नयी दिल्ली, 20 मई (वार्ता) सामाजिक सरोकार से जुड़ी फिल्मों को बॉलीवुड में पहचान मिलने लगी है। ऐसी ही शिक्षा जैसी महत्वपूर्ण मुद्दे से जुड़ी है निर्देशक साकेत चौधरी की फिल्म ‘हिन्दी मीडियम’। फिल्म में इरफान खान और दीपक डोबरियाल के साथ पाकिस्तानी अदाकारा सबा कमर मुख्य भूमिका में है। कहानी: यह कहानी दिल्ली की है जहां के चांदनी चौक के बाजार में राज बत्रा (इरफान खान) लहंगे की दुकान चलाता है और उसके पास पैसे की कोई कमी नहीं। वह पत्नी मीता (सबा कमर) से बहुत प्यार करता है। दोनों की बेटी है पिया, जिसका एडमिशन मीता किसी निजी अंग्रेजी स्कूल में कराना चाहती है। मिशन एडमिशन के तहत राज और मीता दिल्ली के बड़े स्कूलाें की खाक छानते हैं और बेटी के एडमिशन के लिये चांदनी चौक छोड़ दिल्ली के पॉश इलाके वसंत विहार में शिफ्ट हो जाते है। पिया को किसी अच्छे अंग्रेजी माध्यम स्कूल में दाखिला नहीं मिलने पर दोनों गरीबों के लिए आरक्षित कोटे में दाखिले का प्रयास भी करते हैं और सफल हो जाते है। लेकिन इसके बाद रवि को अपनी गलती का एहसास होता है कि उसने किसी गरीब का हक मारा है। यहां से फिल्म का ट्रैक बदलता है और यह दिखाया जाता है कि किस तरह अमीर लोग गरीबों का हक छीन रहे हैं और शिक्षा का अधिकार कानून का दुरुपयोग हो रहा है। निर्देशन : ‘प्यार के साइड इफेक्ट्स’ और ‘शादी के साइड इफेक्ट्स’ जैसी फिल्मों का निर्देशन करने वाले साकेत चौधरी ‘हिन्दी मीडियम’ के जरिये शिक्षा प्रणाली के साइड इफेक्ट्स को लोगों के सामने ला रहे हैं। अच्छे विषय के साथ न्याय करने में वह कामयाब रहें। उन से चूक फिल्म के क्लाइमेक्स में हुई जो नाटकीय लगता है। अभिनय: इरफान खान ऐसे अभिनेता है जिनकी आंखें भी बाेलती हैं और इस फिल्म को देखने के बाद लगा की एक कारोबारी, पिता और पति का किरदार इस शानदार ढंग से शायद ही काेई और निभा पाता। फिल्म के आखिर में उनका मोनोलॉग सीख देता है। सबा कमर पति को अंगुलियों पर नचाने वाली पत्नी के किरदार में खूब जमी हैं। दीपक डोबरियाल ने गरीब इंसान के किरदार में प्रभावित किया है। काउंसलर की भूमिका में तिलोत्तमा शोम उपस्थिति दर्ज कराने में कामयाब रहीं। अमृता सिंह, नेहा धूपिया और संजय सूरी के लिये फिल्म में ज्यादा कुछ नहीं था। गीत संगीत: फिल्म में गाने कम हैं, आतिफ असलम की आवाज में ‘हूर’ सुकून देता है । गुरु रंधावा का ‘सूट-सूट’ पार्टी नंबर है जो रिलीज से पहले ही हिट हो चुका है। देखे या ना देखें : नया आैर आम लोंगों से जुड़ा विषय होने के कारण हम इस फिल्म को देखने की सलाह देंगें। फिल्म सिर्फ भाषा ही नहीं बल्कि शिक्षा प्रणाली की दूसरी खामियों को भी उजागर करती है। फिल्म की कमजोर कड़ी इसका आखिरी हिस्सा है जो सच्चाई की जगह नाटकीय लगता है। पूरी फिल्म दर्शकों को बांधे रखती है लेेकिन आखरी हिस्से में यह जुड़ाव थोड़ा कम हो जाता है। रेटिंग : शानदार अभिनय इस फिल्म को और भी दमदार बनाता है जिससे दूसरी खामियां ढक जाती है । फिल्म को हमारी तरफ से पांच में से साढे तीन अंक (3.5*/5*) अमित, यामिनी वार्ता