई है।
जिसे वापस लाने के लिए उनके समर्थकों को इंतजार है तो बस मंत्रिमंडल विस्तार का, ताकि नेताजी की शुरुआती धुआंधार राजनीतिक पारी तड़क -भड़क से पूरी हो सके।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश कांग्रेस में सबसे वरिष्ठ दलित नेता श्री मोरदिया का राजनीतिक सफर बॉलीवुड के किसी फ़िल्मी स्टाईल नेता से कम नहीं है। खासकर उनके द्वारा जरूरतमन्दों की ताल ठोक कर मदद करने वाली कार्य शैली के आज भी हजारों लोग कायल है लेकिन 1977 में राजस्थान विधान सभा की चौखट पर पहली बार चढने वाले तेज तर्रार नेता के तेवर सत्ता में होते हुए सत्ता से बाहर रहने के कारण ढीले पड़े हुए हैं। बता दें कि लंबे राजनीतिक जीवन में मोरदिया को यूं तो कई बार नेपथ्य में जाना पड़ा है मगर मौजूदा दौर में उनका भाग्य और स्वास्थ्य पूरी तरह साथ नहीं दे रहा है।
यही वजह है कि धोद पंचायत समिति के चुनाव नतीजे उनके लिए झटके देने वाले रहे हैं. वैसे ऐसे कम ही अवसर आए हैं जब सियासी फैसलों में मोरदिया की अहम भूमिका नहीं रही हो परंतु अब वे सीकर जिले की राजनीति में धीरे -धीरे अप्रसांगिक होने लगे हैं।
देखा जाए तो मोरदिया ने अपने पहले ही चुनाव में जनता लहर में लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस को अचरज भरी जीत दिलाई। इसके बाद उनकी सीकर जिले में ही नहीं पूरे राजस्थान में तूती बोलने लगी और देखते ही देखते मोरदिया अनुसूचित जाति के प्रमुख नेता बन गए।
इस समय सीकर जिले में विधानसभा आठ में से सात सीटों पर कांग्रेस और एक निर्दलीय विधायक हैं, वह भी कांग्रेस के साथ हैं. इन सभी में मोरदिया सबसे वरिष्ठ विधायक के नाते धोद क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। जहां कांग्रेस 25 वर्षों से जीत नहीं पा रही थी और उसकी चूलें पूरी तरह से हिली हुई थी, तब श्री मोरदिया मजबूरी में ही सही धोद के दंगल में मार्क्सवादी (माकपा) से टकराने के लिए उतरे और उन्होंने ढीले पड़े "हाथ" को फिर मजबूत किया।
लंबे समय तक लक्ष्मणगढ़ विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ने वाले श्री मोरदिया की सियासी गणित ढीली पड़ने का मूल कारण लक्ष्मणगढ़ की बजाय धोद विधानसभा सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित होना रहा। परिसीमन के कारण चुनाव आयोग का यह वो फैसला था, जिससे श्री मोरदिया की जमी जमाई सियासत बिखर गई दूसरे क्षेत्र में जाते ही मोरदिया को करारी हार का सामना करना पड़ा। हालात ऐसे हो गए कि मोरदिया ने अगला चुनाव लड़ने तक से किनारा कर लिया. नतीजतन लगातार 10 साल तक क्षेत्र से दूर रहने के बाद साल 2018 में चुनाव लड़ने का जब फिर मौका आया तो भाग्य ने उनका पूरा साथ दिया और धोद में उनके हाथों से माकपा के साथ भाजपा भी निपट गई।
राज्य में कांग्रेस की सरकार आने पर सियासी हलकों में अनुमान लगाए जाने लगे कि मोरदिया फिर से बड़ी ताकत के रूप में आएंगे लेकिन हुआ ठीक इसके विपरीत. उनके पुराने क्षेत्र लक्ष्मणगढ़ से विधायक बने गोविन्दसिंह डोटासरा को मंत्री बना दिया गया।
मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के नजदीक होने के बावजूद डायनामिक विधायक का मंत्री न बनने से राजनीति के गलियारों में चर्चा का विषय बना है। यही वजह है कि मंत्रिमंडल विस्तार की चर्चा चलते ही मोरदिया का नाम उछलने लगता है।
जोशी रामसिंह
वार्ता