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दीपोत्सव में मिट्टी के दीयों की खास अहमियत, दीया की रोशनी से घर होता है रोशन

दीपोत्सव में मिट्टी के दीयों की खास अहमियत, दीया की रोशनी से घर होता है रोशन

पटना, 31 अक्टूबर (वार्ता) भारतीय परंपरा के अनुसार दीपोत्सव में मिट्टी के दीयों की खास अहमियत है और इसके बिना दीपावली का त्योहार अधूरा सा है।

दीपावली के दिन हर घर दीये जलाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। शास्त्रों में मिट्टी के दीपक को तेज, शौर्य और पराक्रम का प्रतीक माना गया है। जब भगवान श्रीराम चौदह साल के वनवास के बाद अयोध्या लौटे थे, तबअध्योध्यावासियों ने मिट्टी के दीये जलाकर उनका स्वागत किया था। दीपावली पर मिट्टी के दीपक जलाने के पीछे धार्मिक महत्व भी है।मिट्टी के दीपक जलाना ना सिर्फ प्रकृति के लिए अनुकूल है, बल्कि इससे सुख-समृद्धि और शांति भी आती है। दीपक की रोशनी शांति का प्रतीक भी मानी जाती है। इसलिए दीपक जलाने से घर में शांति बनी रहती है।

अंधकार पर प्रकाश के विजयोत्सव दीपावली का त्योहार आज भी परंपरागत रूप से ही मनाया जाता है, आधुनिकता भले ही हावी हो लेकिन दीपावली पर्व के मौके पर मिट्टी के दीया की रोशनी से ही घर रोशन होता है।चाइनीज लाइटों की चकाचौंध के बीच आज भी भारतीय परंपरा के अनुसार दीपोत्सव में मिट्टी के दीयों की खास अहमियत है और इसके बिना दीपावली का त्योहार अधूरा सा है। दीपावली पर्व के मौके पर मिट्टी के दीये की रोशनी से ही घररोशन होता है।

अमावस्या की अंधेरी रात में दीये की जगमगाती रोशनी से चारों तरफ उजियारा छा जाता है। अंधेरे को चीरते इन खूबसूरत दीयों के बगैर दीपावली का त्योहार अधूरा सा है। यही कारण है कि दीपावली को लेकर शहरी क्षेत्र में मिट्टी के दीयो की कई दुकानें लगी हुई है।लोगों के घरों में दीपावली पर मिट्टी की खुशबू और दीया की टिमटिमाहट नजर आएगी।शहर से लेकर ग्रामीण क्षेत्र के बाजार में मिट्टी के दीया की जमकर बिक्री हो रही है। बाजार में मिट्टी के दीया की मांग को देखते हुए कुम्हारों ने पहले से ही तैयारी कर रखी थी।

कुम्हरारों का कहना है कि भले ही आधुनिक साजो-सामान, लाइटिंग के ट्रेंड आ गए हों लेकिन आज भी मिट्टी के दीये और कलश ही दीपावाली पर सबसे ज्यादा बिकते हैं। बाजारों में हर बार की तरह लुक-झुक करती लाइटों और दीयों की जमकर खरीददारी होती है। पहले तो दीपावली पर पारंपरिक मिट्टी के दीये ही लगाए जाते थे लेकिन अब बदलते समय के साथ फैशनेबल दीयों का चलन बढ़ गया है।दीपावली के त्योहार को लेकर सजे बाजारों में जहां एक ओर परंपरागत मिट्टी के दीयों की बादशाहत अभी भी कायम है वहीं दीयों के साथ सजावट के सामान, झालरों और मूर्तियां भी बाजार की रौनक बढ़ा रहे हैं।

दीपावली मनाने के तौर-तरीकों में तमाम बदलाव आए हैं लेकिन मिट्टी के दीये जलाने का ट्रेंड आज भी वैसा ही है। हालांकि दीयों के पैटर्न और स्टाइल में जबर्दस्त बदलाव देखने को मिला रहा है। राजधानी पटना के बाजारों में दीपावली को लेकर रौनक देखी जा रही है। अधिकांश चौक-चौराहों पर दीवाली के बाजार सज गये हैं, जहां अलग-अलग तरह के दीये, रंगोली, खिलौने समेत अन्य सजावटी सामान मिल रहे हैं। बाजार में चाइनीज लाइट होने के बावजूद भी पारंपरिक दीया स्टैंड, गोल्डन पेंटेड दीए और कंदीलों के प्रति खासा आकर्षण देखा जा रहा है। ये कई रंगों, आकारों और कीमत में उपलब्ध हैं।

पारंपरिक दीयों के साथ ही कई सजावटी दीये भी मिल रहे हैं। बाजार में इस साल काफी अलग-अलग तरह की मिट्टी के दीये हैं, जिसमें पारंपरिक दीया 80 रुपये से सौ रुपये प्रति सैकड़ा है, डिजाइनर सिंगल दीया तीन-पांच रुपये पीस, डिजाइन वाले बड़े दीये दस रुपये पीस, मैजिक दीया 50 रुपये, स्टैंड दीया 60 रुपये , ढक्कन वाले दीये 80 रुपये पीस उपलब्ध हैं।

बाजार की रौनक डिजाइनर दीये बढ़ा रहे हैं। बाजार में इनकी धूम है। दीयों का उपयोग दीवाली के दिन घर सजाने के लिए तो होता ही है, साथ ही यह उपहार में भी दिये जाते हैं। दीपावली के लिए इस वर्ष विशेष तौर पर टेराकोटा के बने जादुई दीये बाजार में बिक रहे हैं, जो दस घंटे तक लगातार जल सकते हैं। इसके अलावा मोम के सुंदर दीये, इलेक्ट्रानिक दीये, बैटरी से घूमने वाले दीये भी बाजार की शोभा बढ़ा रहे हैं।

प्रेम

वार्ता

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