इटावा, 06 अक्टूबर(वार्ता) उत्तर प्रदेश में इटावा के जसवंतनगर में सैकडों सालों से आयोजित होने वाली विश्व प्रसिद्ध रामलीला वैश्विक महामारी कोरोना संक्रमण के चलते रद्द कर दी गई है ।
रामलीला कमेटी के व्यवस्था प्रभारी अजेंद्र सिंह गौर ने मंगलवार को यहाॅ बताया कि संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था यूनेस्को द्वारा विश्व धरोहर घोषित एवं युद्ध प्रदर्शन की प्रधानता वाली रामलीला को कोरोना काल मे आयोजन के लिए प्रशासनिक अनुमित ना मिलने के कारण रद्द कर दिया गया है। रामलीला का आयोजन 14 अक्टूबर से प्रस्तावित था लेकिन अब इसको टाल दिये जाने से रामलीला के दर्शको को मायूसी देखी जा रही है ।
जसवंतनगर की उपजिलाधिकारी ज्योत्सना बंधु ने बताया कि रामलीला कमेटी की ओर से अनुमति का अनुरोध किया गया था। बडी तादात में लोगों के हिस्सेदारी होती है और प्रबंधन की ओर से संख्या का कोई निर्धारण नही किया जा सका है इसलिए आयोजन की अनुमति नही दी गई है।
माॅरीशस, त्रिनिदाद, थाईलैंड, इंडोनेशिया जैसे देशों के रामलीला प्रेमी जसवंतनगर शैली की रामलीला के बड़े मुरीद हैं। यहां लीलाओं का प्रदर्शन अपनी विशेष शैली के अनुरूप किया जाता है। यहां के पात्रों की पोशाकों से लेकर युद्ध प्रदर्शन में प्रयुक्त किए जाने वाले असली ढाल, तलवारों, बरछी, भालों, आसमानी वाणों आदि का आकर्षण देखने के लिए दर्शकों को खींच लाता है। कुछ वर्षों पूर्व जब दक्षिणी अमेरिकी महाद्वीप के कैरेबियन देश त्रिनिदाद, क्रिकेट की शब्दावली में वेस्टइंडीज का एक देश से रामलीला पर शोध कर रही डा.इंद्राणी रामप्रसाद जब यहां का रामलीला का प्रदर्शन देखने जसवंतनगर आई तो वह यह देखकर आश्चर्यचकित रह गई की रामलीला का प्रदर्शन इस तरह भी हो सकता है। बाद में दुनिया की 400 रामलीलाओं का अध्ययन करने के बाद उन्होंने जब अपनी थीसिस लिखी तो उसमें जसवंतनगर की मैदानी रामलीलाओं को उन्होंने दुनिया की सबसे बेहतरीन रामलीला बताते हुए विभिन्न रामलीलाओं का वर्णन किया।
डाॅ इंद्राणी रामप्रसाद को त्रिनिनाद विश्वविद्यालय से रामलीला के प्रदर्शन विषय पर डाक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। उन्होंने इसके बाद पूरी दुनिया के विभिन्न देशों में हिंदू समुदाय के लोगों तक इस रामलीला की खूबियों और आकर्षण को पहुंचाने का काम किया । इसके बाद ही लोग समझ सके कि जसवंतनगर की रामलीला दुनिया में बेजोड़ है।
इटावा की रामलीला का इतिहास करीब 164 वर्ष पुराना है और ये खुले मैदान में होती है। यहाॅ रावण की आरती उतारी जाती है और उसकी पूजा होती है। हालाँकि ये परंपरा दक्षिण भारत की है लेकिन फिर भी उत्तर भारत के कस्बे जसवंतनगर ने इसे खुद में क्यों समेटा हुआ है ये अपने आप में ही एक अनोखा प्रश्न है। जानकार बताते है कि रामलीला की शुरुआत यहाॅ 1855 मे हुई थी लेकिन 1857 के गदर ने इसको रोका फिर 1859 से यह लगातार जारी है।
विश्व धरोहर में शामिल जमीनी रामलीला के पात्रों से लेकर उनकी वेशभूषा तक सभी के लिए आकर्षक का केन्द्र होती है । भाव भंगिमाओ के साथ प्रदर्शित होने वाली देश की एकमात्र अनूठी रामलीला में कलाकारों द्वारा पहने जाने वाले मुखौटे प्राचीन तथा देखने में अत्यंत आकर्षक प्रतीत होते हैं । इनमें रावण का मुखौटा सबसे बड़ा होता है तथा उसमें दस सिर जुड़े होते हैं । ये मुखौटे विभिन्न धातुओं के बने होते हैं तथा इन्हें लगा कर पात्र मैदान में युद्ध लीला का प्रदर्शन करते है । इनकी विशेष बात यह है कि इन्हें धातुओं से निर्मित किया जाता है तथा इनको प्राकृतिक रंगों से रंगा गया है। सैकड़ों वर्षों बाद भी इनकी चमक और इनका आकर्षण लोगों को आकर्षित करता है।
दुनिया भर मे जहां-जहां रामलीलाएं होती है, इस तरह की रामलीला कहीं भर भी नही होती है। इसी कारण साल 2010 मे यूनेस्को की ओर से रामलीलाओ के बारे जारी की गई रिर्पोट मे भी इस रामलीला को जगह दी जा चुकी है । 164 साल से अधिक का वक्त बीत चुकी इस रामलीला का आयोजन दक्षिण भारतीय तर्ज पर मुखोटो को लगाकर खुले मैदान मे किया जाता है । त्रिनिदाद की शोधार्थी इंद्राणी रामप्रसाद करीब 400 से अधिक रामलीलाओ पर शोध कर चुकी हैं लेकिन उनको जसवंतनगर जैसी होने वाली रामलीला कही पर भी देखने को नही मिली है
देश भर की रामलीलाओ के मुकाबले जसवंतनगर की रामलीला बिल्कुल ही जुदा मानी जाती है । इसके जुदा होने के पीछे रामलीला के कूरर लेकिन सबसे अहम पात्र रावण का रक्षक की भूमिका मे खडा होना। रावण की ना केवल पूजा की जाती है बल्कि पूरे शहर भर मे रावण की आरती उतारी जाती है। इतना ही नही रावण के पुतले को जलाया नही जाता है। लोग पुतले की लकडियो को अपने अपने घरो मे ले जा करके रखते है ताकि वे साल भर हर संकट से दूर रह सके ।
सं भंडारी
वार्ता