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देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कभी इटावा के बुनकर उद्योग से था खासा योगदान

देश के विदेशी मुद्रा भंडार में कभी इटावा के बुनकर उद्योग से था खासा योगदान

इटावा,01 अक्टूबर (वार्ता) एक समय सूती वस्त्रो के बड़ी मात्रा में निर्यात से देश के विदेशी मुद्रा भंडार में खासा योगदान करने वाले इटावा जिले का बुनकर उद्योग सरकार की बेरुखी के चलते दम तोड़ता नजर आ रहा है।

बेसक बुनकर कारोबार हासिये पर चला गया हो ,लेकिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के आर्दशो पर चल बुनकरो ने अपने कारोबार को चालू रखा है। इटावा के बुनकर आज भी सरकार के रहमोकरम के बजाय गांधी जी के आर्दशो चल कर अपना कारोबार कमरतोड़ मेहनत के बलबूते पर करने में जुटे हुए है। कोराना महामारी ने बनुकरी कारोबार के ठप होने से बड़ी तादात में बुनकर आबादी रोजी रोटी को मोहताज हो गई थी।

इटावा बुनकर संध के अध्यक्ष मुईन अंसारी का कहना है कि इटावा में बुनकरी कारोबार आजादी से पहले शुरु हो गया था । उन्होंने बताया कि 1929 में महात्मा गांधी इटावा आये थे और उनका सूत प्रेम देखकर बुनकरों के मन में नया उत्साह पैदा हुआ और आजादी के वक्त तक इटावा में बुनकरी का कारोबार बहुत तेजी से बढ़ा। आजादी के बाद भी यह बढ़त जारी रही लेकिन तब तक जब तक सरकार ने विकास की योजनाओं का श्रीगणेश नहीं कर दिया। सरकार ने जैसे ही बुनकरों के विकास का बीडा अपने हाथ में उठाया वे बदहाल होते चले गये। उन्होंने कहा कि आजादी के पहले का उत्साह सरकारी योजनाओं और अफसरशाही की भेंट चढ़ गया है।

अंसारी ने बताया कि जीएसटी लागू होने के बाद सूत के दाम काफी बढ़े है, जिससे सूत खरीदकर कपड़ा तैयार करने में अधिक लागत आ रही है। जिस कारण उत्पादित माल की कीमतें बढ़ गयीं हैं और बिक्री पर खासा असर पड़ रहा है । इटावा का बुनकर जो अपना माल दूसरे शहरों की मण्डियों में बेचने जाता था अब वहां भी माल की खरीद में कमी आई है । जीएसटी के कारण खरीदारी पर प्रभाव पड़ा है और मांग में भारी कमी के चलते बुनकर कारोबारी व मजदूर भी भुखमरी के कगार पर हैं और उनके परिवारों के सामने भरण पोषण के लाले पड़े हैं । उन्होंने मांग की है कि सरकार बुनकरों की दुर्दशा पर ध्यान दे और जीएसटी में संशोधन कर करों में राहत प्रदान करे अन्यथा बुनकर व्यवसाय पूर्णतः ठप्प हो जायेगा ।

इटावा के बुनकरो का कहना है कि राष्ट्रपिता महात्मा गांधी का नाम जेहन में आते ही एक अजीब सी ताकत का एहसास होता है। गांधी ने गुलामी के दौर में देशवासियों में एक नई उर्जा का सृजन किया था ,जिसके बूते देश को आजादी मिली,महात्मा गांधी ने देश को जो कुछ दिया ,उसका बखान करने की जरूरत नहीं हैं लेकिन उन्होंने हथकरघा के रूप में एक कारोबार देशवासियों को दिया है। इसी कारोबार का खासा असर उत्तर प्रदेश के इटावा में देखा जाता है। इटावा के बुनकर महात्मा गांधी को प्ररेणास्त्रोत मान कर आज भी अपना कारोबार करने में तन्मयता से जुटे हुये है।

गौरतलब है कि चंद्रभान गुप्त ने अपने मुख्यमंत्रित्व काल में राज्य की पहली सूत मिल 1967 में इटावा में स्थापित कराई थी। यह सब इटावा के बुनकर कारोबार को ध्यान में रख कर उनके हितो के लिए किया गया महत्वपूर्ण कदम समझा गया । जिस समय सूत मिल की स्थापना हुई उस समय इटावा एंव आसपास के बुनकरो को सूत सस्ते दर पर मिलना शुरू हो गया लेकिन सरकार की योजनाओं का लाभ ज्यादा समय तक बुनकर उठाने में सफल नहीं हो सका क्यों कि सरकारी मशीनरी बुनकरो का अहित करने में जुट गयी।

इटावा में एक अनुमान के मुताबिक 50 हजार के करीब बुनकर है,जो अपने बुनकरी कारोबार से जुड कर अपनी रोजी रोटी चला रहे है। 1967 में इटावा में संचालित सूत मिल से एक समय इन बुनकरों को सूत मिला करता था लेकिन 1999 से इस सूत मिल के बंद हो जाने से इटावा का बुनकर उद्योग ठप हो गया, सूत मिल के बंद के बंद हो जाने से इटावा का बुनकर अपनी रोजी रोटी के लिये दूरस्त से सूत मंगाने लगे,महगां सूत मिलने से सूत उघोग ठप हो गया है,इसके ऊपर बुनकर माफियाओं द्धारा संचालित बुनकर सोसायटियों के घोटाले बाजी ने इस उघोग की कमर तोडकर रख दी है, बताते चले कि इटावा में करीब 500 से अघिक बुनकर सोसायटियां संचालित हैं।

वर्ष 1999 में इटावा का सूत मिल उत्तर प्रदेश सरकार की बेरूखी के चलते बंद कर दिया गया तब से तमाम जी तोड कोशिशे की गयी लेकिन न तो बुनकरो को और न ही किसी राजनेता को कोई कामयाबी सूत मिल को चालू कराने की दिशा में नहीं मिल सकी। आज भले ही इटावा के बुनकर राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को आदर्श मानकर अपना कारोबार करने मे सफलतापूर्वक जुटा हो लेकिन सरकारी नुमाइंदे इटावा के बुनकरो का नुकसान करने में जुटे हुये है फिर भी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की प्रेरणा से यहां के बुनकर विपरीत हालात में भी अपनी रोजी रोटी चला रहे हैं।

आजादी के आंदोलन के दौरान महात्मा गांधी इटावा भी आये थे। इटावा स्वतंत्रता आंदोलन के लिए बड़ा महत्वपूर्ण शहर था। गांधी जी ने 1921 में जब असहयोग आंदोलन चलाया तो इटावा के जिला कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष मौलाना रहमत उल्ला के नेतृत्व में यहां के कांग्रेस जनों ने बढ़-चढ़कर भाग लिया था। वर्ष 1922 में काकोरी कांड में इसी जिले के ज्योति शंकर दीक्षित और मुकुंदी लाल गिरफ्तार किये गये। इसी दौरान जवाहर लाल नेहरू भी कई बार इटावा आये।

गांधी जी इटावा की इस देशभक्ति से परिचित थे वे देशभर में जनजागरण अभियान को निकल पड़े थे तो फिर इटावा उनकी दृष्टि से ओझिल नहीं हो सकता था। वर्ष 1929 में वे इटावा आये और पुराना शहर के बजरिया छैराहा स्थित जुगल बिहारी टंडन जुग्गी लाला की कोठी पर कुछ देर रुक कर औरैया के लिए रवाना हुए। यहां के पूंजीवादी वर्ग ने भी गांधी जी के आह्वान पर विदेशी वस्त्रों की होली जलाई और गांधी का चरखा हर कांग्रेस कार्यकर्ता के घर पहुंच गया।

आज भी इटावा वासी इस बात से रोमांचित हैं कि पूरी दुनिया को सत्य, अहिंसा और बंधुत्व का संदेश देने वाला यह महापुरुष कभी उनके जिले में भी आया था।

इटावा जिले में बुनकर उद्योग को बढ़ावा देने के लिए भाजपा सांसद डा. रामशंकर कठेरिया सूत मिल का मुद्दा लोकसभा में उठा चुके है । उन्होंने सदन के माध्यम से केंद्र सरकार से इटावा जिले में नई जगह पर सूत मिल की स्थापना कराने की मांग की लेकिन इस पर सरकार की ओर से कोई पहल नहीं हुई है ।

संसद में सवाल उठाते हुए उन्होंने कहा कि इटावा के बुनकर उद्योग का पूरे देश में नाम रहा है । यहां बनने वाले सूत के कपड़े की पहचान देश भर में होती थी । गरीबों को रोजगार भी मिल जाता था। उनका तर्क है कि पूर्ववर्ती सपा सरकार ने इटावा शहर में बंद पड़ी सूत मिल की 44 एकड़ जमीन को आवास विकास को 102 करोड़ रुपये में बेच दिया । अब आवास विकास यहां कालोनी विकसित कर रहा है । इटावा में रोजगार को कोई बड़ा कारखाना नहीं है। ऐसे में अब आवश्यक हो गया है कि इटावा में सूत मिल के लिए कोई नई जगह तलाशी जाए। वहां सूत मिल बने। जिससे बुनकर उद्योग को बढ़ावा मिलेगा। गरीब बुनकरों को रोजगार का साधन मिलेगा।

जिस सूत मिल की स्थापना को लेकर इटावा के सांसद डा.रामशंकर कठेरिया ने सवाल उठाया है । इस सूतमिल ने न केवल हजारो लोगो को रोजगार दिया ,बल्कि देश के विदेशी मुद्रा भंडार मे उल्लेखनीय योगदान भी दिया है।

सं त्यागी

वार्ता

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